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11 बच्चों के पिता थे हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद, पिता के नक्शे कदम पर ही आगे बढ़ा एक बेटा
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मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में हुआ था। उन्होंने 14 साल की उम्र से ही हॉकी खेलना शुरू कर दिया था। 16 साल में वह आर्मी की पंजाब रेजिमेंट में शामिल हुए और 1922 से लेकर 1926 के दौरान भारतीय आर्मी हॉकी टीम को 18 मैचों में जीत दिलाई।
उन्होंने भारत को ओलंपिक खेलों में तीन गोल्ड मेडल दिलाए। पहला एम्स्टरडम ओलंपिक 1928, दूसरा लॉस एंजिलस 1932 और तीसरा बर्लिन ओलंपिक 1936 (कैप्टैंसी) में उन्होंने जीता था। उन्होंने ऐसा रिकॉर्ड बनाया है जो आज तक कोई नहीं तोड़ पाया है। उनके नाम ओलंपिक खेलों में 101 और इंटरनेशनल खेलों में 300 से ज्यादा गोल दर्ज है।
मेजर ध्यानचंद के परिवार की बात की जाए तो 1936 में बर्लिन ओलंपिक में जाने से पहले उनकी शादी जानकी देवी से हुई। जानकी देवी उनके लिए लकी रही और उन्होंने लगातार तीसरे ओलंपिक में देश को गोल्ड मेडल जिताया था।
बर्लिन ओलंपिक के दौरान भारत और जर्मनी को 14 अगस्त 1936 को मैच खेलना था लेकिन यह मैच 15 अगस्त को खेला गया। इस मैच में जर्मन के तानाशाह हिटलर भी मौजूद थे। इस मैच में ध्यानचंद ने अपने स्पाइक्स वाले जूते निकाल कर नंगे पांव हॉकी से कमाल किया और एक के बाद एक कई गोल दागे। उनकी कप्तानी में यह पहला गोल्ड और ओलंपिक में तीसरा गोल्ड मेडल था।
ध्यानचंद और जानकी देवी के कुल 11 बच्चे थे जिनमें से 3 बच्चे अब इस दुनिया में नहीं है उनके 7 बेटे और 4 बेटियां हैं। जिनका नाम बृजमोहन, सोहन सिंह, राजकुमार, अशोक कुमार, उमेश कुमार, देवेंद्र सिंह, वीरेंद्र सिंह, विद्यावती, राजकुमारी, आशा सिंह और ऊषा सिंह है।
उनके बेटे अशोक ध्यानचंद भी उन्हीं की तरह इंटरनेशनल प्लेयर रहे हैं। अशोक ने वर्ल्ड कप समेत 7 विनिंग हॉकी टीम में भाग लिया है। इसके अलावा उनके अन्य बच्चों में से किसी ने अमेरिका में पढ़ाई की, तो कोई फैशन इंडस्ट्री से ताल्लुक रखता है।
एक इंटरव्यू के दौरान मेजर ध्यानचंद के पांचवे बेटे की पत्नी मीना ने बताया था की उनके ससुर जी डायरी लिखने का शौक था। जिसमें उनकी कई शायरी लिखी थी। उनकी फेवरेट एक्ट्रेस हेमा मालिनी और जरीना वहाब थी उन्होंने दोनों के लिए शायरी लिखी थी।
भारत के इतिहास में मेजर ध्यानचंद का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। कहा जाता है कि अंतिम समय में उनके पास दवा के पैसे भी नहीं थे। उन्होंने अपना जीवन बहुत तंगहाली में बिताया था। 3 दिसंबर 1979 को दिल्ली में उनका निधन हो गया था। इसके बाद उनका अंतिम संस्कार उसी मैदान पर किया गया जहां पर वह हॉकी खेला करते थे उन्होंने 22 साल तक भारत के लिए हॉकी खेली और 400 से ज्यादा गोल किए।