भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान दक्षिण भारत की बहादुर रानी चेन्नम्मा ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध लड़ा और शहीद हो गईं। उनकी इस शहादत को पूरा देश नमन करता है। रानी चेन्नम्मा ने भारतीय जनमानस को अंग्रेजों के खिलाफ करने में बड़ी भूमिका निभाई।
18वीं शताब्दी में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पूरे देश में फैल चुका था। दक्षिण भारतीय राज्यों में पॉलीमरों का विद्रोह अंग्रेजी हूकूमत के लिए मुसीबत बन गई थी। पॉलीमरों ने कई वर्षों तक अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी और संघर्ष करते रहे।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम (Freedom Fight) में कई वीरांगनाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी है। उन्हीं में से एक हैं दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य की रानी अब्बक्का, जिन्होंने पुर्तगालियों के साथ युद्ध लड़ा था।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान देश के हर तबके ने अपनी भूमिका निभाई। भारत की कई क्रांतिकारी महिलाओं ने हंसते-हंसते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। ऐसी ही कुछ भारतीय महिलाओं के बारे में हम जानकारी दे रहे हैं।
आजादी के 75 साल का जश्न (Azadi ka amrut mahotsav) भारत सरकार आजादी का अमृत महोत्सव के नाम से मना रही है। इसी क्रम में एशियानेट न्यूज (Asianet News) ने भी अमृत महोत्सव यात्रा शुरू की है। कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत (Governor) ने हरी झंडी दिखाकर यात्रा को रवाना किया।
हमारा देश आजादी के 75 साल का जश्न मना रहा है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए न जाने कितने लोगों ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया था। उन्हीं में से एक थे देश के मशहूर उद्यमी जमनालाल बजाज।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत सारी क्रांतिकारी महिलाओं ने अदम्य साहस का परिचय दिया है। बंगाल की महिला क्रांतिकारी हों या दक्षिण भारत की महिलाएं, सभी ने देश की आजादी के लिए प्राण न्योछावर किए हैं।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में देश की वीरांगना महिलाओं ने भी हंसते-हंसते प्राणों की आहुति दी है। महिलाओं ने क्रांतिकारियों के समूह की लाजिस्टिक मदद भी की, जिससे अंग्रेजों के खिलाफ अभियान मजबूत हो सका। कई बार तो महिलाओं ने क्रांतिकारी ग्रुप ही बना लिया और अंग्रेजों से लोहा लिया।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जेआरडी टाटा को एक ऐसे व्यक्ति के रुप में याद किया जाता है, जिन्होंने अंग्रेजों के कई पूर्वाग्रहों को ध्वस्त करने का काम किया। उन्होंने अपने ही अंदाज में अंग्रेजों को मात दी।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का शुरूआत 1857 से मानी जाती है, जब पहली बार अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह हुआ था। लेकिन बहुत कम लोग ही यह जानते होंगे कि 1857 से 2 साल पहले भी एक विद्रोह हुआ था, जिसे संथाल विद्रोह कहा जाता है।