सार
चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri 2022) के आठवें दिन देवी महागौरी (Goddess Mahagauri) की पूजा की जाती है। ये देवी दुर्गा का आठवां स्वरूप हैं। इस बार 9 अप्रैल, शनिवार को इनकी पूजा की जाएगी।
उज्जैन. पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां महागौरी का रंग अत्यंत गौरा है इसलिए इन्हें महागौरी के नाम से जाना जाता है। इनके वस्त्र-आभूषण भी सफेद ही हैं। देवी महागौरी की चार भुजाएं हैं। इनका वाहन बैल है। देवी के दाहिनी ओर का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। बाएं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है। इनका स्वभाव अति शांत है। धर्म ग्रंथों के अनुसार देवी महागौरी की पूजा से हर तरह का सुख हमें प्राप्त हो सकता है। आगे जानिए देवी महागौरी की पूजा विधि, मंत्र, शुभ मुहूर्त व कथा…
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9 अप्रैल, शनिवार के शुभ मुहूर्त (चौघड़िए के अनुसार)
सुबह 7:30 से 9 बजे तक- शुभ
दोपहर 12 से 01:30 तक- चर
दोपहर 01:30 से 03 तक- लाभ
दोपहर 03 से शाम 04:30 तक- अमृत
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इस विधि से करें देवी महागौरी की पूजा
9 अप्रैल, शनिवार की जल्दी उठकर देवी कालरात्रि की तस्वीर या प्रतिमा की स्थापना किसी साफ स्थान पर करें। देवी कालरात्रि को कुमकुम, चावल, अबीर, गुलाल आदि चीजें चढ़ाएं। साथ ही मीठा पान भी अर्पित करें। शुद्ध घी का दीपक लगाएं। मनोकामना पूर्ति के लिए नारियल या उससे बनी मिठाई का भोग लगाएं। देवी महागौरी का ध्यान करते हुए आरती करें।
मंत्र
श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥
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देवी महागौरी की आरती
जय महागौरी जगत की माया। जया उमा भवानी जय महामाया॥
हरिद्वार कनखल के पासा। महागौरी तेरी वहां निवासा॥
चंद्रकली ओर ममता अंबे। जय शक्ति जय जय माँ जगंदबे॥
भीमा देवी विमला माता। कौशिकी देवी जग विख्यता॥
हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा। महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा॥
सती सत हवन कुंड में था जलाया। उसी धुएं ने रूप काली बनाया॥
बना धर्म सिंह जो सवारी में आया। तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया॥
तभी माँ ने महागौरी नाम पाया। शरण आनेवाले का संकट मिटाया॥
शनिवार को तेरी पूजा जो करता। माँ बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता॥
भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो। महागौरी माँ तेरी हरदम ही जय हो॥
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देवी महागौरी की कथा
धर्म ग्रंथों के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की। जिससे उनका रंग काला पड़ गया। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने देवी को पुन: गौरा होने का वरदान दिया। देवी के इसी रूप की पूजा नवरात्रि की अष्टमी तिथि पर किया जाता है।
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