सार

Hartalika Teej 2022: भाद्रपद मास में कई मुख्य व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं। हरतालिका तीज भी इनमें से एक है। इस व्रत में महिलाएं दिन भर निराहार रहती हैं यानी कुछ भी खाती-पीती नहीं है और रात में भी जागरण करती हैं।
 

उज्जैन. हरितालिका तीज व्रत महिलाओं के प्रिय त्योहारों में से एक है। ये व्रत भाद्रपद मास के  शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर किया जाता है। इस बार ये व्रत 30 अगस्त, मंगलवार को है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, ये व्रत करने से घर-परिवार में खुशहाली बनी रहती है और कुंवारी लड़कियां ये व्रत मनचाहे पति के लिए करती हैं। इस दिन सौम्य और शुभ नाम के 2 योग भी रहेंगे, जिसके चलते इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है। मान्यता है कि देवी पार्वती ने शिवजी को पति रूप में पाने के लिए ये व्रत किया था। आगे जानिए इस व्रत की विधि, महत्व, कथा व अन्य खास बातें…
 
पूजन सामग्री

हरतालिका तीज की पूजा में इन चीजों का उपयोग विशेष रूप से किया जाता है- पांच फल, सुपारी, कुमकुम, गंगाजल, चावल, बेलपत्र, शमी का पत्ता, केले का पत्ता, सूखा नारियल, कलश, गुलाल, चंदन, मंजरी, कलावा, धतूरे का फल, घी, शहद, इत्र, धूप, दीप, आक का फूल और कपूर।


इस विधि से करें पूजा (Hartalika Teej 2022 Puja Vidhi)
- 30 अगस्त की सुबह महिलाएं स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। घर की साफ-सफाई करें। मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग सहित शिव परिवार की प्रतिमाएं बनाएं। 
- दिन भर कुछ भी खाए-पिए नहीं शाम को इन प्रतिमाओं को एक साफ स्थान पर स्थापित करें। इसके बाद शिव-पार्वती की प्रथम पूजा करें। शिवजी बिल्व-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते आदि वनस्पति चढ़ाएं 
- भगवान शिव की पूजा करते समय ये मंत्र बोलें- ऊं हराय नम:, ऊं महेश्वराय नम:, ऊं शम्भवे नम:, ऊं शूलपाणये नम:, ऊं पिनाकवृषे नम:, ऊं शिवाय नम:, ऊं पशुपतये नम:, ऊं महादेवाय नम:।
- इसके बाद देवी पार्वती की पूजा करें और पूजन सामग्री चढ़ाते हुए ये मंत्र बोलें- ऊं उमायै नम:, ऊं पार्वत्यै नम:, ऊं जगद्धात्र्यै नम:, ऊं जगत्प्रतिष्ठयै नम:, ऊं शांतिरूपिण्यै नम:, ऊं शिवायै नम:। 
- इस तरह रात के चारों प्रहर में शिव-पार्वती और शिव परिवार की पूजा करते रहें। अगले दिन सुबह पारणा करें। इस तरह हरतालिका तीज का व्रत करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

हरतालिका तीज की कथा
हिमालय की पुत्री देवी पार्वती भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थीं। इसके लिए वे दिन रात शिवजी का ही ध्यान करती थीं। जब ये बात पर्वतराज हिमालय को पता चली तो उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह कहीं ओर करना चाहा। पार्वतीजी के मन की बात जानकर एक दिन उनकी सखियां उन्हें लेकर घने जंगल में चली गईं। यहां देवी पार्वती ने कई सालों तक शिवजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। तब कहीं जाकर शिवजी प्रसन्न हुए और देवी पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया। देवी पार्वती का सखियों द्वारा हरण कर लेने की वजह से इस व्रत का नाम हरतालिका पड़ा। 

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