सार
व्यक्ति जब जन्म लेता है, उस समय की ग्रह स्थितियों के अनुसार ही उसकी जन्म कुंडली बनती है। कुंडली में ग्रहों की युति कई शुभ और अशुभ योग बनाती है।
उज्जैन. कुछ शुभ योग ऐसे भी होते हैं जो दरिद्र को भी धनवान बना देते हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही विशेष योग के बारे में बता रहे हैं, जिसका नाम लक्ष्मी-नारायण है। जानिए इस योग से जुड़ी खास बातें
कब बनता है लक्ष्मी-नारायण योग?
- लक्ष्मी नारायण योग जन्मकुंडली में स्थित बुध और शुक्र ग्रह की युति से बनता है। बुध बुद्धि-विवेक, हास्य का कारक है तो शुक्र सौंदर्य, भोग विलास का कारक है। - इन दोनों ग्रहो का आपसी संबंध जातक को रोमांटिक और कलात्मक प्रवृत्ति का बनाता है। यह योग जैसे की नाम से ही पता चल रहा है, एक बहुत शुभ योग है।
- यह योग सुख सौभाग्य को बढ़ाने वाला योग है। लक्ष्मी नारायण योग पर गुरु की दृष्टि सोने पर सुहागा जैसी स्थिति होती है।
- लग्न, पांचवें, नौवें भाव में शुक्र बुध से बनने वाले लक्ष्मी नारायण योग के प्रभाव से जातक किसी न किसी कला में विशेष दक्ष होता है।
- पांचवें भाव में बनने से बली लक्ष्मी नारायण के प्रभाव से व्यक्ति विद्वान् भी होता है।
- शुक्र के साथ बुध और बुध के साथ शुक्र की युति इन दोनों के शुभ प्रभाव को बहुत ज्यादा बढ़ा देती है।
- यह योग मेष, धनु, मीन लग्न में ज्यादा अच्छा प्रभाव नही दिखाता जबकि वृष, मिथुन, कन्या, तुला राशि में बहुत बली होता है।
- यह योग कुछ ही लग्नों में कारगर होते हैं जैसे कन्या लग्न में शुक्र भाग्येश धनेश होकर योगकारक है। इसी तरह मकर, कुम्भ लग्न की कुंडलियो में यह विशेष राजयोग कारक होता है।
- इन दोनों मकर, कुम्भ लग्न में किसी भी तरह से यह अकेला भी बलशाली और पाप ग्रहों के प्रभाव से रहित होता है तो राजयोग बनाता है जिसके फल शुभ फल कारक होते हैं।
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