Shweta Tiwari Parenting: श्वेता तिवारी अपनी बेटी पलक के लिए सख्त मगर समझदारी भरे पेरेंटिंग रूल्स अपनाती हैं-पार्टी टायमिंग, फ्रेंड्स की डिटेल और सीमित पॉकेट मनी देकर वह बेटी की सुरक्षा, अनुशासन और आर्थिक जिम्मेदारी पर जोर देती हैं। 

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सिंगल पेरेंटिंग का चलन
2024 जनगणना के अनुसार, भारत में 3.2 करोड़ से अधिक बच्चे सिंगल पैरेंट के साथ रहते हैं, जिनमें ज्यादातर माताएं हैं।

Shweta Tiwari Parenting Style: टीवी इंडस्ट्री की पॉपुलर एक्ट्रेस श्वेता तिवारी सिर्फ अपनी एक्टिंग के लिए नहीं, बल्कि अपनी सिंगल पैरेंटिंग स्टाइल के लिए भी जानी जाती हैं। हाल ही में कॉमेडियन भारती सिंह के साथ बातचीत में श्वेता ने बेटी पलक तिवारी के लिए अपनाए गए कुछ खास पेरेंटिंग रूल्स शेयर किए, जो आज के माता-पिता के लिए एक इंस्पिरेशन बन सकते हैं।

'रात 1 बजे का मतलब, घर पर 1 बजे'

श्वेता बताती हैं, 'अगर मेरी बेटी पार्टी में जा रही है, तो उसे सभी दोस्तों के नाम और उनकी माओं के कॉन्टैक्ट नंबर शेयर करने होते हैं। साथ ही, अगर उसने कहा है कि वह रात 1 बजे तक घर लौटेगी, तो उसे ठीक उसी समय घर पहुंचना होता है। पार्टी से 1 बजे निकलना नहीं चलेगा।' इसके साथ वो बताती है कि अगर पलक का फोन नहीं उठे या वो लोकेशन ट्रैक नहीं कर पाएं, तो खुद ही वह वहां 30 मिनट में पहुंच जाती थीं।

'पलक को मिलती है आज भी सिर्फ पॉकेट मनी'

इसके साथ ही उन्होंने बताया कि भले ही पलक खुद कमाती हैं, लेकिन आज भी उन्हें उतना ही पैसा दिया जाता है, जितनी उनकी जरूरत होती है। बाकी रकम मैं चेक मिलते ही ले लेती हूं और उसे निवेश (इंवेस्टमेंट) कर देती हूं, ताकि उसका भविष्य सुरक्षित रहे।

क्या कहती हैं एक्सपर्ट?

द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में आदित्य बिड़ला एजुकेशन ट्रस्ट के Mpower की साइकोलॉजिस्ट रीमा भांडेकर का मानना है कि बहुत सख्त पेरेंटिंग से बच्चों में डिसिप्लिन और जिम्मेदारी तो आती है, लेकिन यह कभी-कभी आत्मविश्वास की कमी, चिंता और इमोशंस को जाहिर करने में दिक्कत भी पैदा कर सकती है। वहीं बहुत ज्यादा लिबरल पेरेंटिंग से बच्चे आत्मनिर्भर बनते हैं, लेकिन अगर यह अति हो जाए, तो डिसिप्लिन की कमी और इंपल्सिव बिहेवियर जैसी समस्याएं भी आती हैं।

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सपोर्टिव पेरेंटिंग है बेस्ट तरीका

भांडेकर के अनुसार, बच्चों को यह पूछना कि वे क्या बनना चाहते हैं, बिना यह जोड़े कि तुम्हें यह बनना चाहिए, ही सपोर्टिव पेरेंटिंग की असली पहचान है। ऐसे माता-पिता बच्चों को खुद की पसंद के करियर को अपनाने की आजादी देते हैं, चाहे वह फैमिली ट्रेडिशन या सोसायटी की उम्मीदों से बिल्कुल अलग क्यों न हो। वो यह भी जोड़ती हैं कि यह पेरेंट्स बच्चों को केवल आजादी ही नहीं देते, बल्कि साथ ही जरूरी रिसोर्स, इमोशनल स्टेबिलिटी और सही फैसले लेने की समझ भी प्रदान करते हैं।

ऐसे बच्चों का आत्मबल होता है मजबूत

जो बच्चे सपोर्टिव पेरेंटिंग में पलते हैं, वे असफलताओं को एक अनुभव मानते हैं और अपने आत्म-सम्मान को किसी और की उम्मीदों से नहीं, बल्कि अपने जुनून और मेहनत से जोड़ते हैं। ऐसे बच्चे सिर्फ नौकरी नहीं करते, बल्कि अपने करियर में एक उद्देश्य के साथ आगे बढ़ते हैं।

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