सार

सुप्रीम कोर्ट ने बेंगलुरु के एक इंजीनियर कपल को अपनी शादी को दूसरा मौका देने की सलाह दी क्योंकि वे दोनों अपने वैवाहिक जीवन के लिए समय नहीं दे पा रहे थे।

रिलेशनशिप डेस्क.सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने तलाक के मामले में एक टिप्पणी की जो चर्चा का विषय बना हुआ है। दरअसल, बेंगलुरु के एक इंजीनियर कपल ने सुप्रीम कोर्ट में तलाक की अर्जी दाखिल की थी,क्योंकि दोनों एक दूसरे को वक्त नहीं दे रहे थे। इस मामले में सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने दोनों को कहा कि आप दोनों अपनी शादी को दूसरा मौका क्यों नहीं देते हैं।

शादी को दूसरा मौका क्यों नहीं देते

जस्टिस के एम जोसेफ और बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा, 'शादी का समय कहां है? आप दोनों बेंगलुरु में तैनात सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। एक दिन में ड्यूटी पर जाता है और दूसरा रात में। आपको तलाक का कोई अफसोस नहीं है लेकिन शादी के लिए पछता रहे हैं। आप शादी को दूसरा मौका क्यों नहीं देते।'

सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता केंद्र भेजा गया था

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि बेंगलुरु ऐसी जगह नहीं है जहां इतनी बार तलाक होते हैं और कपल अपने मिलन के लिए मौका दे सकता है।हालांकि, पति और पत्नी दोनों के वकीलों ने पीठ को बताया कि इस याचिका के लंबित रहने के दौरान, पक्षों को उनके बीच समझौते की संभावना तलाशने के लिए सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता केंद्र भेजा गया था।

पति पत्नी को कुल 12.51 लाख रुपये देगा

सुप्रीम कोर्ट की बेंच को सूचित किया गया कि कपल एक समझौते पर सहमत हो गए हैं, जिसमें उन्होंने कुछ नियमों और शर्तों पर हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13बी के तहत आपसी सहमति से तलाक के जरिए अपनी शादी को भंग करने का फैसला किया है।वकीलों ने पीठ को सूचित किया कि शर्तों में से एक यह थी कि पति स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में पत्नी को कुल 12.51 लाख रुपये का भुगतान करेगा।

पीठ ने 18 अप्रैल के अपने आदेश में कहा, ‘इस अदालत ने सवाल किया तो पार्टियों ने कहा कि वे वास्तव में अपने विवादों को अलग-अलग तरीके से सुलझाने और आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए सहमत हुए हैं। वे यह भी कहते हैं कि निपटान की शर्तें उनके द्वारा पालन किया जाएगा और इसलिए, आपसी सहमति से तलाक के जरिए विवाह को भंग किया जा सकता है।’ 

स्पेशल परिस्थिति में दिया जा सकता है तलाक

पीठ ने कहा कि हमने निपटान समझौते के साथ-साथ संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत दायर आवेदन को रिकॉर्ड में लिया है। हमने वही पढ़ा है। अवलोकन करने पर, हम पाते हैं कि निपटान समझौतों की शर्तें वैध हैं। इसमें कोई कानूनी बाधा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुछ परिस्थितियों में हम संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हैं और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 बी के तहत आपसी सहमति से तलाक द्वारा शादी को भंग करते हैं।

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