सार

सीजेआई एक इंटरव्यू में सुप्रीम कोर्ट के चर्चित फैसलों पर बात कर रहे थे। उन्होंने सेम सेक्स मैरिज को वैध करने से इनकार करने वाले पांच जजों की संविधान पीठ के फैसले के बारे में भी बात की।

Article 370 scrapping verdict: जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले पर भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से निर्णय दिया था। ज्यूडिशियरी में इस फैसले को लेकर कोई विवाद नहीं था।

सीजेआई एक इंटरव्यू में सुप्रीम कोर्ट के चर्चित फैसलों पर बात कर रहे थे। उन्होंने सेम सेक्स मैरिज को वैध करने से इनकार करने वाले पांच जजों की संविधान पीठ के फैसले के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा कि कोर्ट में पहुंचने वाले केस के नतीजे किसी भी जज के लिए व्यक्तिगत केस नहीं होता है। उन्होंने स्वीकार किया कि समलैंगिक जोड़ों ने अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए कठिन और लंबी लड़ाई लड़ी।

दरअसल, बीते 17 अक्टूबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट की पांच-जजों की बेंच ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया लेकिन समलैंगिक लोगों के लिए समान अधिकारों और उनकी सुरक्षा को मान्यता दी।

फैसला देने के बाद परिणाम से खुद को दूर कर लेता हूं

देश के 50वें सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा: एक बार जब आप किसी मामले का फैसला कर लेते हैं तो आप परिणाम से खुद को दूर कर लेते हैं। एक न्यायाधीश के रूप में परिणाम हमारे लिए कभी भी व्यक्तिगत नहीं होते हैं। मुझे कभी कोई पछतावा नहीं होता है। हां, मैं कई मामलों में बहुमत में रहा हूं और कई मामलों में अल्पमत में हूं। लेकिन एक न्यायाधीश के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा कभी भी खुद को किसी मुद्दे से नहीं जोड़ना है। किसी मामले का फैसला करने के बाद, मैं इसे वहीं छोड़ देता हूं।

आलोचना से कोई फर्क नहीं पड़ता

जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म करने के लिए संसद के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर के बाद इस फैसले की आलोचना हो रही है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि जज अपने फैसले के माध्यम से अपने मन की बात कहते हैं जो फैसले के बाद सार्वजनिक संपत्ति बन जाती है और एक स्वतंत्र समाज में लोग हमेशा इसके बारे में अपनी राय बना सकते हैं। जहां तक हमारा सवाल है हम संविधान और कानून के मुताबिक फैसला करते हैं। मुझे नहीं लगता कि मेरे लिए आलोचना का जवाब देना या अपने फैसले का बचाव करना उचित होगा। हमने अपने फैसले में जो कहा है वह हस्ताक्षरित फैसले में मौजूद कारण में परिलक्षित होता है और मुझे इसे वहीं छोड़ देना चाहिए।

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