सार
सिक्किम में आए विनाशकारी बाढ़ ने हजारों लोगों को प्रभावित किया है। दर्जन भर से ज्यादा मौते हो चुकी हैं जबकि 100 से भी ज्यादा लोग लापता है, जिनके बचने की उम्मीद न के बराबर है।
Sikkim Flash Flood. सिक्किम में तीस्ता नदी में अचानक आई बाढ़ ने लोगों को बचने तक का मौका नहीं दिया। सैकड़ों लोग लापता हैं और दर्जन भर से ज्यादा मौते हो चुकी हैं। रिपोर्ट्स की मानें तो बाढ़ ने 20,000 लोगों का घर बार छीन लिया है। 3000 से ज्यादा टूरिस्ट जगह-जगह फंसे हुए हैं। अब मन में सवाल उठता है कि आखिर इस प्रलयंकारी बाढ़ का कारण क्या है?
सिक्किम में विनाशकारी बाढ़ का कारण
सिक्किम में ज्यादा बारिश सबसे पहला कारण है, इसके अलावा ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) की वजह से अचानक तीस्ता नदी में इतना पानी समा गया कि नदी ने विकराल रूप धारण कर लिया। इस बाढ़ में इंसान ही नहीं जानवर, पुल और सड़कें तक बह गईं। सिक्किम का इंफ्रास्ट्रक्चर बर्बाद हो गया। सिक्किम को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाला नेशनल हाईवे-10 भी क्षतिग्रस्त हो गया। चंगठंग डैम ने कई छोटे-छोटे गांवों में भारी तबाही मचाई और रीवर वैली के कई शहरों का आधारभूत ढांचा डैमेज हो गया। सिक्किम के मंगन, गंगटोक, पाकयोंग, नामची जिले सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। साइंटिस्ट यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं क्यों ऐसा हुआ।
क्या होता है ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF)
- ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड में अचानक ही ग्लेशियल झीलों का पानी बढ़ जाता है। ग्लेशियर पिघलने की वजह से ऐसा होता है। पहाड़ी एरिया में ऐसे बहुतायत ग्लेशियर पाए जाते हैं। ग्लेशियर पिघलने और अचानक पानी का स्तर बढ़ाने में की फैक्टर काम करते हैं।
- तेजी से ग्लेशियर पिघलना- तापमान में तेज बढ़ोत्तरी और क्लाइमेट चेंज की वजह से ग्लेशियर फिघलने लगते हैं जिससे ग्लेशियल झीलों का पानी बढ़ जाता है।
- लैंडस्लाइड होना- जब पहाड़ी एरिया में भूस्खलन होता है तो वह डैम्स और झीलों के बैरियर को तोड़ देता है, जिससे उनका पानी बाहर निकलने लगता है।
- भूकंप आना- ऐसे एरिया में सिस्मिक एक्टिविटी यानी भूकंप आने की वजह से भी बर्फ पिघलने लगती है और पानी बाहर निकलने लगता है।
- ज्वालामुखी प्रभाव- पहाड़ी स्थानों पर किसी भी तरह की वाल्कैनिक गतिविधि की वजह से भी ग्लोफ बनता है और बर्फ पिघलने लगती है। जिससे पानी बाहर निकल जाता है।
- जब भी ऐसा होता है तो अचानक ही बहुत ज्यादा मात्रा में पानी रिलीज होता तो निचले इलाकों की तरफ बढ़ता है। यही वजह है कि अचानक आई बाढ़ तबाही मचा देती है।
ग्राउंड जीरो पर क्या हुआ
दक्षिण ल्होनक झील करीब 5200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस झील के उत्तर में लगभग 6800 मीटर की दूरी पर बर्फ से ढकी हुई विशाल झील है। बुधवार सुबह करीब 6 बजे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी) से मिली सैटेलाइट इमेजरी ने आधे से अधिक झील के बह जाने का संकेत दिया। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार केंद्रीय जल आयोग के निगरानी स्टेशनों ने बताया कि पानी की प्रारंभिक वृद्धि करीब 1.30 बजे संगकलांग में अधिकतम जल स्तर से 19 मीटर ऊपर थी। यह खतरनाक खबर मिलने पर तुरंत निचले इलाकों में अलर्ट जारी कर दिया गया। फिर एनडीआरएफ और एसडीआरएफ, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस सहित विभिन्न एजेंसियों ने राहत और बचाव कार्य शुरू किए। ऊपरी इलाकों में लगातार बर्फबारी और निचले इलाकों में जारी बारिश की वजह से हेलीकॉप्टरों की तैनाती और राहत कार्यों में चुनौतियां खड़ी हो रही हैं। फिर भी सभी एजेंसियां रेस्क्यू में जुटी हैं और राहत शिविर भी बनाए गए हैं।
कैसे रोकी जा सकती है ऐसी प्राकृतिक आपदा
हिमालय के पर्वतीय एरिया में कई हिम नदियां, झीलें हैं। इनकी अनुमानित संख्या लगभग 7500 है। इनमें लगभग 10 प्रतिशत सिक्किम में हैं। करीब 25 झीलों को बेहद खतरनाक माना जाता है। इन झीलों में संभावित जीएलओएफ घटनाओं को रोकने के लिए एनडीएमए ने दो झीलों का सर्वे किया और अर्लट जारी किया। एनडीएमए की प्लानिंग है कि 56 हिमनद और झीलों में अधिकांश पर प्राइमरी अलर्ट सिस्टम स्थापित किया जाए। इस काम को जितना जल्दी हो सके पूरा किया जाना है। इसके साथ ही ऐसे एरिया में जहां अत्यधिक बारिश होती है, वहां के लिए तत्काल रिस्पांस के लिए एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल का सिस्टम बनाया जाए। ताकि वास्तविक समय पर एजेंसियां खतरे को भांपते हुए राहत और बचाव कार्य शुरू कर सकें।