सार

जम्मू कश्मीर में सूफीवाद को फिर से जीवंत बनाने के लिए सरकार काम कर रही है और सूफी संतों की मजारों को फिर से विकसित किया जा रहा है। लेकिन पाकिस्तान के आतंकवादियों ने कश्मीर में सूफीवाद खत्म करने की नाकाम कोशिश की थी।

Sufism In Kashmir. यह बात 11 मई 1995 की है जब कश्मीर के चरार-ए-शरीफ दरगाह को आग के हवाले कर दिया गया था। यह सिर्फ एक धार्मिक स्थल ही नहीं बल्कि कश्मीर के संरक्षरक संत शेख नूरूद्दीन नूरानी यानि नंद ऋषि का विश्राम स्थल भी था। वे कश्मीर के सभी धर्मों में पूजनीय थे। उस घटना के बाद घाटी शोक में डूबी हुई थी और अधिकारियों ने कर्फ्यू के सख्त आदेश का ऐलान कर दिया।

पाकिस्तानी आतंकी मस्त गुल ने किया तबाह

पाकिस्तान के आतंकी मस्त गुल की अगुवाई में आतंकवादियों ने धर्मस्थल पर नियंत्रण कर लिया था। बीएसएफ के जवान उस पर और उसके साथी 20 आतंकवादियों पर नजर रखने के लिए आसपास की पहाड़ियों पर तैनात थे। मस्त गुल ने घनी आबादी वाले कस्बे के केंद्र में स्थित लकड़ी के बने मंदिर से मीडियाकर्मियों को इंटरव्यू दिया। इस दौरान पत्रकारों ने मस्त गुल के लोगों द्वारा मशीनगन लहराने के इशारे भी देखे। शहर के लोगों ने मंदिर में जाना बंद कर दिया। उन्होंने मस्त गुल और उसके लोगों को रसोई गैस के छोटे-छोटे सिलिंडरों में विस्फोटक भरते और प्लांट करते देखा। तब सूफीवाद का यह केंद्र युद्ध क्षेत्र में बदल गया था।

मस्त गुल ने किया था वह भयंकर विस्फोट

पश्तो बोलने वाला मस्त गुल पाकिस्तान सेना में पहले मेजर था। कोई आश्चर्य नहीं कि उसने वहां आग लगाने के बाद सावधानी से शहर से भागने की योजना बनाई थी। इस घटना में उसके 15 आतंकवादी जिंदा जला दिए गए थे। भारतीय सेना आग बचाने की कोशिश में थी क्योंकि आग से आम लोगों को भी खतरा था। सेना ने मस्त गुल को थका देने की रणनीति बनाई और उसे एक ही जगह घेरकर रखा। तब तक कई घर भी जल गए। खबर जंगल में आग की तरह फैल गई थी। लोगों के फोन बज रहे थे और चरार-ए-शरीफ के प्रति चिंता दिखा रहे थे। अधिकारियों को आश्चर्य था कि दूसरे धर्मों के लोग भी मस्जिद के लिए फोन कर रहे थे।

पाकिस्तानी आतंकियों ने चरार-ए-शरीफ को क्यों चुना

कोई आश्चर्य नहीं कि मस्त गुल और पाकिस्तान के कश्मीर प्रबंधकों ने इस तीर्थस्थल को इसलिए चुना ताकि भारतीय आतंकवाद विरोधी बलों की रणनीति फेल कर दी जाए। रणनीतिक तौर पर पाकिस्तान ने एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश की। इसकी सोच थी कि दरगाह को जलाने के खिलाफ कश्मीर आग की लपटों में घिर जाएगा। बाद में लोग इसके बारे में भूल जाएंगे। कई साल के बाद अफगान आतंकवादी चमन गुल ने विकीलीक्स को बताया कि मस्त गुल पाकिस्तानी सेना में सेवारत मेजर था। वह कश्मीर में छद्म युद्ध छेड़ने के अलावा पाकिस्तानी युवाओं को कट्टरपंथी बनाना चाहता था। 

फिर से गुलजार हुआ कश्मीर का यह दरगाह

शुरुआती वर्षों में पाकिस्तान समर्थक हिजबुल मुजाहिदीन ने कश्मीरियों को उस दरगाह में जाने से प्रतिबंधित कर दिया। वहां पर प्रसिद्ध उर्स मेला न होने से स्थानीय लोग भी दुखी थे। अब चरार-ए-शरीफ दरगाह का पुनर्निर्माण किया गया है और यह एक भव्य इमारत है। मस्त गुल और पाकिस्तान कुछ भी कर ले लेकिन सूफी संतों के प्रति कश्मीरियों की श्रद्धा की भावना को कभी नहीं मार सकते।

कंटेंट सोर्स- आवाज द वॉयस

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