सार

भारत ने सौर ऊर्जा से संचालित एक मानव रहित विमान विकसित किया है जो 90 दिनों तक लगातार उड़ान भर सकता है। यह उपलब्धि भारत को उच्च ऊंचाई वाले प्लेटफॉर्म बनाने वाले देशों की श्रेणी में शामिल करती है।

नेशनल न्यूज। एयरोस्पेस तकनीक के क्षेत्र में भारत लगातार आसमान की उंचाइयों को छू रहा है। अब देश ने एक और बड़ी उपलब्धि हासिल की है। बेंगलुरु स्थित नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेटरी में सौर ऊर्जा से चलने वाला एयरक्राफ्ट विकसित किया गया है। खास बात ये है कि यह विमान लगातार 90 दिनों तक आसमान में उड़ान भरने में सक्षम है। भारतीय एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में यह बहुत बड़ी अचीवमेंट है। यह भारत अब हाई एल्टीट्यूड प्लेटफॉर्म बनाने वाले कुछ देशों के श्रेणी में शामिल करती है। प्लेन के एक छोटे मॉडल का सफल परीक्षण भी किया जा चुका है।  

सोलर पावर से संचालित पहला मानव रहित एयरक्राफ्ट
एयरोस्पेस लेबोरेटरी की ओर से विकसित यह पहला सोलर पावर से उड़ान भरने वाला मानव रहित एयरक्राफ्ट है। यह अपने आप में बेहद अद्भुत है। हालांकि इसे लेकर अभी और कई तरह के निरीक्षण भी किया जा रहे हैं, लेकिन फिलहाल भारत के नाम ये नई उपलब्धि जुड़ चुकी है। 

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5जी सिग्नल प्रसारित करने की क्षमता
एचएपीएस किसी ड्रोन कि तरह है जो एक समान स्थिति में काम कर रहा है। कॉमर्शियल एयर ट्रैफिक से काफी ऊपर उठकर ये अपने एप्लीकेशंस में कई सारी विशेषताएं रखता है। इस एयरक्राफ्ट का प्रयोग निगरानी करने से लेकर 5जी सिग्नल प्रसारित करने तक के लिए हो सकता है। इस हाईटेक तकनीक के बारे में 12 से 15 सितंबर तक आयोजित भारत रक्षा विमानन प्रदर्शनी में जानकारी दी गई थी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एयरोस्पेस प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति का प्रदर्शन करते हुए इस कार्यक्रम का उद्घाटन किया था।

फरवरी में एनएएल ने छोटे क्राफ्ट का किया था परीक्षण
एनएएल ने चैलकेरे में फरवरी में एचएपीएस प्रोटोटाइप या छोटे एयरक्राफ्ट का सफल परीक्षण किया था। हालांकि इसकी लंबाई सिर्फ पांच मीटर थी और यह कुल 23 किलोग्राम का ही था। वैज्ञानिकों का मानना है कि 2027 तक वह 30 मीटर पंखों वाला और 100 किलो वजन वाला एयरक्राफ्ट तैयार कर लेगा। यह 15 किलोग्राम वजन पेलोड ले जाने में सक्षम होगा। 

क्या होता है सोलर एयरक्राफ्ट
सौर ऊर्जा से चलने वाले विमान वे होते हैं जिसमें सौर कोशिकाओं से मिलने वाली ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं। इसमें बैटरी या हाईड्रोजन का प्रयोग कर एनर्जी स्टोर की जाती है। इसमें लगा सोलर पैनल विमान के कुल वजन का करीब 25 फीसदी होता है।