सार
कोरोनावायरस महामारी का असर खेलों पर भी बहुत ज्यादा पड़ा है। स्पोर्ट्स एक्टिविटीज करीब-करीब बंद हैं। इससे उन युवा एथलीट्स को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है, जो कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि वाले परिवारों के हैं।
स्पोर्ट्स डेस्क। कोरोनावायरस महामारी का बुरा असर खेलों पर भी बहुत ज्यादा पड़ा है। स्पोर्ट्स एक्टिविटीज करीब-करीब बंद हैं। इससे उन युवा एथलीट्स को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है, जो कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि वाले परिवारों के हैं। ट्रेनिंग की तो छोड़ें, उन्हें सही डाइट तक नहीं मिल पा रही है। एक गिलास दूध की व्यवस्था तक कर पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है। यह हाल ऐसे एथलीट्स का है जो एशियन यूथ गेम्स में ब्रॉन्ज और गोल्ड मेडल तक हासिल कर चुके हैं। कोरोनावायरस महामारी के इस संकट भरे दौर में किसी ने अपनी फैमिली की मदद के लिए खेल छोड़ दिया है, तो कोई ठेले पर केले बेचने को मजबूर हो चुका है।
क्या कहना है एक कोच का
दिल्ली के जूनियर एथलीट्स को फ्री कोचिंग देने वाले पुरुषोत्तम का कहना है कि उनके पास अब बहुत कम एथलीट्स कोचिंग के लिए आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारे यहां फ्री कोचिंग की व्यवस्था है और पहले कई टैलेन्टेड युवा आते थे, लेकिन अब वे नहीं आ पा रहे हैं। इसकी वजह यह है कि उनके पास अपना कोई व्हीकल नहीं है और बस का किराया चुका पाना उनके लिए संभव नहीं है।
कई अच्छे एथलीट ने छोड़ दी ट्रेनिंग
ट्रेनर पुरुषोत्तम के यहां ट्रेनिंग लेने वालों में कई बेहतरीन एथलीट्स शामिल रहे हैं। 19 साल के मेराज अली ने 2017 में हुए एशियन यूथ मीट में हिस्सा लिया था। अब वह पूर्वी दिल्ली के त्रिलोकपुरी के एक किराए के कमरे में अपनी फैमिली के साथ रह रहा है। उसकी फैमिली में 6 लोग हैं, जिनमें दो कम उम्र की बहनें और एक बड़ा भाई है। ये सारे लोग एक ही कमरे में रहते हैं और आर्थिक परेशानी से जूझ रहे हैं।
बड़े भाई की छूट गई नौकरी
मेराज का बड़ा भाई एक कैब ड्राइवर था, जिसकी नौकरी लॉकडाउन में चल गई। उसके पिता बहरे हैं और मजदूरी करते हैं। उनकी कमाई से खाने का इंतजाम भी हो पाना संभव नहीं है। 15 सौ मीटर की दौड़ में महारत हासिल करने वाले मेराज का कहना है कि अब वे इस फील्ड में आगे नहीं बढ़ सकते। उनके पिता का पिछले साल किडनी का ऑपरेशन हुआ था और उन्हें आराम की जरूरत है, लेकिन परिवार चलाने के लिए वे मजदूरी कर रहे हैं। मेराज का कहन है कि एथलीट बनने का सपना उन्होंने छोड़ दिया है और किसी काम की तलाश में हैं, ताकि परिवार की मदद कर सकें।
एक के साथ नहीं है यह हाल
ऐसी बदहाली का सामना किसी एक एथलीट को नहीं करना पड़ रहा है। चेन्नई की लॉन्ग जंपर तबिता फिलिप महेश्वररन की हालत भी कुछ ऐसी ही है। वे 2019 में बैंकॉक में हुए एशियन यूथ एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में डबल गोल्ड मेडलिस्ट रही हैं। उनके पिता ऑटोरिक्शा चलाते हैं। अब तक एक एनजीओ उनकी मदद कर रहा था, लेकिन लॉकडाउन में फंड की कमी से अब उन्हें कोई मदद नहीं मिल पा रही है। उनका कहना है कि परिवार के तिए खाना जुटा पाना तक मुश्किल हो रहा है। ऐसे में, ट्रेनिंग और करियर के बारे में सोचा नहीं जा सकता। ऐसे एथलीट्स कई हैं, जो तंगी का सामना कर रहे हैं। दिल्ली के लोकेश कुमार 2019 में अंडर-14 मिडल डिस्टेंस चैम्पियन रह चुके हैं। वे तीन बस बदल कर ट्रेनिंग लेने जाते थे, लेकिन अब उनके लिए यह संभव नहीं रहा। उनके पिता रिक्शा चलाते हैं और मां मेड का काम करती हैं। उनका कहना है कि लॉकडाउन में उनके परिवार के सामने भूखे रहने की नौबत तक आ गई। जब उनके पास खाने को कुछ नहीं होता था, तब गर्म पानी पीकर सो जाते थे। ये कुछ उदाहरण हैं। इस तरह की समस्या से जूझ रहे एथलीट्स की संख्या काफी ज्यादा है।