सार
5 सितंबर को पूरे भारत के टीचर को समर्पित शिक्षक दिवस बड़े आदर और सम्मान के साथ मनाया जाता है। क्योंकि शिक्षक सिर्फ हमे पढ़ाता ही नहीं है, बल्कि हमें जीवन जीने के सही-गलती की सीख भी देता है। लेकिन राजस्थान के सीकर ने एक ऐसी मिसाल पेश की है जो तारीफ करने काबिल है।
सीकर (राजस्थान). यदि मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो हालात व हुकूमत मायने नहीं रखती। ये साबित कर दिखाया है सीकर की पाटन तहसील के छाजा की नांगल के महात्मा गांधी स्कूल के प्रधानाचार्य विवेक जांगिड़ ने। जिनका आठ साल में छह बार तबादला होने के बाद भी उन्होंने हौंसला खोया और जो भी स्कूल मिला उसी का कायाकल्प कर दिया। प्लास्टिक के कचरे से ईंट बनाकर स्कूल में निर्माण कार्य कर पर्यावरण सुरक्षा का नवाचार करने वाले विवेक जिला स्तर सहित राज्य स्तर के भामाशाह अवार्ड सहित कई अवार्ड हासिल कर चुके हैं।
कहीं मेला लगाया, कहीं मनाया त्योहार
जांगिड़ अपने नवाचारों के लिए शिक्षा विभाग में अपनी अलग पहचान रखते हैं। उनकी पहली नियुक्ति 2013 में रामावि श्यामपुरा में हुई। जहां उन्होंने विद्यालय वाटिका, सरकारी स्कूलों का बाल मेला, आर्ट एंड क्राफ्ट प्रदर्शनी, स्टाफ के लिए ड्रेस कोड लागू करने के अलावा स्कूल में दीपावली का पर्व मनाने सरीखे नवाचार किए। जिनसे प्रभावित होकर उन्हें कलक्टर ने सम्मानित किया। बाद में राउमावि काशी का बास में तबादला होने पर उन्होंने भामाशाहों को स्कूल से जोड़कर अद्भुत भारत गलियारा, दुर्गा पूजा महोत्सव तथा 14 स्कूलों का कॅरियर सेमिनार आयोजित किया। फिर जिले से बाहर अजमेर तबादला हुआ तो उन्होंने राउमावि शिखरानी में बच्चों की रचनाओं पर स्पंदन पत्रिका का प्रकाशन कराया। जिसकी तत्कालीन निदेशक सौरभ स्वामी ने भी सराहना की। बाद में राउमावि काबरा गजानंद में डांडिया रास का आयोजन भी शिक्षा जगत में नवाचार की अनूठी मिसाल बना।
प्लास्टिक के कचरे से कराया निर्माण, बनाया ग्रीन जोन
विवेक जांगिड़ ने अपने दोस्तों के साथ प्लास्टिक मुक्ती का भी अभियान चला रखा है। इसके लिए वे सिंगल यूज प्लास्टिक के कचरे को एक बोतल में भरवाकर घर घर से जमा करते हैं और फिर उस बोतल का ईंट के रूप में उपयोग कर पर्यावरण संरक्षण का काम भी कर रहे हैं। अपनी छाजा की नागंल स्कूल में उन्होंने इसी तर्ज पर निर्माण कार्य के साथ ग्रीन जोन बनाकर पर्यावरण सुरक्षा का बड़ा संदेश दिया है।
एक करोड़ से ज्यादा का करवाया काम
स्कूलों के विकास के लिए विवेक भामाशाहों को प्रेरित करने के साथ खुद भी अपने वेतन से राशि खर्च करते हैं। अपने कार्यकाल में वे अपनी राशि के अलावा भामाशाहों के सहयोग से एक करोड़ रुपये से ज्यादा का काम विभिन्न स्कूलों में करवा चुके हैं। भामाशाहों के सहयोग से विकास कार्य करवाने पर वे राज्य स्तरीय भामाशाह प्रेरक पुरस्कार से सम्मनित हो चुके हैं।