सार

Kaal bhairav jayanti 2023: इस बार कालभैरव अष्टमी का पर्व 5 दिसंबर, मंगलवार को मनाया जाएगा। इसे कालभैरव जयंती भी कहते हैं। कालभैरव भगवान शिव के प्रमुख अवतारों में से एक है। इनके अनेक मंदिर हमारे देश में स्थित है।

 

Kaal bhairav Ki Katha: धर्म ग्रंथों के अनुसार, अगहन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इसे कालभैरव जयंती भी कहते हैं। इस बार ये पर्व 5 दिसंबर, मंगलवार को मनाया जाएगा। शिवपुराण के अनुसार, कालभैरव भगवान शिव के अवतार हैं। कालभैरव अत्यंत क्रोधी स्वभाव के हैं। भगवान शिव को ये अवतार क्यों लेना पड़ा? आगे जानिए कालभैरव अवतार की कथा…

ये है कालभैरव अवतार की कथा
शिवपुराण के अनुसार, एक बार ब्रह्मदेव को अभिमान हो गया और वे स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानने लगे। वेदों से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने शिवजी को ही परम तत्व बताया। ब्रह्मदेव ने उनकी इस बात का खंडन कर दिया। तभी वहां एक तेज प्रकाश के साथ पुरुषाकृति दिखलाई पड़ी।
महादेव ने पुरुषाकृति से कहा कि ‘काल की तरह शोभित होने के कारण आप कालराज हैं। भीषण होने से भैरव हैं। काल भी आपसे भयभीत रहेगा, अत: आप कालभैरव हैं।’ शिवजी से इतने वरदान पाकर कालभैरव ने अपनी उंगली के नाखून से ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया।
ब्रह्मा का सिर काटने से कालभैरव पर ब्रह्महत्या का पाप लगा और ब्रह्मा का मस्तक उनके हाथ से चिपक गया। तब शिवजी ने कालभैरव को काशी जाने को कहा। काशी में पहुंचते ही ब्रह्मा का सिर उनके हाथ से अलग हो गया। शिवजी ने कालभैरव को काशी का कोतवाल नियुक्त कर दिया।
काशी में भगवान कालभैरव का अति प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर हैं। जब भी कोई व्यक्ति काशी में भगवान विश्वनाथ के दर्शन करने जाता है तो उसे कालभैरव के दर्शन करना जरूरी होता है। इसके बिना काशी तीर्थ यात्रा का पूरा फल नहीं मिलता, ऐसा धर्म ग्रंथों में बताया गया है।
भगवान भैरवनाथजी तंत्र-मंत्र विधाओं के ज्ञाता हैं। तंत्र शास्त्र में इनके 52 रूप बताए गए हैं। इनकी कृपा से हर तरह के संकट दूर हो जाते हैं और किसी तरह का कोई भय भी नहीं सताता। कालभैरव भगवान शिव के सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले अवतारों में से एक हैं।


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