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Adhik Maas 2023: हर तीसरे साल क्यों आता है ये अधिक मास? धर्म ही नहीं साइंस से भी जुड़ा है इसका कनेक्शन
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जानें अधिक मास से जुड़ी खास बातें...
हिंदू पंचांग का पांचवां महीना सावन 4 जुलाई से शुरू हो चुका है। ज्योतिषियों के अनुसार, इस बार सावन का अधिक मास रहेगा यानी ये महीना 30 दिनों का न होकर 59 दिनों का रहेगा। (Adhik Maas 2023) अधिक मास के बारे में सुना सभी ने होगा, लेकिन अधिक मास क्यों आता है और हिंदू पंचांग में इसकी व्यवस्था क्यों की गई। इसके बारे में कम ही लोग जानते हैं। इसके पीछे सिर्फ धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक कारण भी छिपा है। आगे जानिए अधिक मास से जुड़ी खास बातें…
कब से शुरू होगा अधिक मास? (Adhik Maas 2023 Date)
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. प्रवीण द्विवेदी के अनुसार, सावन का अधिक मास 18 जुलाई से शुरू होगा, जो 16 अगस्त तक रहेगा। यानी अधिक मास 30 दिनों का रहेगा। धर्म ग्रंथों में इसे मल मास और पुरुषोत्तम मास भी कहा गया है। इस महीने के स्वामी स्वयं भगवान विष्णु हैं। इसलिए इस महीने में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व धर्म ग्रंथों में बताया गया है।
19 साल बाद फिर वही संयोग
इस बार सावन का अधिक मास 19 साल पहले के इतिहास को दोहराएगा। ज्योतिषाचार्य पं. प्रवीण द्विवेदी के अनुसार, इसके पहले साल 2004 में सावन का अधिक मास का संयोग बना था। उस साल भी सावन का अधिक मास 18 जुलाई से शुरू होकर 16 अगस्त तक रहा था। ऐसा ही संयोग इस बार भी बन रहा है। हिंदू पंचांग और अंग्रेजी कैलेंडर का ऐसा दुर्लभ संयोग बहुत कम बार देखने में आता है।
ये है अधिक मास का साइंस कनेक्शन (Science Connection of Adhik Maas)
लोग अधिक मास को सिर्फ धर्म से जोड़कर देखते हैं जबकि इसका वैज्ञानिक कारण भी है। हमारे पूर्वजों ने ये पहले ही जान लिया था कि चंद्रमा को पृथ्वी के 12 चक्कर लगाने में 355 दिन का समय लगता है और पृथ्वी को सूर्य का चक्कर लगाने में 365 दिन का। इस तरह हर साल चंद्र वर्ष और सूर्य वर्ष में 10 दिनों का अंतर आ जाता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए अधिक मास की व्यवस्था की गई। अधिक मास के की व्यवस्था होने के कारण ही सभी हिंदू व्रत-त्योहार निश्चित ऋतुओं में मनाए जाते हैं।
अधिक मास न हो तो क्या होगा? (What will happen if there is no Adhik Maas?)
अगर हमारे विद्वानों ने अधिक मास की व्यवस्था न की होती तो हर साल चंद्र और सौर मास 10 दिनों का अंतर आता जाता। इसका नतीजा ये होता कि हमारे त्योहारों का महत्व ही समाप्त हो जाता। होली का त्योहार शीत ऋतु में तो दीपावली का त्योहार वर्षा ऋतु में मनाया जाता। इसके कारण लोगों के मन में त्योहारों को लेकर जो उत्साह रहता है वह भी खत्म हो जाता।
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Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।