सार
Cyclone Biporjoy: चक्रवात बिपरजॉय बहुत तेजी से गुजरात की ओर बढ़ रहा है। ये तूफान 16 जून, गुरुवार की शाम तक गुजरात के जखौ पोर्ट से टकराने की आशंका है। तुफान के कारण द्वारिकाधीश मंदिर में भी ध्वज बदलने पर रोक लगाई गई है।
उज्जैन. भगवान श्रीकृष्ण का प्रसिद्ध मंदिर द्वारिकाधीश हिंदुओं के 4 धामों में से एक है। इस मंदिर से जुड़ी कई परंपराएं है। प्रतिदिन ध्वज बदलना भी इनमें से एक है, लेकिन चक्रवात बिपरजॉय (Cyclone Biporjoy Latest News) के कारण कुछ दिनों से द्वारिकाधीश मंदिर का ध्वज नहीं बदला जा रहा है। ये तूफान 16 जून की शाम तक गुजरात पहुंच सकता है। इस समय इसकी रफ्तार 125 से 135 किमी/घंटा रहने का अनुमान है। आशंका है कि चक्रवात बिपरजॉय की तेज हवाओं के कारण द्वारिकाधीश मंदिर में ध्वज बदलने के दौरान हादसा हो सकता है। भगवान द्वारिकधीश मंदिर (Dwarkadhish Temple Gujarat) में ध्वज बहुत ही खास होता है और इसे बदलते समय बहुत सी बातों का ध्यान भी रखा जाता है। आगे जानिए इस ध्वज से जुड़ी खास बातें…
दिन में कितनी बार बदलते हैं ध्वज? (Dwarkadhish Temple tradition)
द्वारिकाधीश मंदिर में ध्वज दिन में 1 बार नहीं बल्कि 5 बार बदला जाता है। शायद ही कोई और ऐसा मंदिर होगा जहां प्रतिदिन 5 बार ध्वज बदलने की परंपरा हो। ध्वज चढ़ाने के लिए एडवांस बुकिंग की जाती है। यानी कोई भी आम श्रृद्धालु मंदिर समिति के नियमों का पालन करते हुए अपनी ओर से मंदिर का ध्वज लगवा सकता है। मंदिर में 5 बार आरती की जाती है, इसी दौरान ध्वज बदला जाता है।
कौन बदलता हैं मंदिर का ध्वज? (Tradition of changing the flag of Dwarkadhish temple)
मंदिर में ध्वज तो कोई भी भक्त अर्पित कर सकता है, लेकिन इसे शिखर पर जाकर बांधने का कार्य सिर्फ अबोटी ब्राह्मण भी करते हैं। ये ब्राह्मणों का एक खास समुदाय है जो द्वारिकाधीश मंदिर की पूजा-पाठ आदि से जुड़ा है। तय नियमों के अंतर्गत जिसे भी मंदिर में ध्वज चढ़ाने का मौका मिलता है, वो व्यक्ति ध्वज लेकर आता है और सबसे पहले इसे भगवान को समर्पित करता है। बाद में अबोटी ब्राह्मण वो ध्वज ले जाकर शिखर पर चढ़ा देते हैं।
कितना लंबा-चौड़ा होता है ये ध्वध?
द्वारकाधीश मंदिर में चढ़ाया जाने वाला ध्वज बहुत खास होता है। इसका परिमाण 52 गज की होती है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के काल में द्वारिका में 52
दरवाजे हुआ करते थे। इसलिए भगवान को 52 गज का ध्वज चढ़ाया जाता है। इस ध्वज पर सूर्य-चंद्रमा के प्रतीक बने होते हैं। मंदिर की आरती सुबह 7.30 बजे, सुबह 10.30 बजे, सुबह 11.30 बजे, संध्या आरती 7.45 बजे और शयन आरती 8.30 बजे होती है। इसी दौरान ध्वज चढ़ाए जाने की परंपरा है।
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Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।