बिहार-यूपी का कुख्यात गैंगस्टर मनीष कुशवाहा एक किसान का बेटा था। उस पर हत्या, लूट और रंगदारी जैसे 26 से अधिक मामले दर्ज थे। अंततः पुलिस की संयुक्त कार्रवाई ने उसके गैंग के नेटवर्क को ध्वस्त कर दिया। जानिए उसकी क्राइम डायरी..

बिहार-यूपी बॉर्डर पर स्थित छोटे-छोटे गाँवों में जब लोग सुबह की चाय पी रहे होते थे और खेतों में काम शुरू करने की तैयारी कर रहे होते थे, वहीं मनीष कुशवाहा का नाम सुनते ही लोगों के होंठ थर्रा जाते थे। एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही व्यापारी, मजदूर और आम लोग डर से कांप उठते थे। मनीष, जो कभी गोपालगंज के विशंभरपुर थाना क्षेत्र के निरंजना गांव में एक आम किसान का बेटा था, धीरे-धीरे यूपी-बिहार के सबसे कुख्यात गैंगस्टरों में शुमार हो गया।

किसान का बेटा और अपराध की राह

मनीष कुशवाहा का बचपन सामान्य बच्चों की तरह बीता। खेतों में हाथ बंटाना, परिवार की मदद करना और पढ़ाई करना उसका दिनचर्या थी। लेकिन किशोरावस्था में ही उसकी जीवनदृष्टि बदल गई। पढ़ाई-लिखाई के बजाय छोटी-छोटी लड़ाइयों और झगड़ों में उसे मज़ा आने लगा। धीरे-धीरे यह सिलसिला रंगदारी और अपराध तक पहुँच गया।

2000 के दशक में मनीष का नाम बिहार के आरा और भोजपुर इलाकों में सुर्खियों में आने लगा। उसने व्यापारियों को धमकाना शुरू किया और रंगदारी का धंधा स्थापित किया। स्थानीय गुटों से संपर्क के बाद उसने अपना गैंग बनाया, जिसे बाद में ‘कुशवाहा गैंग’ के नाम से जाना गया।

खौफ का साम्राज्य

मनीष कुशवाहा ने 26 से अधिक आपराधिक मामलों में नाम दर्ज कराया। हत्या से लेकर लूट, अपहरण, पुलिस पर हमला और बम ब्लास्ट तक, उसके खिलाफ दर्ज अपराध सूची खौफनाक थी।

2010 में गाजीपुर में एक व्यापारी की निर्मम हत्या ने उसके खतरनाक होने का संदेश दिया। बिहार में उसने अस्पताल मालिक से रंगदारी लेने के लिए ग्रेनेड फेंका और AK-47 से फायरिंग की। स्थानीय लोगों के अनुसार, उसके आदेश पर विरोधियों के सिर काटकर इलाके में फैलाने जैसी अफवाहें भी गूंजी गई।

गैंगवार और दबंगई का खेल

1990 के दशक से चली आ रही पांडे और कुशवाहा गुटों की दुश्मनी ने मनीष को चमकने का मौका दिया। उसने ललन पांडे जैसे दबंगों के खिलाफ खड़े होकर अपना नाम बनाया। व्यापारी धमकी पत्र, ‘H’ का कार्ड और शेर का सिंबल छोड़ना उसकी ट्रेडमार्क बन गया।

आरा टाउन में उसने एक्सटॉर्शन रैकेट चलाकर करोड़ों की उगाही की। महिलाओं और बच्चों को निशाना बनाने से भी वह नहीं रुका। उसके गैंग ने 200 से ज्यादा आपराधिक वारदातों को अंजाम दिया। इसके चलते इलाके की अर्थव्यवस्था और आम जनता पर गहरा असर पड़ा।

पुलिस और प्रशासन के साथ टकराव

मनीष की कुख्याति इतनी बढ़ गई थी कि बिहार और यूपी पुलिस उसके पीछे छापेमारी के लिए कई बड़े ऑपरेशन चलाने लगी। 2015 में दिल्ली में छिपे मनीष को स्पेशल सेल ने पकड़ा। बिहार पुलिस ने उसके सहयोगियों और नेटवर्क को उजागर किया। उसने कई बार पुलिस से मुठभेड़ की, 2020 में एनकाउंटर में घायल हुआ लेकिन बच निकला। इसके बाद यूपी एसटीएफ और बिहार पुलिस की संयुक्त कार्रवाई ने अंततः उसके गैंग का नेटवर्क तोड़ दिया।

तत्कालीन एसपी स्वर्ण प्रभात ने मनीष को टॉप-100 अपराधियों की सूची में शामिल किया। उसके घर की कुर्की कर बुलडोजर से मकान ध्वस्त किया गया। इसके बावजूद मनीष कई सालों तक फरार रहा।

अपराधी जीवन का खौफनाक रिकॉर्ड

मनीष कुशवाहा के 26 से अधिक केस थे, जिनमें हत्या, लूट, अपहरण, रंगदारी, पुलिस पर हमला, ग्रेनेड ब्लास्ट, AK-47 से फायरिंग, महिलाओं और बच्चों को धमकाना शामिल थे।

2010 में गाजीपुर में व्यापारी की हत्या, बिहार में अस्पताल मालिक से रंगदारी मांगने पर ग्रेनेड हमला और AK-47 से फायरिंग ने उसे कुख्यात बना दिया। यूपी-बिहार बॉर्डर पर उसके गैंग ने 100 से ज्यादा गांवों में दहशत फैला रखी थी।

गाजीपुर से आरा तक फैला साम्राज्य

मनीष ने अपराध की दुनिया में प्रवेश के साथ ही सीमांचल और पूर्वांचल के कई इलाकों में खौफ का साम्राज्य कायम किया। उसका नाम सुनते ही लोग डर से कांपते। व्यापारियों को धमकी भरे पत्र, ‘H’ का कार्ड और शेर का सिंबल छोड़ना उसकी पहचान बन गई।

अंततः कानून ने किया शिकंजा कस

मनीष कुशवाहा का साम्राज्य आखिरकार टूट ही गया। यूपी एसटीएफ और बिहार पुलिस की संयुक्त कार्रवाई ने उसके नेटवर्क को तोड़ दिया। 50 हजार रुपये का इनाम घोषित था। गिरफ्तार होने के बाद जेल में भी उसने मोबाइल से आदेश देने के सबूत दिए। आज मनीष कुशवाहा का नाम सिर्फ किस्सों और पुलिस रिकॉर्ड में बचा है। लेकिन उसके द्वारा फैलाई गई डर और खौफ की छाया अब भी उस इलाके की कहानियों में गूंजती है।