किसी मां-बाप के लिए बुढ़ापे में इससे बड़ा संकट और क्या होगा कि उन्हें भरे-पूरे परिवार के बावजूद दर-दर की ठोंकरे खानी पड़ रही हों। जिनके लिए दवाइयों और छत की छोड़िए, खाने तक के लाले पड़े हों। यह बुजुर्ग दम्पती कलेक्टर से सिर्फ इतना मांगने आया था कि उन्हें रहने के लिए सरकारी छत मुहैया करा दो।