सार

कहतें हैं कि कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो इंसान अपनी किस्मत भी पलट सकता है। राजस्थान के एक युवक  की कहानी ऐसी ही है। जो कभी दो वक्त की रोटी के लिए भटकता था, अब वह एक साल में दुबाई में बैठकर 80 लाख रुपए कमाता है।

बाड़मेर. अक्सर हमने तो यही सुना है कि गरीबी के हालात में पैदा होने वाला गरीबी में ही मर जाता है। लेकिन राजस्थान के एक युवा ने इस धारणा को गलत करके साबित दिखा दिया। यह वही युवा है जिसके पास कभी दो वक्त की रोटी का गुजारा नहीं हो पाता था लेकिन आज उसके चर्चे इंडिया ही नहीं बल्कि दुबई में भी है।

बाड़मेर के छोटे से गांव विशनाराम दुबई में का रहे लाखों

हम बात कर रहे हैं राजस्थान के बाड़मेर जिले के रहने वाले विशनाराम की। जो एक छोटे से गांव मंगले की बेरी के रहने वाले हैं। हाल ही में यह दुबई से अपने गांव में आए थे अपनी दोनों बेटियों की शादी करने के लिए। जिसकी तस्वीर नारी शक्ति पुरस्कार विजेता रूमा देवी ने अपने ट्विटर हैंडल पर भी पोस्ट की है। विशनाराम का जन्म 1978 में किसान गोरखाराम के घर पर हुआ। विशनाराम के एक भाई और चार बहनें है। विशनाराम जब सातवीं कक्षा में पढ़ते थे उसी दौरान उनकी माता हार्ट अटैक आने से निधन हो गया। बिना मां के पले बढ़े,और अपने कॉलेज की पढ़ाई पूरी की। इसी दौरान वह एक निजी बस में कंडक्टर की नौकरी करने लगे और अपनी पढ़ाई को भी बीच में छोड़ दिया। करीब 20 सालों तक काफी ज्यादा संघर्ष किया। दुबई चले गए। और वहां तेल के कुएं में खुदाई में उपकरण लगाने का काम करना शुरू कर दिया। शुरुआत में तो इनकी सैलरी काफी ज्यादा कम थी लेकिन अब यह सालाना 85 लाख रुपए कमा रहे हैं।

दुकान पर काम किया-ट्रक भी चलाया...अब बन गया लखपति

विशनाराम केवल कंडक्टर की नौकरी ही नहीं बल्कि इसके अलावा सूरत में हीरो की घिसाई का काम भी कर चुके हैं इन्होंने बर्तन की दुकान पर भी काम किया और फिर एक मोबाइल की दुकान पर इसके बाद एक प्राइवेट ट्रांसपोर्ट कंपनी में ट्रक भी चलाया। लखपति होने के बाद भी विशनाराम ने अपनी बेटियों की शादी गांव में आकर इसलिए की क्योंकि उनका मानना है कि भले ही आज वह कुछ भी हो ना हो लेकिन इसी गांव में वह पले बढ़े और उन्हें संस्कार मिले। आपको बता दें कि विशनाराम ने कई बार सरकारी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की। लेकिन उनका सिलेक्शन नहीं हो पाया था।