सार

राजस्थान की तीन पढ़ी-लिखी बेटियां सांसारिक सुखों को त्यागकर जैन धर्म की दीक्षा ले रही हैं। सांचौर, बाड़मेर की इन बेटियों ने परिवार की सहमति से संयम का रास्ता चुना है।

जयपुर. कहा जाता है कि यदि ईश्वर से प्रेम हो जाए तो उसके सामने कुबेर का खजाना और सुख सुविधा कुछ भी नहीं है।ऐसा ही कुछ राजस्थान की तीन बेटियों के साथ हुआ। जो अब जैन धर्म की दीक्षा लेने जा रही है। पढ़ाई में होशियार और अच्छे घराने से ताल्लुक रखने वाले बेटियां अब संयम के पथ पर चलेगी। इनकी पूरे देश में चर्चा है।

27 साल की साक्षी ने सब त्यागकर सयंम के पथ पर…

सबसे पहले बात सांचौर शहर के महावीर कॉलोनी की रहने वाली साक्षी की। इनकी उम्र केवल 27 साल है। पिता की 2015 में हार्ट अटैक से मौत हो गई। साक्षी बचपन से पढ़ाई में होशियार है। यहां तक की बीएससी के अंदर भी इन्होंने 86% अंक हासिल किए। परिवार का सपना था कि बेटी इंजीनियर बने लेकिन 2020 में जब चातुर्मास कार्यक्रम में साक्षी गई तो वहां 10 दिनों तक उसने धर्म गुरुओं की बात सुनी। तभी से उसने मन बना लिया था कि वह वैराग्य धारण करेंगी। उन्होंने यह बात अपने घरवालों को बताई। घर वाले पहले तो मानने को तैयार नहीं हुए लेकिन बाद में उन्होंने भी मंजूरी दे दी। अब वह संयम के पथ पर अपना जीवन बिताएगी।

बाड़मेर की भावना बचपन से ही धार्मिक

इसी तरह बाड़मेर की रहने वाली भावना जो शुरू से ही धार्मिक प्रवृत्ति की रही है। उसे बाकी लोगों की तरह घर के बाहर घूमने और फिल्में देखने का बिल्कुल भी शौक नहीं था। काफी सालों पहले से उनकी इच्छा संयम के पथ पर चलने की थी। लेकिन उन्होंने अपने घर पर नहीं बताया। बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अपनी मां प्यारी देवी को यह बात बताई तो मां ने हां कर दी।

दीक्षा लेक्चरर बनना चाहती थी…लेकिन अब

वहीं बाड़मेर की ही रहने वाली दीक्षा जो बीकॉम कर चुकी है और आगे लेक्चरर बनना चाहती थी लेकिन 2020 में वह कोरोना के दौरान साध्वी विद्युतप्रभा के संपर्क में आई तब से ही उनका मन बदल गया। पहले तो घर वाले तैयार नहीं हुई लेकिन अब घरवालों के मानने के बाद वह भी संयम के पथ पर अपना जीवन बिताएगी।