सार
भगवान श्रीकृष्ण का एक मंदिर ऐसा भी है, जहां भक्त सामने दरवाजे से जाकर भगवान की प्रतिमा के दर्शन नहीं करते बल्कि, मंदिर के पिछले हिस्से में बनी खास खिड़की से प्रतिमा के दर्शन करते हैं। इसे चामात्कारिक खिड़की भी कहा जाता है।
उडुपी (कर्नाटक)। श्रीकृष्णा जन्माष्टमी का पर्व कुछ शहरों में आज पूरे हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जा रहा, जबकि कई शहरों में इसे कल यानी शुक्रवार, 19 अगस्त को मनाया जाएगा। देशभर में स्थित तमाम श्रीकृष्णा मंदिर के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के मथुरा में जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। वैसे तो भारत में श्रीकृष्ण जी को समर्पित बहुत से मंदिर हैं, मगर मथुरा के वृंदावन में देश-विदेश से खासतौर पर लोग इस पर्व को मनाने के लिए आते हैं। वहीं, महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश के कई शहरों में जन्माष्टमी के अगले दिन दही हांडी की खास परंपरा है।
हालांकि, यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण का एक मंदिर ऐसा भी है, जहां लोग सीधे भगवान की प्रतिमा के दर्शन नहीं कर सकते। दर्शन के लिए उन्हें खिड़की से उन्हें देखना पड़ता है। इस खिड़की को लोग चामात्कारिक मानते हैं और इसके जरिए भगवान के दर्शन करना शुभ समझा जाता है। लोगों का मानना है कि इस खिड़की से भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा के दर्शन करने का सौभाग्य किस्मत वालों को ही हासिल होता है।
कर्नाटक के उडुपी जिले में है यह विशेष मंदिर
भक्तों का यह भी मानना है कि इस खिड़की से वे ही भक्त भगवान की प्रतिमा के दर्शन कर पाते हैं, जिन्हें खुद भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह चामात्कारिक खिड़की कर्नाटक के उडुपी जिले के श्रीकृष्ण मंदिर में है, जो देशभर में भगवान बांके बिहारी लाल के प्रसिद्ध मंदिर में से एक है। पौराणिक कथाओं में इस मंदिर का महत्व बताया गया है। मंदिर की स्थापना 13वीं शताब्दी में हुई थी और इसे वैष्णव संत श्री माधवाचार्य ने बनवाया था।
भक्त की प्रार्थना भगवान ने सुनी और मंदिर के पिछले हिस्से में खिड़की बना दी
इस सिद्ध मंदिर को लेकर पौराणिक कथा प्रचलित है, जिसके तहत यहां आने वाले भक्त खिड़की से भगवान की प्रतिमा के दर्शन करते हैं। प्रचलित कथा के अनुसार, कनकदास छोटी जाति से आते थे, मगर भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे। मंदिर के अंदर आकर दर्शन-पूजन की उन्हें अनुमति नहीं थी, इसलिए वे दूर से खड़े होकर बाहर से ही भगवान को याद कर लेते थे। एक दिन उन्होंने श्रीकृष्ण से दर्शन कराने की प्रार्थना की। कहा जाता है कि उनकी प्रार्थना को स्वीकार करते हुए श्रीकृष्ण जी ने मंदिर के पिछले हिस्से में जहां हर कोई आ-जा सकता था, वहां एक खिड़की बना दी। कनकदास जब वहां पहुंचे तो खुद भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें दर्शन दिए। जब यह बात लोगों तक पहुंची, तो और लोग भी वहां आकर पूजा-अर्चना करने लगे और तब से यह परपंरा बन गई, जो आज तक जारी है। यहां खिड़की से भगवान की प्रतिमा के दर्शन को ही सही परंपरा माना जाता है।
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