सार
जॉन ने कहा, जब आप उनके साथ आमने सामने आते हैं तो मरने-मारने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। उनके अंदर कोई भावना नहीं है, कोई मानवता नहीं है।
ऑस्ट्रेलिया. तालिबान ने दोबारा अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है। इससे पहले 1996 से लेकर 2001 तक तालिबान का कब्जा था। मन में सवाल आता है कि आखिर तालिबान के पास क्या ऐसा है, जिससे वह पूरे एक देश पर दोबारा कब्जा कर लेता है। इस बात का खुलासा पूर्व ऑस्ट्रेलियाई सैनिक ने किया। ये सैनिक 9 महीने तक अफगानिस्तान में रहा और तालिबान से लड़ाई लड़ी।
ऑस्ट्रेलिया सैनिक जॉन ने कहा कि तालिबानी इमोशनलेस रोबोट जैसे हैं, जिन्हें लोगों को मारने में मजा आता है। यही कारण है कि वे देश पर दोबारा कब्जा करने में सफल रहे। जॉन ने बताया के 11 सितंबर के हमले के बाद वे करीब 9 महीने तक अफगानिस्तान में रहे।
'तालिबान में कोई मानवता नहीं है'
जॉन ने कहा, जब आप उनके साथ आमने सामने आते हैं तो मरने-मारने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। उनके अंदर कोई भावना नहीं है, कोई मानवता नहीं है। तालिबान लड़ाकों को देखकर लगता है कि उन्हें सम्मोहित किया गया है। जैसे वे रोबोट हों, जिन्हें प्रोग्राम किया गया है।
"इंटरप्रेटर को तालिबानी एकदम पसंद नहीं करते हैं। हमारे साथ भी एक इंटरप्रेटर था। जब तालिबान को पता चला कि वह हमारे साथ काम कर रहा है तो उन्होंने चेतावनी के तौर पर उसके भाई का सिर काट दिया।"
'2 दशकों तक तालिबान को रोके रखा'
जॉन ने कहा कि तालिबान को दो दशकों तक रोके रखा गया। लेकिन अब स्थिति एकदम बदल गई है। ऑस्ट्रेलियाई डिफेंस फोर्स ने अफगानिस्तान में तैनात 20 सालों में 41 सैनिकों को खो दिया, लेकिन जॉन ने कहा कि इसके बावजूद अगर सैनिकों को दोबारा मौका मिले तो वे दोबारा वहां जाएंगे। मैं इसकी गारंटी दे सकता हूं।
'तालिबानियों को देख गुस्सा आता है'
जॉन ने कहा, तालिबानियों को अफगानिस्तान मे घूमते हुए परेड करते हुए देखकर गुस्सा आता है। लेकिन उन्हें 20 सालों तक रोके रखने में कोई भी सैनिक व्यर्थ नहीं मरा।
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