ट्रंप टैरिफ़ की आंधी के बीच, PM मोदी और शी जिनपिंग ने तियानजिन SCO शिखर सम्मेलन में मुलाकात की, जिससे सीमा शांति, व्यापार संतुलन और एक नई एशियाई शक्ति धुरी की उम्मीदें फिर से जगी हैं। क्या यह ड्रैगन-हाथी कूटनीति वैश्विक भू-राजनीति को नया आयाम देगी?

India-China Relations 2025: चीन के बंदरगाह शहर तियानजिन में SCO शिखर सम्मेलन 2025 के दौरान हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की ऐतिहासिक मुलाकात ने वैश्विक कूटनीति को हिला दिया है। टैरिफ़ युद्ध, सीमा विवाद और बदलते अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के बीच यह बैठक केवल औपचारिक वार्ता नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संकेत है। भारत-चीन संबंधों में वर्षों के तनाव के बाद, गलवान की खाई को पाटने और आर्थिक सहयोग के नए रास्ते तलाशने का यह प्रयास ट्रंप प्रशासन के आक्रामक टैरिफ़ फैसलों को सीधा संदेश देता है। क्या यह मुलाकात वैश्विक शक्ति-संतुलन को बदलने की दिशा में पहला कदम साबित होगी?

क्यों है तियानजिन मुलाकात ऐतिहासिक?

तियानजिन में मोदी-शी की यह मुलाकात गलवान घाटी की घातक झड़पों के बाद से रिश्तों में आई ठंडक को पिघलाने की कोशिश मानी जा रही है। डोकलाम गतिरोध और सीमा विवाद के बाद दोनों देशों के बीच कूटनीति ठहराव पर थी। SCO समिट के इतर हुई इस मुलाकात में सीमा विवाद का न्यायसंगत समाधान, व्यापार घाटे को कम करने और सीधी उड़ानों व सांस्कृतिक आदान-प्रदान को फिर से शुरू करने पर चर्चा हुई।

क्या ड्रैगन-हाथी साझेदारी से बदलेगा एशिया का समीकरण?

शी जिनपिंग ने भारत को "महत्वपूर्ण मित्र" बताया और कहा कि सीमा विवाद को समग्र संबंधों को परिभाषित नहीं करना चाहिए। मोदी का यह बयान कि "भारत-चीन संबंध किसी तीसरे देश के नजरिए से तय नहीं होंगे", इस बात का संकेत है कि दोनों देश एक नए रणनीतिक साझेदारी मॉडल की ओर बढ़ रहे हैं। क्या यह संदेश ट्रंप प्रशासन के लिए एक नई चुनौती है?

ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी और भारत-चीन नज़दीकी

अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तुओं पर 50% टैरिफ और चीन के साथ बढ़ते व्यापार युद्ध ने एशियाई देशों को नए गठबंधन की ओर धकेल दिया है। चीन ने भारत के साथ एकजुटता जताते हुए ट्रंप की पॉलिसी को "धौंसिया" करार दिया। यह स्पष्ट संकेत है कि भारत-चीन आर्थिक सहयोग केवल कूटनीतिक बयानबाजी नहीं, बल्कि एक मजबूत वैश्विक संदेश है।

सीमा विवाद पर समाधान के संकेत

मुलाकात में एलएसी (LAC) के शेष टकराव बिंदुओं से सैनिकों की वापसी और शांति व सौहार्द बनाए रखने पर सहमति जताई गई। यह संकेत देता है कि वर्षों से तनाव झेल रहे भारत-चीन सीमा विवाद को सुलझाने की दिशा में अब एक नई गति आई है।

सांस्कृतिक आदान-प्रदान और कूटनीति की नई शुरुआत

कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली, सीधी उड़ानों के फिर से शुरू होने और लोग-से-लोग कनेक्टिविटी पर जोर दिया गया। यह भारत-चीन रिश्तों के मानवीय पहलू को मजबूत करने की कोशिश है, जिससे भविष्य की कूटनीति को ठोस आधार मिल सकता है।

क्या यह मुलाकात वैश्विक शक्ति-संतुलन को बदल देगी?

तियानजिन में हुई यह मुलाकात केवल भारत-चीन रिश्तों की दिशा नहीं बदलेगी, बल्कि यह वैश्विक राजनीति का "गेम-चेंजर" भी साबित हो सकती है। एशिया के दो दिग्गज देशों की नजदीकी अमेरिका, रूस और यूरोप के रणनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित करेगी।