ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में स्थित ग्रहों से कई प्रकार के योग बनते हैं। इनमें से अनेक योग ऐसे होते हैं जिनका नाम उनकी आकृति के आधार पर रखा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र में शुक्र को शुभ ग्रह माना गया है। सभी भौतिक सुख-सुविधाएं इसी ग्रह के अधीन हैं। इस ग्रह को भौतिक सुख, संपन्नता, कला शोहरत, भोग विलासिता, सौन्दर्य, काम वासना और ऐश्वर्य आदि का कारक माना जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहों की स्थिति लगातार बदलती रहती है। ग्रहों के राशि परिवर्तन के अलावा ग्रह वक्री और मार्गी भी होते रहते हैं। वक्री का मतलब उल्टी चाल और मार्गी का अर्थ सीधी चाल चलना होता है। जब भी कोई ग्रह वक्री होता है तो लोगों पर इसका अच्छा और बुरा दोनों तरह का प्रभाव देखने को मिलता है।
ज्योतिष शास्त्र में पंचमहापुरुष योग को बहुत ही शुभ माना गया है। कुंडली में पंच महापुरुष मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि होते हैं। इन 5 ग्रहों में से कोई भी मूल त्रिकोण या केंद्र में बैठे हैं तो श्रेष्ठ हैं।
प्रत्येक व्यक्ति के जन्म समय और तिथि के अनुसार ग्रह, नक्षत्रों की गणना करके कुंडली बनती है। किसी भी व्यक्ति की कुंडली में शुभ और अशुभ दोनों तरह के योग बनते हैं।
ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक माना गया है। वहम, डर और डिप्रेशन जैसी स्थितियां मन से जुड़ी हुई समस्या है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जन्म कुंडली के ग्रह अशुभ फल प्रदान करने लगें तो शिक्षा पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ने लगता है। ग्रहों की स्थिति खराब होने पर शिक्षा में बाधाएं आने लगती हैं और कभी-कभी शिक्षा पूरी तरह से बाधित भी हो जाती है, इसलिए ग्रहों को अनुकूल बनाने के उपाय करना भी आवश्यक होता है।
ज्योतिष में जिस तरह 120 वर्ष की विंशोत्तरी दशा होती है, उसी तरह 36 वर्ष की योगिनी दशा भी मानी गई है। विंशोत्तरी दशा की तरह ही योगिनी दशाएं भी मनुष्य के जीवन को प्रभावित करती हैं।
ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह को समस्त भौतिक सुखों का कारक माना जाता है। यह तुला और वृष राशि का स्वामी है। जिसकी कुंडली में ये ग्रह प्रबल होता है उसे सभी तरह की भौतिक सुख-सुविधाएं मिलती हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में चतुर्थ भाव का स्वामी, मंगल और शनि जितने बलवान और शुभ ग्रहों के प्रभाव में होंगे, उस व्यक्ति का स्वयं का मकान बनने की उतनी ही अधिक सम्भावना होती है।