सार

जो लोग ज्ञानी होते हैं वे विनम्र हो जाते हैं और लोगों की मदद करते हैं जबकि जो अर्धज्ञानी होते हैं वे खुद को बहुत बड़ा विद्वान समझने लगते हैं और छोटी-छोटी बातों पर अपनी विद्वत्ता का प्रदर्शन करते हैं।

उज्जैन. जिन लोगों को अपने ज्ञान का अभिमान हो जाता है वे दूसरे लोगों को नीचा दिखाने का कोई प्रयास वे नहीं छोड़ते। विद्वानों को ऐसा करना शोभा नहीं देता। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है कि जो लोग अपने ज्ञान के सामने दूसरों को हीन समझते हैं उन्हें अपनी इस गलती की वजह से शर्मिंदा होना पड़ता है।

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जब पंडितजी को हो गया ज्ञान का अभिमान
एक विद्वान को अपने पढ़ाई-लिखाई पर बहुत अभिमान था। उन्हें लगता था कि उनसे बड़ा विद्वान दुनिया में कोई और नहीं है। इसके कारण वे हर किसी व्यक्ति को अपने से छोटा समझते थे। एक दिन उन विद्वान को किसी काम से दूसरे गांव में जाना था। रास्ते में नदी थी।
पंडितजी ने एक नाव में बैठे। नाव चलाने वाले एक साधारण आदमी था। पंडितजी का अभिमान यहां भी उनके साथ था। उन्होंने घमंड में आकर नाविक से पूछा “ तुमने कहां तक शिक्षा ग्रहण की है।”
नाविक ने साधारण भाव से कहा “ज्यादा तो नहीं पंडितजी बस थोड़ा बहुत लिख-पढ़ लेते हैं। इससे ज्यादा की कभी आवश्यकता ही नहीं पड़ी।”
पंडितजी ने घमंड में आकर पूछा " क्या तुम्हें व्याकरण के बारे में ज्ञान है?"
नाविक ने सहज भाव से बोला, ‘‘नहीं।’’
पंडितजी ने कहा ‘‘ व्याकरण न पढ़कर तुमने अपनी आधी उम्र यूं ही गँवा दी।’’
थोड़ी देर बाद पंडितजी ने नाविक से फिर पूछा, “क्या तुमने इतिहास और भूगोल पढ़ा है?”
नाविक ने फिर इंकार में सिर हिला दिया।
विद्वान ने स्वयं पर गर्व करते हुए कहा... “फिर तो तुम्हारा पूरा जीवन ही बेकार हो गया।“
नाविक सिर झुकाकर बैठा रहा, थोड़ी देर बाद तेजी से हवा चलने लगी, जिसके चलते नदी में बहाव तेज हो गया। बीच नदी में नाव डोलने लगी। ये देख पंडितजी भय के मारे थर-थर कांपने लगे।
नाविक ने पंडितजी से पूछा “श्रीमान, क्या आपको तैरना आता है?”
पंडितजी ने कहा... ‘‘नहीं, मुझे तैरना नही आता।’’
नाविक बोला “फिर तो आपको अपने इतिहास, भूगोल को सहायता के लिए बुलाना होगा क्योंकि अब ये नाव डूबने वाली है।’’
ये सुनकर पंडितजी और भी डर गए। मगर नाविक ने अपने अनुभव के आधार पर जैसे-तैसे नाव को उस पार लगा दिया। थोड़ी देर बाद तूफान भी थम गया तब पंडितजी को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने नाविक से माफी मांगी और प्रण किया कि आगे से वे कभी किसी को अपने से छोटा समझकर उसका मजाक नहीं उड़ाएंगे।

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निष्कर्ष ये है कि…
कुछ लोग अधिक ज्ञान प्राप्त करने के कारण घमंड़ी हो जाते हैं जबकि ज्ञान प्राप्त करने के बाद व्यक्ति को विनम्र होना चाहिए। ऐसे लोग बात-बात पर अपनी विद्वत्ता का प्रदर्शन करते हैं और दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं। 


 

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