सार

मध्य प्रदेश के रतलाम से 18 किमी दूर बिलपांक नामक स्थान पर प्राचीन मौर्यकालीन विरुपाक्ष महादेव मंदिर है। इस मंदिर में महाशिवरात्रि, श्रावण मास सहित अन्य तीज त्योहार पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

उज्जैन. इस मंदिर की बनावट इसे और भी खास बनाती है। इस मंदिर में कई शैलियों का सम्मिश्रण है। इस मंदिर की एक और खास बात ये भी है कि यहां महाशिवरात्रि के दौरान देशभर से संतान प्राप्ति की कामना को लेकर दंपती आते हैं, जिन्हें प्रसाद के रूप में दूध की खीर देते हैं। संतान प्राप्ति पर दंपती अपनी शक्ति अनुसार यहां आकर दान-पुण्य करते हैं।

खुदाई में निकला था शिलालेख
- 1964 में बिलपांक में ही खुदाई के दौरान प्राप्त एक शिलालेख इस तथ्य की पुष्टि करता है कि इस मंदिर का जीर्णोद्धार संवत 1198 में गुजरात के चक्रवर्ती राजा सिद्धराज जयसिंह द्वारा मालवा राज्य को फतह कर जाते समय किया गया था।
- कई श्रद्धालु इसे 13वां ज्योतिर्लिंग भी मानते हैं। 64 स्तंभ (खंभों) पर मंदिर बना हुआ है और मान्यता है कि कोई इनको गिन नहीं पाता है। यहां पर लंबे समय से महाशिवरात्रि पर यज्ञ का आयोजन होता आ रहा है। हिमाचल, अरुणाचल सहित देश के अनेक हिस्सों से श्रद्धालुओं यहां आते हैं।

आकर्षक है मंदिर की बनावट
- विरुपाक्ष महादेव मंदिर परमार, गुर्जर, चालुक्य (गुजरात) की सम्मिश्रित शिल्पशैली का अनुपम उदाहरण है। मंदिर का शिल्प सौंदर्य व स्थापत्य उस काल की शिल्पशैली के चरमोत्कर्ष पर होने का परिचय भी देता है।
- मंदिर में गर्भ गृह, अर्द्ध मंडप, सभा मंडप निर्मित है। सभा मंडप की दीवारों पर विभिन्न वाद्य यंत्रों के साथ नृत्यांगनाओं को आकर्षक मुद्राओं में दर्शाया गया है। सभा मंडप में स्थापित मौर्यकालीन स्तंभ इस बात का प्रमाण है कि यह मंदिर मौर्यकाल में भी अस्तित्व में था।
- स्तंभ पर हंस व कमल की आकृतियां बनी हुई हैं। मध्य में मुख्य मंदर के चारों कोनों में चार लघु मंदिर है। पंचायतन शैली के इस मंदिर में जैन, सनातन, बौद्ध, मुस्लिम शिल्पकला का बेहतर सम्मिश्रण नजर आता है।

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