वसंत उत्सव 29 मार्च को, शिवजी का ध्यान भंग करने के लिए हुई इस ऋतु की रचना

होलिका दहन के अगले दिन यानी 29 मार्च, सोमवार को होली (धुरेड़ी) खेली जाएगी। इसी दिन वसंत उत्सव भी मनाया जाता है। वसंत उत्सव से जुड़ी कई कथाएं धर्म ग्रंथों में मिलती है।

Asianet News Hindi | Published : Mar 29, 2021 3:05 AM IST

उज्जैन. ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार होली के बाद बसंत ऋतु का असर दिखने लगता है। बसंत ऋतु के संबंध में मान्यता है कि कामदेव ने इस ऋतु को उत्पन्न किया था। जानिए ये कथा...

धर्म ग्रंथों के अनुसार, जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के हवन कुंड में कूदकर प्राण त्याग दिए तब महादेव उनके वियोग में ध्यान में बैठ गए। काफी समय तक शिवजी का ध्यान भंग नहीं हुआ। उस समय तारकासुर ने तप करके ब्रह्माजी को प्रसन्न किया। तारकासुर जानता था कि शिवजी तप में बैठे हैं, उनका ध्यान टूटना असंभव है, वे दूसरा विवाह भी नहीं करेंगे। जब ब्रह्माजी प्रकट हुए तो तारकासुर ने वर मांगा कि उसकी मृत्यु सिर्फ शिवजी के पुत्र के द्वारा ही हो। ब्रह्माजी ने तथास्तु कह दिया।

ब्रह्माजी के वरदान से तारकासुर अजय हो गया, उसने सभी देवताओं को पराजित कर दिया, स्वर्ग पर कब्जा कर लिया। तारकासुर का अत्याचार बढ़ रहा था। इससे दुखी होकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे, लेकिन वे भी ब्रह्माजी के वरदान की वजह से तारकासुर का वध नहीं कर सकते थे।

अंत में सभी देवताओं ने शिवजी का ध्यान भंग करने के लिए कामदेव से मदद मांगी। कामदेव ने शिवजी का तप भंग करने के लिए बंसत ऋतु को उत्पन्न किया। इस ऋतु में ठंडी हवाएं चलती हैं, मौसम सुहावना हो जाता है, पेड़ों में नए पत्ते आना शुरू हो जाते हैं, सरसों के खेत में पीले फूल दिखने लगते हैं, आम के पेड़ों पर बौर आ जाते हैं। इसी सुहावने मौसम की वजह से इसे ऋतुराज भी कहा जाता है।

कामदेव की वजह से इस ऋतु की उत्पत्ति मानी गई है, इसीलिए इसे कामदेव का पुत्र भी कहा जाता है। गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि ऋतुओं में मैं बसंत हूं यानी इस ऋतु को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

बसंत ऋतु के मौसम और कामदेव के काम बाणों की वजह से शिवजी का ध्यान टूट गया। इससे शिवजी क्रोधित हो गए और उनका तीसरा नेत्र खुल गया। जिससे कामदेव भस्म हो गए। कुछ समय बाद शिवजी क्रोध शांत हुआ और सभी देवताओं ने तारकासुर को मिले वरदान के बारे में बताया। तब कामदेव की पत्नी रति ने शिवजी से कामदेव को जीवित करने का निवेदन किया।
शिवजी ने सती को वरदान दिया कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में कामदेव का फिर से जन्म होगा। शिवजी ध्यान टूटने के बाद उनका विवाह माता पार्वती से हुआ। विवाह के बाद कार्तिकेय स्वामी का जन्म हुआ। कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया।

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