पाप ग्रह है केतु, जानिए जन्म कुंडली के किस भाव में कैसा फल देता है यह ग्रह

ज्योतिष शास्त्र में केतु अशुभ यानी पाप ग्रह के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि जब केतु की महादशा या अन्तर्दशा आती है तो व्यक्ति को कोई-न-कोई परेशानी अवश्य आती है।

उज्जैन. ज्योतिष में इसे छाया ग्रह माना जाता है तथा इसी ग्रह के कारण सूर्य तथा चंद्र ग्रहण होता है। जानिए केतु जन्म कुंडली के किस भाव में क्या फल प्रदान करता है…

1. कुंडली के प्रथम भाव में केतु हो तो मनुष्य स्वयं के गलत निर्णय से पैदा की गई समस्याओं से लड़ने वाला, लोभी और कंजूस होता है। ऐसा व्यक्ति रोगी, चिन्ताग्रस्त, कमजोर, भयानक पशुओं से परेशान रहने वाला होता है। जीवन साथी की चिन्ता तथा पारिवारिक सुख का अभाव हमेशा बना रहता है।
2. कुंडली के दूसरे भाव में केतु के होने पर व्यक्ति सत्य को छुपाने वाला तथा अपनी वाणी के बल पर दुसरों को पराजित करने वाला होता है। ऐसा व्यक्ति गला तथा नेत्र के कष्ट से पीड़ित होता है। सरकारी नौकरी करता है तो सरकारी दंड का भय रहता है।
3. जन्मकुंडली के तृतीय भाव में केतु मनुष्य को बुद्धिमान, धनी तथा विरोधियों का सर्वनाश करने वाला बनाता है। वह शास्त्रों का ज्ञाता, विवाद में रूचि रखने वाला, परोपकारी तथा बलशाली होता है। वह अपने सगे सम्बन्धियों स्नेह रखने वाला होता है।
4. जन्मकुंडली के चतुर्थ भाव में केतु माता से मिलने वाला सुख में कमी करता है हालांकि जातक अपने माता से भावनात्मक रूप से ज्यादा जुड़ा होता है। केतु यदि शुभ ग्रह के प्रभाव में है तो व्यक्ति ईमानदार, मृदुभाषी और धनी होता है। यदि अशुभ ग्रह के प्रभाव में है तो दुखी जीवन व्यतीत करने वाला होता है।
5. पंचम भाव में केतु होने से व्यक्ति रोगी, निर्धन, निष्पक्ष, उदासीन तथा विभिन्न प्रकार के कष्टों को भोगने वाला होता है। वह पेट के रोगों से परेशान रहता है। शुभ ग्रह से युक्त होने पर संन्यासी किसी संस्था का उच्चाधिकारी होता है। वह ज्ञानवान, भ्रमणशील, नौकरी से धन अर्जन करने वाल होता है।
6. षष्ठम् भाव में केतु हो तो व्यक्ति रोग मुक्त जीवन व्यतीत करता है वह पशु प्रेमी होता है। वह दयावान, संबंध स्नेही, ज्ञानी तथा लोक प्रसिद्धि पाने वाला होता है। वह शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है। इनके पास गुस्सा तो होता है परन्तु घर के अंदर ज्यादा तथा घर के बाहर कम ही दिखता है
7. यदि जन्मकुंडली के सप्तम् भाव में केतु है तो स्त्री सुख में कमी करता है। मनुष्य शीलहीन बहुत सोने वाला, हमेशा प्रवासी, यात्रा की चिंता से युक्त होता है। जीवन में उसे अपमान का सामना करना पड़ता है। वह व्यभिचारिणी स्त्रियों से रति क्रिया करता है।
8. कुंडली के आठवे भाव में केतु व्यक्ति को चरित्रहीन, व्यभिचारी, दूसरों की संपत्ति पर दृष्टि रखने वाला तथा लोभी प्रकृति का बनाता है। वह वाहन चलाने से भय रखने वाला होता है। वह आंखों के रोग से पीड़ित होता है। ऐसा व्यक्ति दूसरे के धन तथा दूसरे की स्त्री में आसक्त रहता है।
9. जन्मकुंडली के नवम् भाव में केतु हो तो धन लाभ होता है। सहोदर भाइयों से कष्ट पाता है और भुजाओं से संबंधित रोग होता है। ऐसा व्यक्ति पराक्रमी सदा शस्त्रधारण करने वाला होता है।
10. जिस व्यक्ति की कुंडली के दशम भाव में केतु हो वह पिता के सुख से रहित स्वयं भाग्यहीन होते हुए भी शत्रुओं का नाश करनेवाला होता है। दशम् भाव में केतु व्यक्ति को बुद्धिमान, दार्शनिक, साहसी तथा दूसरों से प्रेम रखने वाला बनाता है। वह अपने विरोधियों अथवा शत्रु को कष्ट पहुंचाने वाला होता है।
11. जन्म कुंडली में यदि केतु एकादश भाव में है तो व्यक्ति विजयी, कठिन से कठिन समस्याओं का भी बड़े ही आसानी से समाधान ढूंढने वाला होता है। इसका स्वभाव मधुर, दयालु तथा नम्र होता है। ऐसा व्यक्ति वाणी का धनी होता है तथा भाषण देने में सिद्धस्थ होता है।
12. यदि बारहवे भाव में केतु ग्रह है तो व्यक्ति विदेश यात्रा करता है और पाप कर्मों में लिप्त होता है। वह अच्छे कार्यों में राजा की तरह खर्च करता है। उसे मामा का सुख नही मिलता है।

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