सार
कोरोना (Corona) वायरस की दूसरी लहर से पूरा देश खौफजदा है। पिछले कुछ वक्त से इसका असर थोड़ा कम जरूर हुआ है, लेकिन लोगों के मन में अब भी इस अदृश्य वायरस को लेकर एक अजीब-सी दहशत है। अप्रैल और मई, यानी दो महीनों में इस वायरस ने कई जिंदगियां छीन लीं। भारत में अब तक 3 लाख से भी ज्यादा लोग मौत के मुंह में समा चुके हैं। हालांकि, इस डर भरे माहौल में पॉजिटिव चीज ये है कि कई लोग इस वायरस को मात देकर पूरी तरह ठीक भी हुए हैं।
भोपाल। कोरोना वायरस की दूसरी लहर से पूरा देश खौफजदा है। पिछले कुछ वक्त से इसका असर थोड़ा कम जरूर हुआ है, लेकिन लोगों के मन में अब भी इस अदृश्य वायरस को लेकर एक अजीब-सी दहशत है। अप्रैल और मई, यानी दो महीनों में इस वायरस ने कई जिंदगियां छीन लीं। भारत में अब तक 3 लाख से भी ज्यादा लोग मौत के मुंह में समा चुके हैं। हालांकि, इस डर भरे माहौल में पॉजिटिव चीज ये है कि कई लोग इस वायरस को मात देकर पूरी तरह ठीक भी हुए हैं। ज्यादातर लोगों ने पॉजटिव मांइडसेट और हौसले के साथ न सिर्फ कोरोना वायरस से जंग लड़ी, बल्कि उसे हराकर अपने घर भी लौटे हैं।
Asianetnews Hindi के गणेश कुमार मिश्रा ने भोपाल के रहने वाले कोरोना विनर हर्षल पाराशर से बात की। 35 साल के हर्षल ने बताया कि आखिर सबसे पहले उनसे कहां और कैसे चूक हुई और किस तरह वो इस वायरस की चपेट में आ गए। हर्षल ने ये भी बताया कि इस वायरस को हराने में किन-किन चीजों ने उनकी मदद की। इस कड़ी में पढ़िए 35 साल के कोरोना विनर की कहानी...
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आखिर कहां हुई चूक :
हर्षल के मुताबिक, 3 मार्च को मैं आईएसबीटी के पास एक होटल में आयोजित बर्थडे पार्टी में गया था। चूंकि ये पार्टी किसी रिश्तेदार की थी, इसलिए जाना जरूरी था। यहां होटल स्टॉफ के एक शख्स में कुछ सर्दी-खांसी के लक्षण थे और वो बंदा मेरे पास से गुजरा। जैसे ही वो वहां से गुजरा, मुझे कुछ अजीब-सा एहसास हुआ। इसके बाद अगले दिन मुझे थोड़ा फ्लू जैसे लक्षण समझ में आए। लेकिन शुरुआत में मैंने इसे साधारण बुखार समझ के इग्नोर कर दिया। यही मेरी सबसे बड़ी गलती थी।
इधर रिपोर्ट आई पॉजिटिव, उधर तेज खांसी हो गई शुरू:
दो दिन बाद यानी 5 मार्च से मेरा बुखार थोड़ा तेज हो गया। इसके बाद मैंने सोचा कि अब डॉक्टर को दिखा लिया जाए। मैंने डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने जांच की सलाह दी। जांच की रिपोर्ट आने में 3 दिन का वक्त लगा और मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। इस तरह करीब 6 दिन बीत गए। 10 मार्च से मुझे लगातार तेज खांसी आने लगी। वहीं, बुखार भी दवाई खाने पर ठीक हो जाता लेकिन फिर शुरू हो जाता था।
सुबह 98 था ऑक्सीजन लेवल, दो घंटे बाद हो गया 81 :
11 मार्च को सुबह 10 बजे करीब मैंने ऑक्सीजन लेवल चेक किया तो 98 पर था। ये रीडिंग देखकर मुझे थोड़ी तसल्ली हुई। हालांकि जब मैंने 2 घंटे बाद फिर ऑक्सीजन चेक की तो मेरे होश उड़ गए। ऑक्सीमीटर पर 81 का लेवल देख मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। इसके बाद मैंने घरवालों को बताया और फौरन अस्पताल में एडमिट होने का फैसला किया। 11 मार्च को दोपहर बाद मैं चिरायु अस्पताल में एडमिट हो गया।
शुरुआत के 3 दिन बेहद कठिन थे मेरे लिए :
अस्पताल में पहुंचने के बाद डॉक्टर्स ने मुझे ICU में भर्ती करने का फैसला किया। चूंकि उस वक्त बेड की इतनी मारामरी नहीं थी, इसलिए मुझे आराम से आईसीयू में जगह मिल गई। शुरुआत के 3 दिन तक तो मुझे अस्पताल में बेहद तकलीफ हुई। सांस लेने में भी दिक्कत होती थी। इसके अलावा बॉडी पेन, भूख न लगना और काफी कमजोरी लगती थी। फिर 14 मार्च से मुझे खांसी में काफी हद तक राहत मिलने लगी।
फोन करता था अवॉइड, नींद लेता था भरपूर :
मैं अस्पताल पॉजिटिव माइंडसेट से गया था, जिसका मुझे फायदा भी मिला। 3 दिनों के बाद मेरी रिकवरी होने लगी। दवाइयों के साथ ही मेरे ठीक होने की सबसे बड़ी वजह जो मुझे लगती है, वो ये है कि मैं अस्पताल में 12-13 घंटे की भरपूर नींद लेता था। मोबाइल को पूरी तरह अवॉइड करता था। सिर्फ घरवालों से बात करने के लिए 10-15 मिनट फोन लगाता था। इसका फायदा ये हुआ कि मैं अगले 4 दिनों में पूरी तरह ठीक हो चुका था।
मैंने डॉक्टर से कहा, मुझे ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत नहीं :
हालांकि डॉक्टर्स ने एहतियात बरतते हुए मुझे 10 दिनों तक मेडिकल ऑब्जर्वेशन में रखा, लेकिन मुझे आईसीयू से नॉर्मल वॉर्ड में शिफ्ट कर दिया गया था। इसके साथ ही मुझे सांस लेने में भी कोई दिक्कत नहीं थी। मेरी खांसी भी ठीक हो चुकी थी तो मैंने ही डॉक्टर से कहा कि ये मास्क अब हटवा दीजिए। अगर जरूरत पड़ी तो लगाऊंगा, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि फेफड़ों को बाहर से ऑक्सीजन सपोर्ट की आदत पड़ जाए।
ICU में ठीक हो रहे लोगों से मिलती थी हिम्मत :
इसके अलावा मैंने देखा कि मेरे साथ आईसीयू वार्ड में भर्ती लोग भी ज्यादातर तेजी से रिकवर हो रहे थे। उन्हें देखकर मुझे भी हौसला और हिम्मत मिलती थी। साथ ही चिरायु अस्पताल के डॉक्टर्स भी प्रॉपर ख्याल रखते थे। समय-समय पर आकर हेल्थ चेकअप करते थे। इस तरह वहां के पॉजिटिव माहौल को देखकर मुझे भी लगता था कि मैं जल्दी रिकवर हो जाऊंगा।
घर पहुंचकर खुद को ऐसे किया फिट :
10 दिनों बाद जब मैं डिस्चार्ज होकर घर पहुंचा तो बेहद कमजोरी फील हो रही थी। यहां तक कि पैर उठाकर सीढ़ी में रखना भी मुश्किल लग रहा था। 15-20 दिनों बाद धीरे-धीरे प्रॉपर डाइट से मुझे थोड़ा बेहतर लगने लगा। इसके बाद मैं सुबह घर की बालकनी में ताजा हवा लेता था। नाश्ते में रात को भिगोए चने सुबह खाली पेट खाता था। इससे सुबह-सुबह एनर्जी मिलती थी। मैंने घर पर ही छोटा जिम बना रखा है, जिसमें आधे घंटे हल्की-फुल्की एक्सरसाइज करके खुद को फिट रखता था। इस तरह करीब एक महीने में मैंने काफी कुछ रिकवर कर लिया।
घर में जब शुगर लेवल चेक किया तो उड़ गए होश :
घर आने के बाद मेरी शुगर काफी बढ़ गई थी। शुरुआत में तो ये 530 तक पहुंच गई थी। शुगर लेवल देखकर थोड़ा डर लगता था। लेकिन डॉक्टर ने कहा था कि शुरुआत के 3 महीनों तक शुगर बढ़ी रहेगी। दवाईयों और स्टेराइड की वजह से ऐसा हुआ है, लेकिन आप डाइट कंट्रोल करने के साथ ही एक्सरसाइज करेंगे तो ये धीरे-धीरे ठीक हो जाएगी। इसके बाद मैं अब भी शुगर की दवाइयां ले रहा हूं। हालांकि मेरी शुगर अब भी 400 तक पहुंच जाती है।
Asianet News का विनम्र अनुरोधः आइए साथ मिलकर कोरोना को हराएं, जिंदगी को जिताएं...जब भी घर से बाहर निकलें माॅस्क जरूर पहनें, हाथों को सैनिटाइज करते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वैक्सीन लगवाएं। हमसब मिलकर कोरोना के खिलाफ जंग जीतेंगे और कोविड चेन को तोडेंगे।
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