सार
इस्लाम के नियमों के मुताबिक, बेटियों और बहनों को पैतृक संपत्ति में एक तिहाई हिस्सा देना अनिवार्य है। लेकिन देशभर में ऐसे कई केस हैं, जहां बहन-बेटियों को उनके संपत्ति के अधिकार से वंचित कर दिया गया है। ऐसा ही एक मामला मुरादाबाद की 4 बहनों का है।
नई दिल्ली। इस्लाम में पवित्र कुरान के प्रावधानों के मुताबिक, बेटियों और बहनों को पैतृक संपत्ति में हिस्सा देना अनिवार्य है। कुरान का आदेश है कि बेटियों को पिता की संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा दिया जाए। बावजूद इसके, ऐसे कई मामले हैं, जहां पुरुषों ने बहन-बेटियों को उनका हिस्सा देने से या तो मना कर दिया या फिर इसमें हेर-फेर किया। हालांकि, महिलाएं इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की जगह चुप रह जाती हैं। वो परिवार के सदस्यों द्वारा खुद पर किए गए जुल्म के खिलाफ बोलने के बजाय भूखे रहना ज्यादा पसंद करती हैं।
मुरादाबाद की 4 बहनों को नहीं मिला पैतृक संपत्ति में हिस्सा
ये कहानी उन चार बहनों की है, जो गुमनाम रहना चाहती हैं। माता-पिता ने उनके लिए संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा छोड़ दिया, लेकिन उनके भाई उन्हें यह हिस्सा नहीं देना चाहते थे। यह घटना उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले की है। ज़ेबुन्निसा (बदला हुआ नाम) की एक 13 साल की बेटी है। वो अपने पति के साथ यूपी के नोएडा में एक फैक्ट्री में काम करती है और किराए के मकान में रहती है। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। दोनों नौकरी की खातिर अपनी इकलौती बेटी को एक करीबी रिश्तेदार के पास छोड़ जाते हैं। बेटी के भरण-पोषण के लिए वे हर महीने रिश्तेदार को पैसे भेजते थे। ईद के दिन जब ज़ेबुन्निसा अपनी बेटी से मिलने पहुंची तो उसे ये देख बहुत दुख हुआ कि परिवार के सभी बच्चे नए कपड़ों में खुश नजर आ रहे थे, तो वहीं उसकी बेटी पुराने कपड़ों में थी। इसके अलावा, घर के दूसरे बच्चे जहां खेलते थे, वहीं उसकी बेटी से काम करवाया जाता था।
जेबुन्निसा के पास कोर्ट जाने तक के पैसे नहीं
ज़ेबुन्निसा को महसूस हुआ कि अगर उसे अपने पिता की संपत्ति में हिस्सा मिलेगा तभी उसके परिवार का जीवन बदलेगा। इसके बाद से ही ज़ेबुन्निसा और उसकी बहनें अपने भाइयों से माता-पिता की संपत्ति में अपना हिस्सा मांग रही हैं। शुरुआत में भाई चुप रहे लेकिन बाद में उन्होंने बहनों से साफ कह दिया कि माता-पिता द्वारा छोड़ी गई संपत्ति में उन्हें कुछ नहीं मिलेगा। इस अन्याय के खिलाफ अदालत जाने के लिए ज़ेबुन्निसा के पास पैसे भी नहीं हैं। ज़ेबुन्निसा की दूसरी बहनों के हालात भी लगभग इसी तरह के हैं।
गरीबी में जिंदगी गुजार रहीं ज़ेबुन्निसा की बहनें
ज़ेबुन्निसा की बहन शाज़िया का कहना है कि वो अपनी इकलौती बेटी को अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहती है। अगर उसके पास कोई और साधन होता तो वो कभी भी संपत्ति में अपना हिस्सा नहीं मांगती। वहीं, शाजिया के पति कहते हैं कि मुझे पैसों में कोई दिलचस्पी नहीं है लेकिन शाज़िया विरासत में अपना हिस्सा पाना चाहती है। इसी तरह तीसरी बहन नगमा भी मजदूरी कर अपना घर चलाती है। पति दिहाड़ी करता है। उसके दो बच्चे हैं। नगमा का कहना है कि उसका भाई काफी अमीर है। अगर उसे पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिल जाए तो वो अपना एक बुटीक शुरू करना चाहती है।
भाइयों की दोटूक-शादी में खर्च हो गया तुम्हारा हिस्सा
चौथी बहन शबनम की भी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। उसका पति बीड़ी फैक्ट्री में काम करता है और किसी तरह घर का गुजारा होता है। शबनम का कहना है कि माता-पिता द्वारा छोड़ी गई संपत्ति में सभी बहनों का एक तिहाई हिस्सा होता है। अल्लाह ने हमें ये हक दिया है, इसलिए हमें अपना हिस्सा चाहिए। शबनम कहती है कि उसका भाई आज दो बड़े पुश्तैनी घरों का मालिक है। इसके अलावा उनके पास बाग-बगीचे भी हैं और इनसे आमदनी होती है। वो कहती है कि पिता की मृत्यु के बाद जब उन्होंने अपने भाई से संपत्ति के बंटवारे को लेकर बात की तो उसने कहा कि उसका हिस्सा शादी की व्यवस्था पर खर्च हो चुका है। अब बहनों को संपत्ति में एक तिहाई हिस्सा देने का सवाल ही नहीं है। वहीं, इस मामले में करनाल के सीनियर एडवोकेट मोहम्मद रफीक चौहान का कहना है कि पैतृक संपत्ति से वंचित बहनें भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम-1925 के तहत कोर्ट में जाकर अर्जी दाखिल कर सकती हैं।
कंटेंट : Awaz The Voice
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