सार
भारत में बजट में इनकम टैक्स स्लैब में इस बार कोई बदलाव नहीं किया गया है। लेकिन क्या आप जाते हैं आजादी के कुछ सालों तक भारत में टैक्स स्लैब भी बड़े अजीबोगरीब तरह से डिसाइड किए जाते थे। सुनकर आप भी दंग रह जाएंगे।
बिजनेस डेस्क। भारत में स्वतंत्रता के बाद पहला बजट आजादी के तीन महीने के बाद 16 नवंबर 1947ल को पेश किया गया था। इसे देश के पहले वित्त मंत्री आरके शनमुखम चेट्टी ने पेश किया था। उस दौरान भी सभी मदों के अलग-अलग बजट का प्रावधान रखा गया था। उस दौरान भी टैक्स स्लैब डिसाइड किया जाता था लेकिन इसे तय करने का तरीका बड़ा अजीबोगरीब रहता था जिसे सुनकर आप भी चौंक जाएंगे।
पहले बजट में 1500 तक कर मुक्त
आजादी के बाद जारी बजट में टैक्स स्लैब में कर्मचारियों को 1500 रुपये तक सालाना इनकम पर कोई कर नहीं देना पड़ता था। इससे अधिक आय होने पर वह टैक्स स्लैब में आते थे।
घर में बच्चों की संख्या तय करती थी टैक्स स्लैब
1958 में टैक्स स्लैब को घर में बच्चों की संख्या के आधार पर तय किया गया था। ऐसे में यदि शादी शुदा जोड़ा है और संतान नहीं है तो 3000 रुपये की सालाना आय पर कोई कर नहीं लगता था। शादीशुदा जोड़े के एक बच्चा है तो 3300 रुपये तक टैक्स में छूट और दो बच्चे हों तो 3600 रुपये तक छूट तय की गई थी।
पढ़ें सुस्मिता बागची ने स्वास्थ्य सेवाओं के लिए दिया 213 करोड़ का दान, जानें कौन हैं ये
सिंगल और मैरिड कपल के लिए अलग टैक्स प्रोविजन
भारत में पहले सिंगल और मैरिड कपल के लिए अलग-अलग टैक्स स्लैब तय था। 1955 में जनसंख्या वृद्धि के लिए सरकार ने सिंगल और मैरिड व्यक्तियों के लिए अलग-अलग टैक्स स्लैब रखा था। शादीशुदा व्यक्ति को पहले 2000 रुपये तक पर टैक्स में छूट मिलती थी जबकि गैर शादीशुदा व्यक्ति को 1000 रुपये तक की आय पर टैक्स में छूट मिलती थी।
अमीरों को भी देना पड़ता था ज्यादा टैक्स
अमीरों को अपनी सालाना आय का 97.75 फीसदी टैक्स चुकाना पड़ता था। बाद में 1973 में टैक्स की अधिकतम सीमा 85 फीसदी तक कर दी गई हैं। सरचार्ज के साथ इसका कुल प्रतिशत 97.75 फीसदी हो जाता है। यानी कुल आय का केवल 2.25 फीसदी इनकम ही आपकी जेब में आती है। 1974-75 में टैक्स छूट की अधिकतम सीमा 6000 रुपये तक कर दी गई थी।