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जानवर और इंसानों के बीच टकराव को कैसे दूर करेंगीं?, जानें UPSC 2020 INTERVIEW के इस सवाल पर टॉपर का जवाब
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मेहनत, लगन और लक्ष्य तय करके पढ़ा जाए तो सफलता मिल सकती है
वरुणा कहती हैं कि अब IAS बनकर देश की सेवा कर पाऊंगी। हाईस्कूल (High School) में पढ़ाई के वक्त ही सिविल सर्विसेज (Civil Services) में जाने की ठान ली थी। इसके बाद मुड़कर नहीं देखा। महाराष्ट्र (Maharashtra) के पुणे (Pune) से लॉ (Law) की पढ़ाई की तो कानून को बेहतर तरीके से समझने लगी। सिस्टम को भी समझने का मौका मिला। रोजाना टारगेट तय करके पढ़ाई की। हालांकि, समय फिक्स नहीं था कि इतने घंटे पढ़ाई करनी है। उनका कहना था कि लक्ष्य भले ही कठिन होता है, यदि लगन और लक्ष्य निर्धारित कर मेहनत की जाए तो निश्चित तौर पर सफलता मिलती है। हां, शॉर्टकट का रास्ता नहीं चुनना चाहिए। सफलता मेहनत करने से ही प्राप्त होती है।
वरुणा से इंटरव्यू में पूछे गए ये सवाल...
ज्यूडिशियरी में केसेज लंबित हैं?
पेंडेंसी के मामले में कुछ काम हमने शुरू कर दिया है। तकनीक का प्रयोग शुरू कर दिया गया है। इसमें हमें आगे बढ़ना चाहिए। केस मैनेजमेंट पर और ध्यान देना होगा, क्योंकि पुराने केसेज के बैकलॉग के साथ नए केस भी हैं। जमीनी स्तर पर लोक अदालत है। उनको महत्व दिया जाए, ताकि बहुत सारे केस कोर्ट में नहीं बल्कि कोर्ट के बाहर ही समझौते के आधार पर हल हो सके।
योग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्यों लोकप्रिय हो गया है, इसे और आगे कैसे बढ़ाया जा सकता है?
बहुत सारे लोग जो प्रभावशाली पद पर हैं। उन्होंने योग को अपनाया है। हमारे प्रधानमंत्री इंटरनेशनल योगा डे पर यूएन में थे। उसकी वजह से योग को काफी लोकप्रियता हासिल हुई। आज कल अभिनेताओं को भी सोशल मीडिया पर योग के वीडियो पोस्ट करते हुए देखा जा रहा है। योग की कई वैरायटी हैं। ऑनलाइन मीडियम पर इतने वीडियो उपलब्ध हैं कि बच्चे और बुजुर्ग अपनी जरूरतों के हिसाब से योग देखकर सीख सकते हैं।
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इसे और लोकप्रिय कैसे बनाया जाए?
योग शारीरिक, मानसिक और स्प्रिचुअल हेल्थ के लिए है। उसे विश्व पटल पर आगे लेकर आना चाहिए। विशेष तौर पर जब दुनिया में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी तमाम समस्याएं पनप रही हैं। मौजूदा प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में अवसाद और उसकी वजह से आत्महत्या के मामले सामने आ रहे हैं। इसके मानसिक और आध्यात्मिक लाभ के बारे में लोग जानेंगे तो योगा को सिर्फ व्यायाम की तरह नहीं बल्कि मनुष्य के समग्र विकास के रूप में देखेंगे।
जानवर, इंसानों के क्षेत्र में आ जाते हैं, दोनों के बीच अक्सर टकराव होता है, इसे कैसे दूर किया जा सकता है?
अगर हम वन पंचायत को और बढ़ाएं। वन पंचायत के लोगों को प्रशिक्षण दिया जाए। उनको उपकरण दिए जाते हैं। इस व्यवस्था को हम देश में ओर प्रचलित कर पाए। दूसरी ओर बहुत सारे कंजर्वेशन की वजह से जानवरों की आबादी बढ़ रही है। यह अच्छी बात है। पर जानवरों की आबादी के अनुपात में उनका क्षेत्र नहीं बढ़ रहा है, यह नकारात्मक है। जानवरों का जनसंख्या घनत्व बढ़ रहा है, तो उन्हें पीने की पानी और खाने की समस्या होती है और वह उसकी तलाश में बाहर निकल रहे हैं।
जनऔषधि केंद्र क्या हैं और क्या ये जरूरी हैं या नहीं, यदि जरूरी है तो क्यों प्रचलन नहीं बढ़ रहा है। क्या चुनौतियां आती हैं, उसको बढ़ावा कैसे दिया जा सकता है?
प्रमुख समस्या यह है कि लोगों में जेनरिक मेडिसिन के बारे में जागरूकता की कमी है। डॉक्टर ब्रांडेड मेडिसिन का परामर्श देते हैं तो लोग ब्रांडेड मेडिसिन ही खरीदते हैं। उन्हें लगता है कि शायद जेनरिक मेडिसिन की क्वालिटी में कमी हो, क्या पता उससे सही से इलाज नहीं हो। जागरूकता डाक्टरों में भी फैलानी होगी ताकि वह खुद से जेनरिक दवा का परामर्श दें। बहुत ज्यादा जगहों पर जेनरिक मेडिसिन उपलब्ध नहीं होते हैं। उनकी उपलब्धता बढ़ानी होगी। आयुष की दवाएं भी जनऔषधि केंद्र के जरिए दिए जाते हैं।
हायर ज्यूडिशियरी में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम क्यों है, क्या किया जा सकता है?
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में नियुक्ति के लिए कम से कम 10 वर्ष तक प्रैक्टिस का अनुभव होना चाहिए। बहुत महिला वकील नियमित वकालत नहीं कर पाती हैं, क्योंकि उन्हें महिला होने के नाते अन्य जिम्मेदारियों का भी निभाना होता है। प्रदेशों में कुछ बार कौंसिल है, जहां महिलाओं के लिए टॉयलेट और अन्य सुविधाएं सुलभ नहीं हैं। यह सुविधाएं उपलब्ध करानी होंगी। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में एडवोकेट या एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड के वरिष्ठ पद होते हैं। उन पर नियुक्ति के लिए महिलाओं को प्राथमिकता देने की जरूरत है। दूसरी ओर प्रदेशों की लोअर ज्यूडिशियरी में महिलाएं परीक्षा के जरिए आती हैं। इसलिए वहां महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ रहा है। उनका प्रतिनिधित्व करीब 30 से 40 प्रतिशत है। जबकि हाईकोर्ट के स्तर पर 10 फीसदी से भी कम है। जहां मौका है, वहां महिलाएं आगे बढ़ती हैं।
कहां से मिली आईएएस बनने की प्रेरणा?
वरुणा ने साल 2013 में जेसीज स्कूल से 12वीं तक पढ़ाई की। विज्ञान वर्ग में 95.4 फीसद अंक प्राप्त किए और स्कूल में टॉप किया था। इसके बाद वह कानून की पढ़ाई करने के लिए पुणे (महाराष्ट्र) चली गईं। 2018 में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद ही वह यूपीएससी (UPSC) की तैयारी के लिए दिल्ली आ गईं। यहां आईएएस की एक साल कोचिंग की, फिर घर से ही तैयारी करने लगीं। तीसरे प्रयास में यूपीएससी परीक्षा पास की है। उन्हें अपने दादा बनवारी लाल से आईएएस (IAS) बनने की प्रेरणा मिली। तभी उन्होंने 10वीं कक्षा से ही सिविल सर्विस में जाने के बारे में सोच लिया था। उनके स्कूल में एक सीनियर छात्र का विदेश सेवा में चयन हुआ था। स्कूल में उनका संबोधन सुनने के बाद वरुणा का सिविल सर्विस की तरफ रुझान ज्यादा बढ़ा। कानून की पढ़ाई के बाद यह भावना और ज्यादा मजबूत हुई। खासकर जब उन्होंने पढ़ाई के दौरान प्रशासन और देश की नीतियों के बारे में समझा।
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जीवन या परीक्षा को सीखने के रूप में देखें
कभी जिंदगी में हार न मानें, आपने खुद के लिए जो भी लक्ष्य तय किया हो। यह किसी भी क्षेत्र का हो सकता है। उस लक्ष्य के प्रति काम करते रहें। कदम के आगे कदम रखते रहें। लक्ष्य प्राप्त करने में समय लग सकता है, रुकावटें आ सकती हैं। पर जब आप ने प्रयास करना छोड़ दिया तो उसी वक्त आपने असफलता का चुनाव कर लिया। प्रयास करते रहें। जीवन में तनाव नहीं लेना चाहिए। आजकल छोटे बच्चों से लेकर बड़ों तक को तनाव हो जाता है। जीवन एक लर्निंग है। हर चीज को जीत और हार के रूप में न देखें। अगर हम सीखने के रूप में जिंदगी को देखें या किसी परीक्षा को देखें तो जीवन आसान हो जाएगा।
दो बार असफल होने के बाद भी नहीं मानी हार, तीसरे प्रयास में 38वीं रैंक
यूपीएससी परीक्षा (UPSC Exam) में वरुणा अग्रवाल (Varuna Agrawal) ने 38 वीं रैंक हासिल की है। उनका ये तीसरे प्रयास में आईएएस (IAS) बनने का सपना पूरा हुआ। इससे पहले उन्होंने दो बार प्रयास किए, लेकिन तब सफल नहीं हो सकीं। कभी-कभी उन्हें यह राह कठिन लगती थी। खासकर जब पहले प्रयास में वह प्रारम्भिक परीक्षा से आगे नहीं बढ़ सकीं। मगर, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। दूसरे प्रयास में उन्होंने इंटरव्यू (UPSC Interview) दिया, तो सिर्फ तीन अंकों की कमी की वजह से वह मेरिट लिस्ट में जगह नहीं पा सकी। ऐसे समय में परिवारजनों और दोस्तों ने उनका हौसला बढ़ाया।
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