सार

हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि उसके पास धन-दौलत हो और किसी भी पैसों से जुड़ी किसी भी समस्या का सामना न करना पड़े। कुछ लोगों की किस्मत ऐसी होती भी है, लेकिन ऐसा बहुत कम लोगों के साथ होता है। मनुष्य की जन्मकुंडली में अनेक ऐसे ग्रह योग होते हैं जिनके कारण वह धनवान नहीं बन पाता है।

उज्जैन. जन्म कुंडली में धन हानि के योग भी बनते हैं जिनकी वजह से जीवन भर व्यक्ति जीवन भर गरीबी में रहता है। यदि समय रहते और सही विश्लेषण से उन दरिद्र योगों का पता लगा लिया जाए तो उन दोषों को दूर करने के सटीक उपाय किए जा सकते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जो ग्रह नवमेश और पंचमेश से युत व दृष्ट नहीं होते वे अनेक प्रकार के दुख देते हैं। इसी तरह जो ग्रह अष्टमेश, षष्ठेश, व्ययेश और मारकेश से युत होते हैं वे भी अशुभप्रद होते हैं। आगे जानिए कुंडली में स्थित कुछ ऐसे ही दुर्योगों के बारे में…

1.
लग्नेश व्ययभाव में, व्ययेश लग्न में मारकेश द्वितीय-सप्तम का स्वामी से युत या दृष्ट हो तो व्यक्ति को निर्धन समझना चाहिए।
2. लग्नेश छठे भाव में अथवा षष्ठेश लग्न या सप्तम भाव में हो, लग्नेश मारकेश से दृष्ट हो तो व्यक्ति निर्धन होता है।
3. लग्न या चंद्र केतु से युत हो, लग्नेश अष्टम भाव में मारकेश से युत हो अथवा दृष्ट हो तो इस योग में जन्म लेने वाला मनुष्य निर्धन होता है।
4. त्रिक 6, 8, 12 भाव में स्थित लग्नेश पाप ग्रहों से युक्त हो और मारकेश से युत या दृष्ट हो तो राजवंश में उत्पन्न व्यक्ति भी निर्धन हो जाता है।
5. सूर्य के साथ व्ययेश से युक्त पाप दृष्ट लग्नेश यदि शनि से युत-दृष्ट हो लेकिन शुभ दृष्टि रहित हो तो व्यक्ति दरिद्र होता है।
6. पंचमेश और नवमेश क्रम से छठे अथवा दसवें भाव में स्थित हो, यदि मारकेश से दृष्ट हो तो इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति निर्धन होता है।
7. पाप ग्रह लग्न में हो और वह पाप ग्रह नवमेश या दशमेश भी न हो, मारकेश से दृष्ट अथवा युत हो तो व्यक्ति निर्धन होता है।
8. चंद्र और मंगल धनभाव में हो तो धन नाशक कहे गए हैं। यदि धन भावस्थ चंद्र मंगल-बुध से दृष्ट हो तो व्यक्ति महावित्तवान होता है। धन गत शनि भी बहुत धन देता है।
9. धन भावस्थ सूर्य यदि शनि से दृष्ट हो तो दरिद्र बनाता है। शनि की दृष्टि न हो तो महाधनी और ख्याति प्राप्त होता है।
10. शुभ ग्रह धन भावगत होकर बहुत धनी बनाते हैं लेकिन वहां गुरु को बुध देखे तो व्यक्ति निर्धन होता है।

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