सार

हस्तरेखा विज्ञान में हथेली की रेखाओं के अलावा हाथ में पाए जाने वाले प्रत्येक प्रकार के चिह्न जैसे नक्षत्र, द्वीप, वर्ग, आयत, वृत्त, क्रॉस आदि का अध्ययन करके भविष्य कथन किया जाता है। ऐसा ही एक चिह्न है वलय।

उज्जैन. वलय दरअसल हाथ की तीन अंगुलियों तर्जनी, मध्यमा और अनामिका के नीचे स्थित उनसे संबंधित पर्वतों को अर्धवृत्ताकार आकार में घेरने वाली रेखा होती है। यह रेखा प्रत्येक पर्वत को अर्धचंद्राकार आकार में पूरी तरह घेर लेती है। आगे जानिए किस स्थान पर वलय के होने से क्या होता है…

बृहस्पति या गुरु वलय
तर्जनी अंगुली के नीचे स्थित गुरु पर्वत को अर्धचंद्राकार आकार में घेरने वाली रेखा गुरु वलय कहलाती है। जिस व्यक्ति के हाथ में गुरु वलय होता है वह जीवन में गंभीर तथा परोपकारी होता है। एजुकेशन के क्षेत्र में ऐसा व्यक्ति उच्च शिखर तक पहुंचता है। गुरु वलय जिन हाथों में होता है ऐसे व्यक्ति व्यर्थ की शानो-शौकत का प्रदर्शन करते हैं। ये अपने चारों ओर माहौल बनाकर रखते हैं, जिससे व्यक्ति न चाहते हुए भी इनके प्रभाव में आ जाता है।

शनि वलय
मध्यमा अंगुली के नीचे स्थित शनि पर्वत को अर्धवृत्ताकार आकार में घेरने वाली रेखा शनि वलय कहलाती है। शनि वलय अधिकांश संन्यासी, साधु-संतों के हाथों में पाया जाता है। सामाजिक दृष्टि से देखा जाए तो शनि वलय शुभ नहीं है क्योंकि यह गृहस्थ जीवन से विच्छेद का संकेत है। शनि वलय जिनके हाथ में होता है वे व्यक्ति तंत्र-मंत्र साधना के क्षेत्र में विशेष सफलता हासिल करते हैं। शनि वलय के भीतर यदि क्रॉस का चिह्न हो तो व्यक्ति अपराधी प्रवृत्ति का होता है। वह न केवल दूसरों को हानि पहुंचा सकता है बल्कि कुंठाओं में घिरकर स्वयं भी आत्महत्या जैसा कदम उठा सकता है।

सूर्य वलय
यदि कोई रेखा मध्यमा और अनामिका बीच से निकलकर अनामिका और कनिष्ठिका के बीच में अर्धचंद्राकार आकार में जाए तो वह सूर्य वलय का निर्माण करनी है। ऐसे व्यक्ति को प्रत्येक कार्य में जरूरत से ज्यादा परिश्रम करना पड़ता है, उसके बावजूद सफलता थोड़ी दूर रह जाती है। पारिवारिक और सामाजिक स्थिति में ऐसे व्यक्तिओं को मान-सम्मान कम ही मिल पाता है। यहां तक कि जिन व्यक्तियों का सहयोग करता है, उनसे भी उसे अपयश ही मिलता है।

शुक्र वलय
हथेली में शुक्र वलय का निर्माण तब होता है जब कोई रेखा शनि और सूर्य पर्वत दोनों को एक साथ घेर ले। तर्जनी और मध्यमा के बीच से कोई रेखा अर्धचंद्राकार होती हुई अनामिका और कनिष्ठिका के मध्य तक जाए तो शुक्र वलय का निर्माण होता है। जिनके हाथ में शुक्र वलय होता है वे कमजोर, असहाय होते हैं। ऐसे व्यक्तियों को मानसिक चिंताएं बनी रहती हैं।

अनामिका और कनिष्ठिका के मध्य
हथेली में शुक्र वलय का निर्माण तब होता है जब कोई रेखा शनि और सूर्य पर्वत दोनों को एक साथ घेर ले। तर्जनी और मध्यमा के बीच से कोई रेखा अर्धचंद्राकार होती हुई अनामिका और कनिष्ठिका के मध्य तक जाए तो शुक्र वलय का निर्माण होता है। जिनके हाथ में शुक्र वलय होता है वे कमजोर, असहाय होते हैं। ऐसे व्यक्तियों को मानसिक चिंताएं बनी रहती हैं।

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