सार
देशभर में रामनवमी (Ram Navami 2022) धूमधाम से मनाई जा रही है। सुबह से ही भक्त आस्था में डूबे हुए हैं। इस अवसर पर बुंदेलखंड की अयोध्या के नाम से प्रसिद्ध ओरछा में रामनवमी पर दीपोत्सव मनेगा। जिसमें शामिल होने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत कई मंत्री पहुंचे हुए हैं।
ओरछा (मध्य प्रदेश). अयोध्या समेत पूरे देशभर में आज हर्षोल्लास के साथ रामनवमी का त्योहार मनाया जा रहा है। मान्यता है कि चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी आज के ही दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। इसी मौके पर जगह-जगह भगवान श्री राम की पूजा और जुलूस निकाले जा रहे हैं। वहीं मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी और बुंदेलखंड की अयोध्या के नाम से प्रसिद्ध ओरछा में भी भगवान राम जन्म महोतस्व बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है। यहां शाम को 5 लाख दीपक जलाए जाएंगे। खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कई मंत्रियों समेत यहां पहुंचकर इसकी शुरूआत करेंगे। आइए जानते हैं क्या है ओरछा के राजा राम का इतिहास...
राम के आगे यहां पर प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति नहीं सलामी
दरअसल, पूरे देशभर में ओरछा में ही भगवाना राम का एकमात्र ऐसा भव्य मंदिर है जहां पर भगवान राम राजा के रूप में विराजमान हैं। इतना ही नहीं यहां पर तीनों पहर पुलिस के जवानों द्वारा तीनों पहर सशस्त्र सलामी दी जाती है। भगवान के परकोटा के अंदर किसी भी विशिष्ट या अतिविशिष्ट व्यक्ति को पुलिस गार्ड ऑफ ऑनर नहीं देती है। यहां प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक आए लेकिन राम के अलावा किसी को भी सलामी नहीं दी गई।
राजा राम के दशर्न के लिए इंदिरा गांधी को करना पड़ा था इंतजार
बता दें कि जिस वक्त ओरछा के राजा राम को सलामी दी जा रही हो और उनके भोग का समय हो तो उस दौरान किसी को भी दर्शन करने की इजाजत नहीं मिलती है। 1984 में ओरछा के पास सातार नदी के तट पर चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा अनावरण कार्यक्रम के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ओरछा पहुंची थीं। उस वक्त इंदिरा गांधी मंदिर में दर्शन करने आईं, लेकिन दोपहर के 12 बजे चुके थे। उस वक्त भोग लग रहा था तो पुजारी ने पट बंद कर दिए थे। जिसके चलते इंदिरा गांधी को करीब आधा घंटे तक इंतजार करना पड़ा था। अफसरों ने पट खुलवाने की काफी कोशिश की, लेकिन पट नहीं खोले गए। हालांकि 30 मिनट बाद उन्होंने राम राजा सरकार के दर्शन किए।
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ऐसे अयोध्या से पहुंचे ओरछा
कई पुराणिक हिंदू पुस्तकों में उल्लेख है कि संवत् 1631 में ओरछा के शासक मधुकर शाह कृष्ण भक्त थे और उनकी रानी कुंवरि भगवान रामभक्त थीं। बताया जाता है कि रानी ओर राजा दोनों में अपने इष्ट की उपासना को लेकर मतभेद रहते थे। एक बार दोनों के बीच बहस होने लगीं कि वृंदावन जाएं या अयोध्या। फिर राजा ने कहा अगर राम सच में हैं तो उनको ओरछा लाकर दिखाओ। भगवान को लाने के लिए रानी ने अयोध्या में जाकर कई दिनों तक तपस्या की। लेकिन फिर वह दुखी होकर सरयू नदी में कूदने के लिए चल दीं। बताया जाता है कि इसी दौरान भगवान राम प्रकट हुए और रानी की गोद में बैठ गए। इसके बाद रानी ने उनसे ओरछा जाने के लिए कहा।
राम ने ओरछा जाने के लिए रानी के सामने तीन शर्तें
भगवान राम ने ओरछा जाने के लिए रानी के सामने तीन शर्तें रखी। पहली शर्त राम ने कहा कि वह पहले ओरछा के राजा होंगे और वहां की सत्ता संभालेंगे। मेरे विराजमान होने के बाद वहां पर किसी और की सत्ता नहीं रहेगी। दसरी शर्त मैं ओरछा में जहां बैठ जाऊंगा, वहां से उठूंगा नहीं। वहीं तीसरी शर्त शर्त ये कि वो खुद बाल रूप में पैदल पुष्य नक्षत्र में साधु-संतों के साथ चलेंगे। खबर सुन राजा मधुकर शाह ने उनके लिए चतुर्भुज मंदिर का भव्य निर्माण करवाया। लेकिन वह अधूरा रह गया। इसी कारण भगवान राम आज भी महल में नहीं महारानी की रसोई में विराजमान हैं।
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