सार
Ghulam Nabi Azad वगैरह मंडली ने ‘जी23’ नामक (G-23) असंतुष्टों का एक गुट तैयार किया है। उस गुट के लगभग सभी लोगों ने कांग्रेस से सत्ता सुख भोगा है लेकिन इस गुट के तेजस्वी मंडल ने कांग्रेस की आज की स्थिति सुधारने के लिए क्या किया?
मुंबई। पश्चिम बंगाल (West Bengal) की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के महाराष्ट्र दौरे (Maharashtra visit) और यूपीए (UPA) को लेकर उठे सवाल पर शिवसेना (Shiv Sena) ने जवाब दिया है। शिवसेना ने कांग्रेस (Congress) को खारिज कर विपक्षी एकता को ही सवाल खड़े कर विपक्षी दलों को नसीहत दी है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना (Saamana) में यूपीए की प्रासंगिकता और कांग्रेस के साथ बगैर राष्ट्रीय राजनीति करने को बेमानी बताया है। शिवसेना ने असंतुष्ट कांग्रेस नेताओं पर भी हमला बोलते हुए कहा कि जिन लोगों ने कांग्रेस की वजह से जीवन भर सत्तासुख भोगा, वह आज की तारीख में पार्टी को मजबूत करने के लिए क्या कर रहे हैं।
ममता बनर्जी की संघर्ष को प्रणाम लेकिन...
शिवसेना ने सामना में अपने संपादकीय में लिखा, 'ममता बनर्जी के मुंबई दौरे के कारण विपक्षी दलों की हलचलों में गति आई है। कम-से-कम शब्दों के हवा के बाण तो छूट रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के सामने मजबूत विकल्प खड़ा करना है इस पर एकमत हैं ही, लेकिन कौन किसे साथ लें अथवा बाहर रखें इस पर विपक्ष में अभी भी विवाद उलझा हुआ है। विपक्ष की एकता का न्यूनतम साझा कार्यक्रम नहीं बनता तो भाजपा (BJP) को सामर्थ्यवान विकल्प देने की बात कोई न करे। अपने-अपने राज्य और टूटे-फूटे किले संभालते रहें कि एक साथ आएं इस पर तो कम-से-कम एकमत होना जरूरी है। इस एकता का नेतृत्व कौन करे यह आगे का मसला है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी बाघिन की तरह लड़ीं और जीतीं। बंगाल की भूमि पर भाजपा को चारों खाने चित करने का काम उन्होंने किया। उनके संघर्ष को देश ने प्रणाम किया है।'
कांग्रेस को दूर रख राष्ट्रीय राजनीति में मजबूत विपक्ष नहीं बनेगा
ममता बनर्जी के राजनीतिक अप्रोच की आलोचना करते हुए शिवसेना ने कहा कि ममता ने मुंबई में आकर राजनैतिक मुलाकात की। ममता की राजनीति कांग्रेस उन्मुख नहीं है। पश्चिम बंगाल से उन्होंने कांग्रेस, वामपंथी और भाजपा का सफाया कर दिया। यह सत्य है फिर भी कांग्रेस को राष्ट्रीय राजनीति से दूर रखकर सियासत करना यानी मौजूदा ‘फासिस्ट’ राज की प्रवृत्ति को बल देने जैसा है। कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो, ऐसा मोदी व उनकी भाजपा को लगना एक समय समझा जा सकता है। यह उनके कार्यक्रम का एजेंडा है। लेकिन मोदी व उनकी प्रवृत्ति के विरुद्ध लड़नेवालों को भी कांग्रेस खत्म हो, ऐसा लगना यह सबसे गंभीर खतरा है।
कांग्रेस का दस साल में पिछड़ना चिंताजनक, उससे घातक उसे दूर रखने की सोच
शिवसेना के मुखपत्र सामना ने लिखा कि पिछले दस वर्षों में कांग्रेस पार्टी का पिछड़ना चिंताजनक है। इसमें दो राय नहीं हो सकती। फिर भी उतर रही गाड़ी को ऊपर चढ़ने नहीं देना है और कांग्रेस की जगह हमें लेना है यह मंसूबा घातक है।
कांग्रेस के कारण सत्ता-सुख भोगने वालों ने स्थिति सुधारने के लिए क्या किया?
कांग्रेस का दुर्भाग्य ऐसा है कि जिन्होंने जिंदगी भर कांग्रेस से सुख-चैन-सत्ता प्राप्त की वही लोग कांग्रेस का गला दबा रहे हैं। गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) ने वर्ष 2024 के चुनाव में कांग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं होगी, ऐसा श्राप दिया है। आजाद ने ऐसा कहा है कि आज की स्थिति कायम रही तो कांग्रेस की अवस्था निराशाजनक रहेगी। आजाद वगैरह मंडली ने ‘जी23’ नामक (G-23) असंतुष्टों का एक गुट तैयार किया है। उस गुट के लगभग सभी लोगों ने कांग्रेस से सत्ता सुख भोगा है लेकिन इस गुट के तेजस्वी मंडल ने कांग्रेस की आज की स्थिति सुधारने के लिए क्या किया? अथवा इस तेजस्वी मंडली को भी अंदर से लगता है कि 2024 में कांग्रेस का काम निराशाजनक रहे, जो भाजपा को लगता है वही इस मंडली को लगता है, इसे एक संयोग ही कहा जाएगा।
यूपीए नहीं है तो एनडीए भी तो नहीं है
शिवसेना ने कहा कि देश में कांग्रेस की नेतृत्व वाली ‘यूपीए’ कहां है? यह सवाल मुंबई में आकर ममता बनर्जी ने पूछा। यह प्रश्न मौजूदा स्थिति में अनमोल है। यूपीए अस्तित्व में नहीं है, उसी तरह एनडीए (NDA) भी नहीं है। मोदी की पार्टी को आज एनडीए की आवश्यकता नहीं। लेकिन विपक्षियों को यूपीए की जरूरत है। यूपीए के समानांतर दूसरा गठबंधन बनाना यह भाजपा के हाथ मजबूत करने जैसा है। यूपीए का नेतृत्व कौन करे? यह सवाल है। कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए गठबंधन किस-किस को स्वीकार नहीं है, वे खुलेआम हाथ ऊपर करें, स्पष्ट बोलें। पर्दे के पीछे गुटर-गूं न करें। इससे विवाद और संदेह बढ़ता है। इसी तरह यूपीए का आप क्या करेंगे? यह एक बार तो सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) अथवा राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को सामने आकर कहना चाहिए। यूपीए का नेतृत्व कौन करे, यह मौजूदा समय का मुद्दा है। यूपीए नहीं होगा तो दूसरा क्या? इस बहस में समय गंवाया जा रहा है, जिसे विपक्ष का मजबूत गठबंधन चाहिए, उन्हें खुद पहल करके ‘यूपीए’ की मजबूती के लिए प्रयास करना चाहिए, एनडीए अथवा यूपीए गठबंधन कई पार्टियों के एक साथ आने पर उभरे।
प्रशांत किशोर को भी लिया निशाने पर
शिवसेना ने आगे कहा कि वर्तमान में जिन्हें दिल्ली की राजनीतिक व्यवस्था सही में नहीं चाहिए उनका यूपीए का सशक्तीकरण ही लक्ष्य होना चाहिए। कांग्रेस से जिनका मतभेद है, वह रखकर भी यूपीए की गाड़ी आगे बढ़ाई जा सकती है। अनेक राज्यों में आज भी कांग्रेस है। गोवा, पूर्वोत्तर राज्यों में तृणमूल ने कांग्रेस को तोड़ा लेकिन इससे केवल तृणमूल का दो-चार सांसदों का बल बढ़ा। ‘आप’ का भी वही है। कांग्रेस को दबाना और खुद ऊपर चढ़ना यही मौजूदा विपक्षियों की राजनीतिक चाणक्य नीति है। कांग्रेस को विरोधी पक्षों का नेतृत्व करने का दैवीय अधिकार प्राप्त नहीं हुआ है। ऐसा ऐतिहासिक बयान तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता प्रशांत किशोर (Prashant Kishore) देते हैं। दैवीय अधिकार किसी को प्राप्त नहीं होता। राजनीतिक घराने और खानदान के किले देखते-ही-देखते ढह जाते हैं।
प्रशांत के बयान पर शिवसेना ने कहा कि 2024 में किसके देवता, किसका भाग्य चमकेगा इसे कहा नहीं जा सकता। भाजपा का जन्म हमेशा विपक्ष के बेंच पर ही बैठने के लिए हुआ है, ऐसा मजाक करते हुए यह पार्टी आसमान में उड़ान भर रही है। आज भी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की राजनीतिक बदनामी शुरू है। राहुल गांधी और प्रियंका इस बदनामी का मुकाबला करते हुए संघर्ष कर रहे हैं। प्रियंका लखीमपुर खीरी नहीं पहुंचतीं तो किसानों की हत्या का मामला रफा-दफा हो गया होता। यही विपक्ष का काम है। ‘यूपीए’ नेतृत्व का दैवीय अधिकार किसका यह आनेवाला समय तय करेगा, पहले विकल्प खड़ा करो!
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