दशहरा और विजयादशमी एक ही दिन पड़ते हैं, लेकिन इनका महत्व अलग-अलग है। दशहरा भगवान राम की रावण पर विजय का प्रतीक है, जबकि विजयादशमी देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय का प्रतीक है। दोनों ही त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश देते हैं।
Dussehra vs Vijayadashami: शारदीय नवरात्रि के समापन के बाद, यानी नवरात्रि के नौ दिन बाद, पूरे देश में दशहरा धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। लोग अक्सर सोचते हैं कि विजयादशमी और दशहरा एक ही हैं, लेकिन दोनों में एक बड़ा अंतर है। दशहरा और विजयादशमी एक नहीं, बल्कि दो त्योहार हैं, जो अश्विन माह की दशमी तिथि को मनाए जाते हैं। इनके उत्सवों के पीछे की पौराणिक कथाएँ अलग-अलग हैं। आइए विजयादशमी और दशहरा के बीच अंतर को समझते हैं।
विजयादशमी और दशहरा के बीच अंतर
दशहरा और विजयादशमी एक ही दिन मनाए जाने वाले दो त्योहार हैं, और प्रत्येक का अपना पौराणिक महत्व है। दशहरा भगवान राम की रावण पर विजय से जुड़ा है, जबकि विजयादशमी देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय का प्रतीक है।
विभिन्न पौराणिक कथाएं
दशहरे पर भगवान राम ने रावण का वध किया था, जबकि विजयादशमी पर देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। इस प्रकार, दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, और विजयादशमी, जिसका अर्थ है "विजय का दसवां दिन", देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय के रूप में मनाई जाती है।
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- दशहरा क्या है- यह भगवान राम द्वारा रावण के वध का प्रतीक है।
- यह कब मनाया जाता है- आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को, जो नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्रि उत्सव का समापन है।
- यह कैसे मनाया जाता है- रावण के पुतले जलाए जाते हैं और बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाया जाता है।
- विजयादशमी क्या है- यह देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय का प्रतीक है। देवी दुर्गा ने नौ दिनों तक महिषासुर से युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध कर दिया।
- अर्थ: "विजयादशमी" का अर्थ है "विजय का दसवां दिन", जो देवी दुर्गा की विजय का प्रतीक है।
- यह कब मनाया जाता है: यह आश्विन मास की दशमी तिथि को भी मनाया जाता है।
दशहरा
दशहरा या विजयादशमी के दिन देवी शक्ति की पूजा की जाती है, क्योंकि यह त्यौहार नवरात्रि के नौ दिनों के बाद दसवें दिन पड़ता है, जिसमें देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। इस दिन शस्त्रों की भी पूजा की जाती है, क्योंकि भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने से पहले अपने शस्त्रों की पूजा की थी। देवी दुर्गा ने भी महिषासुर का वध करने से पहले इसी दिन अपने शस्त्रों की पूजा की थी। इसलिए, यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और शक्ति और सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है।
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