सार

Jagannath Rath Yatra 2023: उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा 20 जून से शुरू हो चुकी है। जिस तरह भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा प्रसिद्ध है, उसी तरह इस मंदिर की रसोई भी लोगों के आकर्षण का केंद्र है।

 

उज्जैन. उड़ीसा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर हिंदुओं के पवित्र चार धामों में से एक है। हर साल आषाढ़ मास में यहां निकाली जाने वाली रथयात्रा विश्व प्रसिद्ध है। इस बार ये रथयात्रा 20 जून, मंगलवार से शुरू होगी। भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा (Jagannath Rath Yatra 2023) की तरह ही यहां की रसोई भी लोगों के आकर्षण का केंद्र है। इसे दुनिया की सबसे बड़ी रसोई भी कहते हैं। यहां भगवान को भोग बनाते समय कई बातों का ध्यान रखा जाता है, जो काफी रोचक हैं। आज हम आपको भगवान जगन्नाथ की रसोई से जुड़ी यही खास बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार है…

ऐसे ही दुनिया की सबसे बड़ी रसोई
भगवान जगन्नाथ मंदिर की रसोई दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है। इस रसोई में भगवान जगन्नाथ के लिए भोग तैयार किया जाता है। यहां जो भी प्रसाद किया तैयार किया जाता है, महाप्रसाद कहते हैं। इसे बनाने के लिए 10-20 नहीं बल्कि लगभग 1500 से अधिक लोग काम करते हैं, इनमें रसोईए व उनके सहयोगी शामिल हैं। यहां पकाया जाने वाला हर पकवान हिंदू धर्म पुस्तकों के दिशा-निर्देशों के अनुसार ही बनाया जाता है।

742 चूल्हों पर एक साथ बनता है प्रसाद
भगवान जगन्नाथ की रसोई की विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां 742 चूल्हों पर एक साथ प्रसाद बनाया जाता है। हर चूल्हें पर एक के ऊपर एक 8 हांडियां चढाई जाती हैं। आश्चर्य की बात ये है कि सबसे पहले ऊपर वाली हांडी का खाना पहले पकता है, उसे नीचे वाली का बाद में। प्रसाद बनाने में मिट्टी के बर्तनों का ही उपयोग किया जाता है।

माता लक्ष्मी की देख-रेख में बनता है प्रसाद
भगवान जगन्नाथ की रसोई के समीप ही दो कुएं हैं जिन्हें गंगा व यमुना कहा जाता है। केवल इनसे निकले पानी से ही भोग का निर्माण किया जाता है। इस पानी को सोने के घड़े से निकाला जाता है। यहां रोज लगभग 50 हजार लोगों के लिए प्रसाद तैयार किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस रसोई में जो भी भोग बनाया जाता है, उसका निर्माण माता लक्ष्मी की देखरेख में ही होता है। इसीलिए इस प्रसाद को महाप्रसाद भी कहा जाता है।


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