सार
7 दिसंबर, मंगलवार को अगहन मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि है। मंगलवार को चतुर्थी तिथि होने से ये अंगारक चतुर्थी कहलाएगी। अंगारक चतुर्थी का योग साल में कई बार बनता है, लेकिन ये योग इस बार बहुत खास है क्योंकि इस समय मंगल और राहु का दृष्टि संबंध होने से ग्रहों का अंगारक योग भी बन रहा है।
उज्जैन. ऐसा बहुत कम होता है जब ग्रहों के अंगारक योग में अंगारक चतुर्थी का पर्व मनाया जाए। मंगल 16 जनवरी तक वृश्चिक राशि में ही रहेगा। तब तक ये अशुभ योग बना रहेगा। सितारों की इस स्थिति का असर देश-दुनिया सहित सभी राशियों पर रहेगा। अंगारक चतुर्थी होने से इस दिन भगवान श्रीगणेश के साथ हनुमानजी की पूजा भी की जाएगी। साथ ही जिन लोगों की कुंडली में मंगल अशुभ स्थिति में है, वे लोग भी इस दिन विशेष उपाय कर सकते हैं। अगला अंगारक चतुर्थी का योग 5 अप्रैल 2000 बनेगा। 2022 में ये संयोग सिर्फ 1 ही बार बनेगा।
चतुर्थी का महत्व
महाराष्ट्र और तमिलनाडु में चतुर्थी व्रत का सर्वाधिक प्रचलन है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा का अत्यधिक महत्व है। शिव पुराण के अनुसार शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन दोपहर में भगवान गणेश का जन्म हुआ था। माता पार्वती और भगवान शिव ने उन्हें पुत्र रूप में प्राप्त किया था। उनके प्रकट होते ही संसार में शुभता का आभास हुआ। जिसके बाद ब्रम्हदेव ने चतुर्थी के दिन व्रत को श्रेष्ठ बताया। वहीं कर्ज एवं बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए मंगलवार को चतुर्थी व्रत और गणेश पूजा की जाती है।
मंगल की पूजा होती है शिवलिंग रूप में
ज्योतिष में मंगल ग्रह को सेनापति माना गया है। ये ग्रह मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी है। अंगारक चतुर्थी पर सबसे पहले गणेश पूजा करें, इसके बाद मंगल ग्रह को लाल फूल चढ़ाना चाहिए। इस ग्रह की पूजा शिवलिंग रूप में की जाती है।
मंगल को जल चढ़ाएं, लाल गुलाल चढ़ाएं। इस शुभ योग में मंगल के लिए भात पूजा कर सकते हैं। इसमें शिवलिंग का पके हुए चावल से श्रृंगार किया जाता है और फिर पूजा की जाती है। ऊँ अं अंगारकाय नम: मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें।
अंगारकी गणेश चतुर्थी व्रत विधि
अंगारक चतुर्थी पर श्रीगणेश की षोड़शोपचार पूजन-आरती करें। गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं। गणेश मंत्र (ऊँ गं गणपतयै नम:) बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं। बूंदी के 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास रख दें तथा 5 ब्राह्मण को दान कर दें। शेष लड्डू प्रसाद के रूप में बांट दें। संभव हो तो उपवास करें। इस व्रत का आस्था और श्रद्धा से पालन करने पर भगवान श्रीगणेश की कृपा से मनोरथ पूरे होते हैं और जीवन में निरंतर सफलता प्राप्त होती है।
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