सार

यूपी के जिले मैनपुरी उपचुनाव में बसपा ने अपना प्रत्याशी न उतारकर चुनाव को काफी रोचक बना दिया है। इस सीट से चुनाव न लड़कर पार्टी अपना आधार मजबूत कर रही है। बसपा का मैनपुरी सीट पर अच्छा वोटबैंक है। 

मैनपुरी: उत्तर प्रदेश के मैनपुरी उपचुनाव में बसपा ने अपना प्रत्याशी न उतारकर चुनाव को काफी रोचक बना दिया है। बसपा यहां चुनाव न लड़कर अपना आधार मजबूत कर रही है। मैनपुरी सीट पर बसपा का अच्छा वोटबैंक है। हालांकि इस बार पार्टी यहां उपचुनाव न लड़कर बड़ा संदेश दे रही है। बसपा का यह वोट बैंक ही चुनाव की दिशा और दशा को तय करेगा। दूसरी ओर मैनपुरी में सवा लाख से ज्यादा वोट जाटव समुदाय का और सत्तर हजार से ज्यादा वोट कठेरिया समेत अलग-अलग जातियों का है जो पार्टी का भविष्य तय करेगा।

बसपा का कोर वोट जिधर उधर का होगा पलड़ा भारी
दरअसल समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद मैनपुरी में लोकसभा का उपचुनाव हो रहा है। सपा के मुखिया अखिलेश यादव ने पत्नी डिंपल यादव को इसी सीट से मैदान में उतारा है तो वहीं बीजेपी ने रघुराज शाक्य को चुनावी मैदान में उतारा है। राजनैतिक जानकारों का कहना है कि इस सीट पर सबसे रोचक मामला बसपा प्रत्याशी के न उतरने से हुआ है। बसपा अपने जनाधार का सबसे बड़ा आधार तैयार कर रही है और मैनपुरी सीट पर बड़ा वोट बैंक है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस सीट पर चुनाव में बसपा का कोई प्रत्याशी नहीं है। इस वजह से बसपा का कोर वोट बैंक जिस दिशा में जाएगा चुनाव में पलड़ा उसी का भारी होना है।

चुनावी आंकड़ों के अनुसार उपचुनाव में बीजेपी के बढ़े है वोट
राजनैतिक जानकारों का कहना यह भी है कि बीते चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन था, तो उसमें मुलायम सिंह यादव की जीत का अंतर 2014 के लोकसभा चुनावों से कम हो गया था। इसलिए यह कहना आसान नहीं है कि मैनपुरी का चुनाव एकतरफा है। दूसरी ओर बसपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि वह चुनाव में नहीं है पर अपने वोट बैंक का बड़ा आधार तो नाप ही रहे हैं। बसपा से जुड़े एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि लोकसभा के चुनावों में पार्टी ने जब-जब यहां से चुनाव लड़ा, तब-तब उसे मिला वोट उसके कोर वोट बैंक की संख्या के हिसाब से ही था। इस वजह से बसपा से जुड़ा हुआ पूरा वोट बैंक जिस दिशा में एक साथ जाएगा, चुनाव का नतीजा उसी के हिसाब से तय होगा। इन सबके अलावा चुनावी आंकड़े यही बताते हैं कि जब-जब उपचुनाव हुए और बसपा ने यहां पर अपना प्रत्याशी नहीं उतारा तो भारतीय जनता पार्टी के वोट बढ़े हैं।

मायावती उपचुनावों में नहीं करती हैं शिरकत, वोटरों के खुलते है विकल्प
राजनैतिक मामलों के जानकारों का कहना यह भी है कि मैनपुरी सीट पर समाजवादी पार्टी का ही दबदबा रहा है। लेकिन साल 2019 में नेताजी मुलायम सिंह यादव को मिली जीत का अंतर नए राजनैतिक समीकरणों की कहानी कह रहा है। चुनाव में समाजवादी पार्टी के लिए इस बार सहानुभूति तो सबसे आगे चल ही रही है मगर बीते चुनावों में बसपा का वोट बैंक हार-जीत का एक बड़ा आधार बनता रहा है। उन सभी का कहना है कि मायावती उपचुनावों में शिरकत नहीं करती हैं। इस वजह से उनके वोटर के पास ऑपश्न खुले होते हैं कि वह जहां चाहे वहां जाएं। वहीं ऐसे हालातों में सभी दलों के पास बसपा के कोर वोट बैंक में सेंधमारी करने की खुली आजादी भी होती है। 

जनाधार के अधार पर अगले मुख्य चुनावों की रणनीति होगी तैयार
वहीं बहुजन समाज पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेता बताते हैं कि उपचुनावों में भले ही वह शिरकत ना करें, लेकिन वह अपने वोट बैंक के जनाधार से सियासी हवाओं का आधार तो तय ही कर लेते हैं। उनका कहना है कि मैनपुरी में होने वाले चुनाव में भी उनकी पार्टी अपने इसी जनाधार के आधार पर अगले मुख्य चुनावों की रणनीति भी बनाने वाली है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश कि राजनीति को बहुत करीब से समझने वाले जानकार कहते हैं कि इस बार मैनपुरी में होने वाला चुनाव नेताजी के न रहने के बाद सहानुभूति का है इसलिए समाजवादी का पलड़ा तो निश्चित तौर पर सहानुभूति की लहर में भारी माना जा रहा है।

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