- 40 डिग्री तापमान में जानें आखिर कैसे गर्म रहते हैं हमारे जवान, 24 घंटे खुद को रखते हैं एक्टिव

नए साल की द्स्तख और सर्दी का सितम, कड़ाके की ठंड ने लोगों के हाल बेहाल कर दिया है। पारा 1 से 2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है। इस ठंड ने मैदानी इलाकों में कई लोगों की जान ले ली है। 

/ Updated: Jan 01 2020, 07:38 PM IST

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वीडियो डेस्क। नए साल की द्स्तख और सर्दी का सितम, कड़ाके की ठंड ने लोगों के हाल बेहाल कर दिया है। पारा 1 से 2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है। इस ठंड ने मैदानी इलाकों में कई लोगों की जान ले ली है। लेकिन क्या आपको बता है इस देश की रक्षा के लिए देश का जवान दुनियां की सबसे ऊंचे रणक्षेत्र पर पह सरहद पर तैनात है। जहां का तापमान सर्दियों में -70 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। जहां की हवा सांसो को भी गिन रही है उस जगह पर देश के वीर जवान अपने कर्तव्य पथ पर अडिग है।
जहां ना कोई जानवर है, पशु है ना पक्षी है. ना पेड़ हैं ना पौधे है... ना खेती है ना खाना है... अगर कुछ है तो वो है एक तरफ खाई और दूसरी तरफ चोटी.... लेकिन खून जमा देने वाली... सांसों को रोक देने वाली इस जगह पर हमारे देश का वीर जवान गर्व से सीना ताने खड़ा रहता है। 20 हजार फुट ऊपर.... दुर्गम पहाड़ों की चोटियों को चीरते हुए ये जवान इसलिए तैनात रहते हैं ताकि देश का दुश्मन हिंदुस्तान की सर जमीं पर आंख उठा देखने की कोशिश भी ना करें....
देश की रक्षा में सियाचीन की चोटी पर तैनात इन जवानों का जीवन कितना कठिन है ये शायद आप सोच भी नहीं कर सकते..... दिनभर बर्फिले तूफान, कमर तक बर्फ और ऐसी ठंड कि शरीर का कोई भी हिस्सा कभी भी गल जाए.... बेस कैंप से इंद्रा कॉल चौकी तक पहुंचने में जवानों को 20 से 22 दिन लग जाता हैं। ऐसे में ये जवान कमर पर रस्सी बांधकर एक कतार में चलते हैं ताकि अगर कोई जवान खाई में गिरे तो उसे बचाया जा सके। ऑक्सीजन की कमी है इसलिए धीरे धीरे चलना पड़ता है। हर सैनिक की पीठ पर 20 से 30 किलो ग्राम भार रहता है। इस सर्दी के बावजूद भी सैनिकों का शरीर पसीने से तर हो जाता है। क्यों कि हर किसी के शरीर पर कपड़ों की कई तह होती हैं। लेकिन ये पसीना भी  सैनिकों के लिए नासूर बन जाता है। क्यों कि –44 डिग्री के इस तापमान पर पसीने को शरीर पर बर्फ बनने में कुछ सेकेंड ही लगते है। एक दिन में कितनी दूरी तय करनी है और कहां तक पहुंचना है ये भी निश्चित है।
अगर दिन में उगते सूरज से धूप के दर्शन हो जाएं तो और तकलीफ है। क्यों कि दिन में सूरज चमके और उसकी चमक बर्फ़ पर पड़ने के बाद आँखों में जाए तो आँखों की रोशनी जाने का ख़तरा रहता है। तो रात को भी ये सितम खत्म नहीं होता रात में चलने वाली तेज बर्फीली हवाएं चेहरे पर कांटों की तरह चुभती हैं। ये फौजी अपनी यात्रा रात में शुरू करते हैं और 9 बजे तक एक निश्चित जगह निश्चित समय पर पहुंचते हैं। ये जीवन किसी आम इंसान के लिए नहीं है। ये जज्बा भारत मां ने इन वीरों के ललाट पर ही लिखा है।
सैनिक लकड़ी की चौकियों पर स्लीपींग बैग में सोते हैं। इन टैंटों को गर्म रखने के लिए सैनिक एक अंगीठी का इस्तेमाल करते हैं। अगर ये कहें कि सियाचीन पर कैरोसिन के बिना जीवन संभव नहीं है तो कोई दोराय नहीं होंगे..... इस अंगीठी में लोहे के एक सिलिंडर में कैरोसिन डालकर उसे जला देते हैं. इससे वो सिलिंडर गर्म होकर बिल्कुल लाल हो जाता है और टेंट गर्म रहता है. लेकिन ये संघर्ष सोते हुए भी खत्म नहीं होता.... क्यों कि कब ऑक्सीजन की कमी हो जाए कुछ नहीं कहा जा सकता... जिससे सैनिकों की सोत सोते ही जान चली जाती है।
जमीं से इतना ऊपर उठकर,, खुद को बदलों को कबीर पाकर भी कोई जवान ठीक से नहीं सो पाता... ये तीन महीने की अवधि किसी वनवास से कम नहीं है.. लेकिन देश के लिए तैनात ये जवान इस बर्फ में भी जीवन की ज्योति जलाते हैं.. इस देश के लिए और हम सब के ली....
ना इन सैनकों के लिए पीने का पानी है... ना खाने की कोई सही व्यवस्था... पानी पीने के लिए बर्फ को ही पिघलाना पड़ता है। खाने के लिए ज्यातर लिक्विड चीजें ही इस्तेमाल होती हैं। लेकिन वे भी इस सर्दी में पत्थर बन जाती हैं। बार बार चीजों को गर्म करना पड़ता है और तुरंत खाना पड़ता है। ऐसे में इन सैनिकों के लिए जीवन दायनी बनते हैं सूखे मेवे और चॉकलेट....इन सैनकों का जीवन कितना कठिन है इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि ये सैनिकों को यहां रहने से कई परेशानियां होने लगती हैं... दिन भर सिर दर्द, नींद नहीं आना... सहीं ढंग से नहीं खाने की वजह से पाचन तंत्र कमजोर होना.... कभी कभी सैनिकों की याद्दाश्त भी चली जाती है... जवानों की आंखों की रोशनी चली जाती है..... कम सुनाई दने लगता है। 
सैनकों को नहाने और दाढ़ी बनाने की भी इजाजत नहीं होती है। दाढ़ी बनाते समय अगर कोई घाव हो गया तो फिर उसे दुरुस्त करना बेहद कठिन हैं। दुश्मन की गोलियों से ज्यादा डर इन सैनकों को इस शीतदंश का रहता है। जवानों का 80 फीसदी वक्त कुदरत के कहर से लड़ने में खर्च हो जाता है। सियाचीन का एक दिन का खर्च 6 करोड़ 80 लाख का है। 
सन 1984 से ये भारतीय फौज सियाचीन की इन दुर्गम पाहाड़ियों पर तैनात है। दुनियां की कोई भी फौज ऐसे हालत में नहीं रहती है।