बीएचयू के प्रोफेसर ने विश्वनाथ मंदिर वास्तु पर किया रिसर्च, कहा- इतिहास में 6 मंडपों को तोड़ा गया
बीएचयू के प्रोफेसर ने काशी विश्वनाथ मंदिर वास्तु पर रिसर्च किया है। उन्होंने कहा कि श्रृंगार मंडप में श्रृंगार गौरी विराजमान थी। उस मंदिर का ढांचा उसी तरह का है। उसमें 9 मंडप थे जबकि आज सिर्फ 3 मंडप है। यानी कुल 6 मंडप तोड़े गए हैं।
काशी विश्वनाथ धाम के विस्तृत जानकारी और इतिहास के पन्नों में काशी विश्वनाथ धाम किस तरह से दिखाई देता था। इसको लेकर एक नया तथ्य सामने आया है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के शत्रुध्न तिवारी ने बताया कि काशी विश्वनाथ मंदिर पर जो सामान्य परिचर्चा 17 मई के बाद शुरू हुई। हम ज्योतिष विज्ञान के आचार्य हैं हमने देखा इतना भव्य स्वरूप है वह बिना वास्तु का बना कैसे होगा? तो हमने वास्तु के दृश्य से विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी पर कार्य करना प्रारंभ किया और उसी का प्रदर्शन आज हमने इस सेमिनार में किया।
शत्रुध्न तिवारी ने कहा जो हमारा काशी विश्वनाथ मंदिर है जिसे काशी विश्वेश्वर मंदिर कहा जाता है। उसे निश्चित ज्ञानवापी जिसे जो स्थान बताया जा रहा वहीं पर निर्मित था। उन्होंने कहा कि प्रसाद वास्तु की एक शैली है उसमें नागर शैली के द्वारा निर्मित यह मंदिर है। जिसमें आप चाहे काशी खंड देखें या स्कंद पुराण का उन्होंने कहा कि यह चौथी शताब्दी से जो वास्तु का प्रसाद प्रारंभ होता है। 15 वीं शताब्दी तक शतक चलता है अगर 15०० ई के आसपास इस मंदिर का निर्माण मानते हैं। जैसा टोडलमल मानते हैं। विभिन्न इतिहासकार मानते हैं वह इतिहासकारों का विषय है। उन्होंने कहा कि मैंने मैपिंग करके दिखाया है कि कैसे मंदिर का स्वरूप पहले पांच मंडप थे फिर 9 मंडप किस प्रकार से हुए। यह स्थान कैलाश नाम से विस्तृत भी हुआ। साथी ज्ञानवापी जिसे एक तरह से शिवतीर्थ भी कहा गया है।
उन्होंने कहा कि यह शिवतीर्थ था इसके चारों किनारों पर चार मंदिर थे। बीच में पताका था जल भरा हुआ था इसका एक किनारा गंगा जी से लगा हुआ था आज जो विश्वनाथ आप देख रहे हैं। जो शिवतीर्थ था जलाशय था उस पर निर्मित है इसके उत्तर भाग में जो काशी विश्वेश्वर मंदिर है वह उसी स्थिति में था ऐसा हमने वास्तु के जरिए प्रमाण में दिखाया है। मंदिर के पश्चिम में मुख्य द्वार आज भी जो श्रृंगार गौरी की बात करते हैं श्रृंगार मंडप की जो बात करते हैं श्रृंगार मंडप में श्रृंगार गौरी विराजमान थी। आज भी मंदिर का ढांचा उसी तरह से है। केवल जो 9 मंडप थे उसमें से केवल जिसमें सिर्फ 3 मंडप वशिष्ठ हैं कुल 6 मंडप तोड़े गए चाहे जिसके द्वारा तोड़ा गया हो जब तोड़ा गया हो वह इतिहास का विषय है। लेकिन वास्तु शास्त्र के अनुरूप वहां मंदिर था इसका कई जगह प्रमाण है।