Nepal Unrest: नेपाल की पहली महिला चीफ जस्टिस सुशीला कार्की को अंतरिम नेता चुना जा सकता है। सुशीला कार्की का भारत से खास नाता है। उनकी छवि निडर, सक्षम और भ्रष्टाचार मुक्त व्यक्ति की है। उन्होंने एक मंत्री को भ्रष्टाचार के चलते जेल भेजा था।

Nepal Gen Z Protests: नेपाल में सत्ता विरोधी प्रदर्शन और हिंसा के बाद अब राजनीतिक संकट खत्म करने की दिशा में पहल हो रहे हैं। अगला प्रधानमंत्री किसे चुना जाए, इसके लिए आयोजित एक वर्चुअल बैठक में 5,000 से अधिक युवा शामिल हुए। इसमें नेपाल की पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की अंतरिम नेता के रूप में प्रमुख पसंद के रूप में उभरीं।

काठमांडू के मेयर बालेन शाह ने नहीं दिया जवाब

ऑनलाइन चर्चा इस बात पर केंद्रित थी कि अंतरिम नेता किसे चुना जाए। शुरुआत में काठमांडू के मेयर बालेन शाह को पसंदीदा उम्मीदवार माना जा रहा था। प्रतिभागियों ने बताया कि संपर्क करने के लिए बार-बार कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया। नेपाली मीडिया ने जेनरेशन जेड के एक प्रतिनिधि के हवाले से कहा, "चूंकि उन्होंने हमारा फोन नहीं उठाया, इसलिए चर्चा दूसरे नामों पर चली गई। सबसे ज्यादा समर्थन सुशीला कार्की को मिला है।"

कौन हैं सुशीला कार्की?

72 साल की सुशीला कार्की नेपाल की पहली महिला चीफ जस्टिस हैं। उन्हें 2016 में तत्कालीन राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली संवैधानिक परिषद की सिफारिश पर नियुक्त किया था। कार्की कानून के पेशे से जुड़ने से पहले शिक्षक थीं। उनकी पहचान निडर, सक्षम और भ्रष्टाचार मुक्त व्यक्ति के रूप में है। वह 2006 की संवैधानिक मसौदा समिति का हिस्सा थीं। 2009 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का तदर्थ न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। 2010 में स्थायी न्यायाधीश बनीं। 2016 में उन्हें चीफ जस्टिस बनाया गया।

सुशीला कार्की का भारत से क्या है नाता?

सुशीला कार्की का भारत से खास नाता है। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से शिक्षा प्राप्त की है। सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस रहने के दौरान कार्की ने कई ऐतिहासिक फैसले दिए जिससे उनकी छवि एक सुधारवादी के रूप में और मजबूत हुई। उन्होंने जय प्रकाश गुप्ता को भ्रष्टाचार के आरोपों में दोषी ठहराने का आदेश दिया। वह नेपाल में भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने वाले पहले मंत्री थे।

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कार्की ने शांति मिशनों में भ्रष्टाचार से लेकर विवादास्पद निजगढ़ फास्ट ट्रैक परियोजना तक के संवेदनशील मामलों की अध्यक्षता की। नेपाली महिलाओं को अपने बच्चों को नागरिकता देने की अनुमति देने जैसे प्रगतिशील फैसले सुनाए। 2017 में उनके आदेशों ने सत्तारूढ़ कार्यपालिका को भड़का दिया था। संसद में सत्तारूढ़ गठबंधन ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया था।

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