हरिकेन किको अमेरिका के हवाई द्वीप की ओर तेजी से बढ़ रहा है। हालांकि, पहले की तुलना में इसकी रफ्तार जरूर कुछ कम हुई है, लेकिन खतरा टला नहीं है। राज्य में पहले से ही इमरजेंसी अलर्ट घोषित किया जा चुका है। सोमवार रात तक इसके तट से टकराने की संभावना है।

Hurricane Kiko Latest Update: तूफान किको तबाही मचाने के लिए हवाई द्वीप की ओर तेजी से बढ़ रहा है। एक्टिंग गवर्नर सिल्विया ल्यूक ने हवाई में इमरजेंसी का ऐलान कर दिया है। तूफान किको से जुड़ी तेज हवाएं भारी बारिश और ऊंची लहरों के साथ सोमवार 8 सितंबर 2025 को हवाई द्वीप के कुछ हिस्सों पर खतरा पैदा कर सकती हैं। नेशनल हरिकेन सेंटर के मुताबिक, रविवार शाम को तूफान किको श्रेणी 3 से श्रेणी 2 में आ गया, जिसकी अधिकतम हवाएं 177 किलोमीटर प्रति घंटे की थीं।

किस दिशा में बढ़ रहा किको तूफान?

किको तूफान हवाई के हिलो से लगभग 635 मील (1021 KM) पूर्व में स्थित है और 13 मील प्रति घंटे की रफ्तार से पश्चिम-उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ रहा है। मौसम विज्ञानियों ने रविवार सुबह बताया कि किको से बनने वाली लहरें सोमवार रात तक आगे बढ़ेंगी और मंगलवार को चरम पर पहुंचेंगी।

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क्या कमजोर पड़ रहा तूफान किको?

रिपोर्ट्स के मुताबिक, 8 सितंबर तक किको थोड़ा कमजोर हो गया है। फिलहाल ये हवाई द्वीप से करीब 1000 मील पूर्व में स्थित है। मौसम विज्ञानियों का अनुमान है कि जैसे-जैसे यह उत्तर-पश्चिम की ओर ठंडे पानी और शुष्क हवा की ओर बढ़ेगा, इसकी ताकत कम होती जाएगी। इसके बावजूद, तेज हवाओं, बारिश और बड़ी-बड़ी लहरों की संभावना के चलते इमरजेंसी शेल्टर तैयार कर लिए गए हैं। साथ ही हवाई द्वीप के निवासियों और पर्यटकों से अपील की गई है कि वो ऑफिशियल गाइडलाइन को फॉलो करें।

क्या है किको हरिकेन?

हवाई स्थित मौसम विभाग के मुताबिक, प्रशांत महासागर में उठे हरिकेन किको (Hurricane Kiko) की अधिकतम रफ्तार पहले 215 से 230 किलोमीटर प्रतिघंटा थी, लेकिन अब ये कुछ कमजोर पड़ा है। बावजूद इसके समुद्र तट पर खतरनाक लहरें उठने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। प्रशासन ने साफ कहा है कि अगर किको के कारण मलबा या बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचता है, तो सफाई और मरम्मत की सभी तैयारियां कर ली गई हैं।

भारत के लिए कितना खतरनाक है किको तूफान?

बता दें कि किको तूफान प्रशांत महासागर में उठा है, इसलिए इसका भारत पर कोई प्रत्यक्ष असर नहीं पड़ेगा। प्रशांत महासागर में उठने वाले तूफान आमतौर पर बहुत ज्यादा दूरी के चलते हिंद महासागर या बंगाल की खाड़ी तक नहीं पहुंच पाते। नेशनल हरिकेन सेंटर मियामी ने भी बताया है कि इस तूफान के हिंद महासागर की ओर जाने की उम्मीद न के बराबर है।

कैसे तय होता था किसी तूफान का नाम?

बता दें कि तूफानों के नामकरण की शुरुआत अटलांटिक महासागर से उठने वाले चक्रवातों से हुई थी। इनसाइक्लोपीडिया ऑफ हरिकेन, टायफून एंड साइक्लोन में पब्लिश हुई खबर के मुताबिक, 1960 में तूफानों के आक्रामक रुख के चलते उनके नाम महिलाओं के नाम पर रखे जाने लगे। हालांकि, बाद में ऑर्गनाइजेशन फॉर विमेन सहित तमाम महिला संगठनों ने ये कहते हुए इसका विरोध किया कि तूफानों का नाम रखने वाले पुरुषवादी मानसिकता से ग्रसित होते हैं।

अब कौन डिसाइड करता है तूफानों के नाम?

संयुक्त राष्ट्र की इकोनॉमिक एंड सोशल कमीशन फॉर एशिया एंड पैसिफिक (ESCAP) पैनल के 13 मेंबर देश उत्तरी हिंद महासागर में बनने वाले तूफानों का नाम तय करते हैं। इसमें भारत के अलावा पाकिस्तान, मालदीव, ओमान, श्रीलंका, थाईलैंड, ईरान, कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बांग्लादेश, म्यांमार और यमन जैसे देश शामिल हैं। हर देश को A to Z अल्फाबेट के मुताबिक तूफान का नाम रखना होता है।

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