देखने में आता है कि कुछ लोगों को विवाह जल्दी हो जाता है जबकि कुछ लोगों के विवाह में काफी परेशानियां आती हैं और उम्र निकल जाने के बाद विवाह होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली का सातवां घर बताता है कि आपकी शादी किस उम्र में हो सकती है।
नवग्रहों में शनि को वैसे तो सबसे ज्यादा क्रूर और पापग्रह माना जाता है, लेकिन शनि के कारण ही व्यक्ति को प्रबल राजयोग भी मिलता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जन्म कुंडली में 12 भाव होते हैं। इनमें स्थित ग्रहों के आधार पर ही किसी व्यक्ति के बारे में भविष्यकथन किया जाता है। इन 12 भावों में कुछ सुख के और कुछ दु:ख के होते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली देखकर ये आसानी से जाना जा सकता है कि उसके पास कितना धन होगा।
ज्योतिष शास्त्र में अनेक शुभ योगों के बारे में बताया गया है। ऐसा ही एक शुभ योग है हंस। यह योग गुरु अर्थात बृहस्पति से संबंधित है।
सूर्य-चन्द्र की विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहते हैं। योग 27 प्रकार के होते हैं। 27 योगों में से कुल 9 योगों को अशुभ माना जाता है तथा सभी प्रकार के शुभ कामों में इनसे बचने की सलाह दी गई है। व्यतिपात योग भी इन्हीं में से एक है।
वैदिक ज्योतिष में 9 ग्रह, 12 राशियां और 12 भावों को मिलाकर जन्म कुंडली बनाई जाती है। कुंडली के 12 भावों में सभी का अलग-अलग नाम और महत्व होता है।
किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली देखकर उसके बारे में काफी कुछ जाना जा सकता है, साथ ही संभावित भविष्य के बारे में भी अनुमान लगाया जा सकता है।
वैदिक ज्योतिष में मनुष्य की जन्म कुंडली के अष्टम भाव को आयु या मृत्यु का भाव कहा जाता है, क्योंकि इस भाव से मृत्यु का कारण और समय पता किया जा सकता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में लगातार चार घरों (भाव) में यदि सभी ग्रह आ जाएं तो उनसे बनने वाले कुछ योगों के बारे में बताया गया है। ये योग व्यक्ति को दरिद्र और परिवारहीन बना देते हैं।