धर्म ग्रंथों के अनुसार, ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को वट सावित्री (Vat Savitri Vrat 2022) का व्रत किया जाता है। हिंदू धर्म में इस व्रत का विशेष महत्व है। इस बार ये व्रत 30 मई, सोमवार को किया जाएगा।
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा और अचला एकादशी (Achala Ekadashi 2022) कहते हैं। इस बार ये तिथि 26 मई, गुरुवार को है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है।
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को अचला एकादशी (Achala Ekadashi 2022, Apara Ekadashi 2022) कहते हैं। इसका एक नाम अपरा भी है। इस बार ये एकादशी 26 मई, गुरुवार को है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार जब भी किसी महीने में रविवार और सप्तमी तिथि का योग बनता है तो उसे भानु सप्तमी (Bhanu Saptami 2022) कहते हैं। इस बार 22 मई, रविवार का ऐसा योग बन रहा है क्योंकि इस दिन ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी में सूर्योदय होगा।
प्रत्येक महीने के दोनों पक्षों की चतुर्थी तिथि को भगवान श्रीगणेश को प्रसन्न करने के लिए व्रत किया जाता है। इस बार ये व्रत 19 मई, गुरुवार को है। इस बार ज्येष्ठ मास की चतुर्थी होने से ये संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi 2022) व्रत कहलाएगा।
धर्म ग्रंथों में वैशाख मास का विशेष महत्व बताया गया है। भगवान विष्णु को प्रिय होने के कारण इस महीने को माधव मास भी कहते हैं। इस बार वैशाख मास की पूर्णिमा (Vaisakhi Purnima 2022) 15 और 16 मई को यानी 2 दिन रहेगी।
Fasting rules on Pradosh 2022: हर व्रतों में प्रदोष व्रत का बेहद महत्व होता है। भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए महीने में दो बार प्रदोष का व्रत आता है। ऐसे में व्रत के दौरान क्या खाना चाहिए और क्या नहीं, किस तरह व्रत का पालन करना चाहिए आइए हम आपको बताते हैं।
धर्म ग्रंथों में भगवान शिव को प्रसन्न करने के अनेक उपाय व व्रत बताए गए हैं। प्रदोष भी इनमें से एक है। ये व्रत हर महीने के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है।
वैशाख मास (Vaishakh month 2022) का धर्म ग्रंथों में विशेष महत्व बताया गया है। भगवान विष्णु को प्रिय होने के कारण इसे माधव मास भी कहते हैं। इस महीने में जलदान करने यानी प्यासे लोगों को पानी पिलाने का विशेष महत्व बताया गया है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार, हर महीने के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत किया जाता है। इस व्रत में भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल यानी शाम के समय की जाती है, इसलिए इस व्रत का प्रदोष रखा गया है।