सार

आज (16 अप्रैल, शनिवार) चैत्र पूर्णिमा है। इस दिन हनुमान जयंती (Hanuman Jayanti 2022) का पर्व मनाया जाता है। हनुमानजी भगवान श्रीराम के परम भक्त और शिवजी के अवतार हैं। मान्यता है कि हनुमानजी अमर हैं और वे आज भी किसी गुप्त स्थान पर बैठकर तपस्या कर रहे हैं।
 

उज्जैन. वाल्मीकि रामायण (Valmiki Ramayana) के अनुसार, हनुमानजी ने संकट की स्थिति में हर बार श्रीराम की सहायता की और अपनी उपयोगिता साबित की। उन्होंने ऐसे कठिन कार्य किए, जिसे करना हर किसी के बस में नहीं था। उत्तर कांड में स्वयं भगवान श्रीराम ने अगस्त्य मुनि से कहा है कि हनुमान के पराक्रम से ही उन्होंने रावण पर विजय प्राप्त की है। हनुमान जयंती के अवसर पर हम आपको हनुमानजी द्वारा किए गए कुछ ऐसे ही कामों के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें करना किसी और के वश में नहीं था…

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युद्ध में किया अनेक राक्षसों का वध
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, युद्ध के दौरान हनुमानजी ने अनेक पराक्रमी राक्षसों का वध किया। इन राक्षसों का वध होने से रावण भी सोच में पड़ गया था। इन राक्षसों में धूम्राक्ष, अकंपन, देवांतक, त्रिशिरा, निकुंभ आदि प्रमुख थे। हनुमानजी और रावण भी युद्ध हुआ था। वाल्मीकि रामायण में इसका वर्णन मिलता है। हनुमानजी का थप्पड़ खाकर रावण उसी तरह कांप उठा था, जैसे भूकंप आने पर पर्वत हिलने लगते हैं। ये देखकर श्रीराम की सेना उत्साहित हो गई थी।

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एक ही छलांग में पार किया समुद्र
माता सीता की खोज करते समय जब हनुमान, अंगद, जामवंत आदि वीर समुद्र तट पर पहुंचे तो 100 योजन विशाल समुद्र को देखकर उनका उत्साह कम हो गया। तब जामवंत ने हनुमानजी को उनके बल व पराक्रम का स्मरण करवाया और हनुमानजी ने विशाल समुद्र को एक छलांग में ही पार कर लिया। रास्ते में कई परेशानियां भी आई, लेकिन हनुमानजी ने अपने पराक्रम और सूझ-बूझ से उन पर विजय प्राप्त की और अपना लक्ष्य पूरा किया।

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शत्रु का उत्साह भंग किया
समुद्र लांघने के बाद जब हनुमान लंका में पहुंचे तो सीता मां को न पाकर भी वे उत्साहहीन नहीं हुए और आखिकर अशोक वाटिका में जब हनुमानजी ने माता सीता को देखा तो वे अति प्रसन्न हुए। इस प्रकार हनुमानजी ने यह कठिन काम भी बहुत ही सहजता से कर दिया। इसके बाद उन्होंने शत्रु की शक्ति का अंदाजा लगाने उसके उत्साह को भंग करने के लिए अशोक वाटिका उजाड़ दी। रावण के पुत्र अक्षयकुमार को मारा और लंका में आग लगा दी। 

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श्रीराम को दी सही सलाह
हनुमानजी ने ही श्रीराम को विभीषण को अपने साथ मिलाने पर राजी किया, उसके पहले सुग्रीव, जामवंत आदि ने विभीषण पर विश्वास करने पर संदेह व्यक्त किया था। युद्ध के दौरान हनुमानजी औषधियों का पहाड़ लेकर आए। उस पर्वत की औषधियों की सुगंध से ही राम-लक्ष्मण व करोड़ों घायल वानर पुन: स्वस्थ हो गए।

 

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