किसान भाई ध्यान दें, धान फसलों में मंडरा रहा कीट-पतंगों का संकट, देखें कृषि वैज्ञानिकों की सलाह

वर्तमान समय में धान फसल पर कीट व्याधि एवं रोग लगने की प्रबल संभावना है। ऐसे समय में कृषि वैज्ञानिकों के परामर्श के अनुसार कीटों के प्रकोप को रोकने के लिए आवश्यक उपाय जरूरी है। इन फसलों में कीट-पतंगों के प्रकोप से बचने की सलाह कृषि वैज्ञानिकों द्वारा दी गई है...

Asianet News Hindi | Published : Oct 14, 2021 2:14 PM IST

फूड डेस्क। खेतों में इस समय धान की फसल लगी हुई है। वर्तमान समय में धान में बालियां आने लगी है। ऐसे समय में कीट पतंगों का प्रकोप बढ़ जाता है। छत्तीसगढ़ में सरना, बासमती, जवांफूल, दुबराज, आईआर-36, गुरमटिया, मसूरी, स्वर्णा, स्वर्णा सब-1 एच.एम.टी. एमयूटी-1010, एमटीयू-1001, राजेश्वरी, सुगंधित सहित लगभग 20 हजार से अधिक किस्म के धान की खेती किसानों द्वारा की जाती है। 

ये भी पढ़ें- Virgin लड़की की तलाश में बीत गए इतने साल, शर्तें जानकर युवतियां कर लेती हैं तौबा

वर्तमान समय में धान फसल पर कीट व्याधि एवं रोग लगने की प्रबल संभावना है। ऐसे समय में कृषि वैज्ञानिकों के परामर्श के अनुसार कीटों के प्रकोप को रोकने के लिए आवश्यक उपाय जरूरी है। इन फसलों में कीट-पतंगों के प्रकोप से बचने के  सलाह कृषि वैज्ञानिकों द्वारा दी गई है...

आभासी कंड रोग -
यह एक फूफंदी जनित रोग है। रोग के लक्षण पौधों में की बालियों के निकलने के बाद ही स्पष्ट होता है। रोग ग्रस्त दाने पीले से लेकर संतरे रंग के होते हैं। जो बाद में जैतूनी काले रंग के गोले में बदल जाता है।
उपचार -
     खेतों में जलभराव अधिक नहीं होना चाहिए। रोग के लक्षण दिखाई देने पर प्रॉपेकोनेजोल 20 मिलीलीटर मात्रा में 15 से 20 लीटर पानी में घोलकर का छिड़काव करें।
ये भी पढ़ें-कोरोना के बाद एक नई महामारी का कहर, संक्रमित होने से 3 साल के बच्चे की मौत ने खोले कई राज

कंडुआ रोग -
इस रोग के प्रकोप से धान की बालियों के जगह पीले रंग बाल बन जाता है। इसके बाद यह काले रंग का हो जाता है। यह रोग धान की फसल को 60 से 90 प्रतिशत तक नुकसान कर सकता है।

उपचार -
प्रॉपीकोनाजोल 25 ईसी 1 मिलीलीटर, प्रति लीटर पानी के घोल में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं।
ये भी पढ़ें- Shardiya Navratri 2021: इस तरह खोलेंगे व्रत तो ना ही होगी एसिडिटी और ना ही लगेगा भारीपन, जानें एक्सपर्ट
भूरा माहो -
यह कीट छोटे आकार तथा भूरे रंग का होता है। यह पौधे में पानी की सतह से थोड़ा ऊपर पत्तों के घने छतरी के नीचे रहते हैं। कीटों के बारे में शीघ्र पता नहीं चल पाने पर इसका नियंत्रण अधिक जटिल हो जाता है।
उपचार-
     पायमेट्रोजिन 50 प्रतिशत डब्ल्यूजी -300 ग्राम प्रति हेक्टेयर,
थायोमेथेक्जाम 25 प्रतिशत डब्ल्यूजी - 100-120 ग्राम प्रति हेक्टेयर,
इमीडाक्लोरोप्रीड 17.8 प्रतिशत एसएल - 150-200 मि.ली. प्रति हेक्टेर,
फिप्रोनिल 3 प्रतिशत $ ब्यूप्रोफेजिन 22 प्रतिशत- 500 मि.ली. प्रति हेक्टेयर,
ब्यूप्रोफेजिन 15 प्रतिशत $ एसीफेट 35 प्रतिशत 50 ग्राम प्रति हेक्टेयर
डाइनोटेफ्यूरॉन 20 प्रतिशत एस.जी. 175 ग्राम प्रति हेक्टेयर में से किसी एक दवा का प्रयोग किया जा सकता है।

ये भी पढ़ें- कहीं आपके शरीर पर तो नहीं है ऐसे चकत्ते, इसे हल्के में मत लीजिए, ये एक जानलेवा बीमारी का लक्षण है

इस खबर में दवाइयों की जानकारी में यथासंभव सावधानी बरती गई है, किसान दवाई का छिड़काव करने के पहले योग्य कृषि वैज्ञानिकों की सलाह लें।  
 

Share this article
click me!