सार

दूसरी लहर में कोरोना जैसी घातक बीमारी के बाद हुई मौत के आंकड़ों को देखकर तो यही लगता है कि अभी इससे डरना जरूरी भी है। कोरोना में जहां कई परिवार मौत के मुंह में समा गए, वहीं कई लोग ऐसे भी हैं, जिनकी पॉजिटिव सोच और जिंदगी को जीने के जज्बे ने उन्हें न सिर्फ इस वायरस से लड़ने में मदद की बल्कि वो पूरी तरह ठीक होकर घर भी लौट आए। 

भोपाल। कोरोना की दूसरी लहर देशभर में कमजोर पड़ती जा रही है। ज्यादातर शहरों में लॉकडाउन भी खुलने लगा है लेकिन बावजूद इसके लोगों के जेहन में कोरोना का डर अब भी बना हुआ है। वैसे, दूसरी लहर में कोरोना जैसी घातक बीमारी के बाद हुई मौत के आंकड़ों को देखकर तो यही लगता है कि अभी इससे डरना जरूरी भी है। कोरोना में जहां कई परिवार मौत के मुंह में समा गए, वहीं कई लोग ऐसे भी हैं, जिनकी पॉजिटिव सोच और जिंदगी को जीने के जज्बे ने उन्हें न सिर्फ इस वायरस से लड़ने में मदद की बल्कि वो पूरी तरह ठीक होकर घर भी लौट आए। 

Asianet news के गणेश कुमार मिश्रा ने भोपाल निवासी शिशिर दुबे से बात की। 41 साल के शिशिर ने बताया कि वो कोरोना पॉजिटिव हो गए थे। उनके घर में 90 साल की दादी के अलावा बुजुर्ग माता-पिता, पत्नी और बच्चों समेत कुल 10 लोग हैं। लेकिन समझदारी और सूझबूझ से उन्होंने अपने अलावा किसी और में संक्रमण फैलने नहीं दिया। करीब 7 दिन तक अस्पताल में भर्ती रहे शिशिर दुबे ने बताया कि कैसे उन्होंने घरवालों से दूर रहते हुए भी हिम्मत नहीं हारी और इस वायरस को मात दी। 

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आखिर कहां कर दी चूक : 
शिशिर दुबे के मुताबिक, कोरोना जबसे आया तभी से मैं बहुत प्रिकॉशन लेता था। कहीं भी जाता था तो सबसे पहले मास्क, सैनेटाइजर और ग्लव्स जरूर पहनता था। हालांकि, जब कोरोना थोड़ा डाउन हो गया तो मैंने भी इसे थोड़ा कैजुअली ले लिया। एक दिन मैं बिना ग्लव्स के बाजार चला गया। वहां काफी भीड़भाड़ थी। वहां से लौटने के बाद मुझे लगा कि मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी और वाकई मुझसे बड़ी लापरवाही हो गई थी। 

नॉर्मल से 6 गुना ज्यादा था मेरा डी-डायमर टेस्ट : 
दो दिन बाद ही मुझे वायरल जैसा फील हुआ। मैंने घरवालों को बताया तो उन्होंने कहा कि टेस्ट करवाओ और फौरन आइसोलेट हो जाओ। मैं आइसोलेट हो गया लेकिन दो दिन बाद अचानक तेज सिरदर्द हुआ और बुखार भी आ गया। दूसरी ओर मेरी टेस्ट रिपोर्ट भी अबतक पॉजिटिव आ चुकी थी। 3 से 4 दिन बीत गए थे, जिससे मुझे काफी वीकनेस भी आ चुकी थी। इसके बाद मैंने डॉक्टर को दिखाया। मैंने डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने कहा कि एक काम करो, डी-डायमर टेस्ट करा लो। मैंने यह टेस्ट कराया तो इसकी रीडिंग 3000 थी, जो कि नॉर्मल रेंज से करीब 6 गुना ज्यादी थी। 

डी-डायमर की रिपोर्ट देख करवाया HRCT टेस्ट : 
डॉक्टर ने डी-डायमर की रिपोर्ट देखते हुए कहा कि आपका ब्लड तेजी से गाढ़ा हो रहा है। इन्फेक्शन फैल रहा है। इसके बाद मुझे HRCT के लिए कहा गया। मैंने यह टेस्ट कराया तो 40% इन्फेक्शन निकला। ये देखकर डॉक्टर ने मुझे फौरन एडमिट होने की सलाह दी। भर्ती होने से पहले मेरी काउंसिलिंग हुई, जिसमें डॉक्टर्स ने काफी मोटिवेट किया और कहा कि आपको बहुत ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है। सबकुछ ठीक हो जाएगा। 

खून पतला करने के लिए देने पड़ेंगे इंजेक्शन : 
डॉक्टर ने मेरी हालत को देखते हुए कहा कि आपको ब्लड पतला करने के इंजेक्शन लगेंगे। इसके साथ ही रेमडेसिविर और दूसरी दवाइयां भी देनी पड़ेंगी। डी-डाइमर हाई होने की वजह से मैं थोड़ा घबरा गया था। हालांकि, इन सबके बीच मेरा ऑक्सीजन लेवल नॉर्मल था। मुझे आईसीयू में शिफ्ट किया गया और यहां से कोरोना वायरस के साथ मेरी जंग शुरू हुई। 

बेड से बाथरुम तक जाने में हांफने लगता था : 
हॉस्पिटल स्टाफ बहुत को-ऑपरेटिव था और उनके रवैये को देख मुझे भी खुद को पॉजिटिव रखने में मदद मिली। मैं अस्पताल में हमेशा पॉजिटिव रहता था। मेरे अंदर अपनी फैमिली की खातिर जीने का जज्बा था, जिससे दवाइयां भी जल्दी असर कर रही थीं। इस तरह मैं करीब 7 दिन अस्पताल में रहा। हालांकि मैं रिकवर तो तेजी से हो रहा था, लेकिन इस दौरान कमजोरी बहुत हो गई थी। बेड से बाथरुम तक जाने में मैं हांफने लगता था। 

7 दिन में मुझे 55 इंजेक्शन लगे : 
कोरोना इलाज के दौरान मैं 7 दिन अस्पताल में रहा और इस बीच मुझे 55 इंजेक्शन लगे। इनमें 14 डोज ब्लड थिनर के अलावा 7 रेमडेसिविर, एसिडिटी के लिए पेंटॉप और एंटीबायोटिक के इंजेक्शन मिलाकर कुल 55 इंजेक्शन लगाए गए। 7 दिन बाद डॉक्टर ने बताया कि इन्फेक्शन अब 25 परसेंट बचा है। इसके बाद डॉक्टर ने कहा- हमने डोज तो पूरे कर दिए हैं तो आप घर जा सकते हैं, लेकिन आइसोलेट रहना पड़ेगा। 

घर आने पर और ज्यादा बढ़ गई थी वीकनेस : 
जब मैं घर आया तो मुझे लगा कि वीकनेस और ज्यादा बढ़ गई है। चूंकि अस्पताल में इंजेक्शन और नसों के जरिए दवाइयां देते हैं तो वो ज्यादा असर करती हैं, जबकि घर में ओरल टेबलेट खानी पड़ती हैं। मुझे इतनी ज्यादा वीकनेस थी कि फोन पर भी बात करने में कमजोरी लगती थी। इस तरह जब मैं घर आया तो यहां 10 दिनों तक खुद को आइसोलेट रखा। इसके बाद मैंने दोबारा चेकअप कराया और करीब डेढ़ महीने तक मेरा ट्रीटमेंट चलता रहा।  

योगा, डीप ब्रीदिंग और मेडिकेटेड बलून एक्सरसाइज से मिला आराम : 
इसके बाद मैंने घर पर ही अस्पताल में बताई गई एक्सरसाइज जैसे योगा, डीप ब्रीदिंग, मेडिकेटेड बलून फूंकने वाली एक्सरसाइज शुरू की। डॉक्टर का कहना था कि फेफड़ों को रेस्ट नहीं करने देना है, उन्हें एक्सरसाइज करवाना है। इस तरह डॉक्टर द्वारा बताई गई एक्सरसाइज को फॉलो करके धीरे-धीरे मैं रिकवर होने लगा और अब पूरी तरह ठीक हूं।  


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