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सेशेल्स के राष्ट्रपति वैवेल रामकलावन का बिहार से है गहरा कनेक्शन, 2 साल पहले यहां लगाया था मिट्टी का तिलक
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लोग रामकलावन को मानते हैं गांव का बेटा
बरौली प्रखंड के परसौनी गांव में खुशी की लहर है। वे वैवेल रामकलावन को गांव का बेटा मानते हैं। बताते हैं उनके पुरखे करीब 135 साल पहले यहां से कलकत्ता (अब कोलकाता) होते हुए मारीशस पहुंचे थे। जहां वह गन्ने के खेत में काम करने लगे। कुछ समय बाद वह सेशेल्स चले गए थे।
भारत और अपनी जन्मभूमि को कभी नहीं भूले
बताते हैं कि उस समय देश अंग्रेजों का गुलाम था। अंग्रेज यहां के लोगों को मजदूरी कराने के लिए ले जाते थे। उन्हें गिरमिटिया मजदूर कहा जाता था। इनमें बिहार के लोग भी बड़ी संख्या में होते थे। उन लोगों ने अपनी मेहनत से वहां अपना साम्राज्य भी स्थापित किया। रामकलावन के परदादा भी उन्हीं में थे, जो अपने वतन को छोड़कर वहां गए। फिर उनके वंशज वहां से सेशेल्स चले गए, लेकिन भारत और अपनी जन्मभूमि को नहीं भूले।
1961 में हुआ था वैवेल रामकलावन का जन्म
सेशेल्स में ही 1961 में वैवेल रामकलावन का जन्म हुआ था। साल 2018 में वो भारतवंशी (पीआइओ) सांसदों के पहले सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली आए थे। उस समय वह सेशेल्स की संसद नेशनल असेंबली के सदस्य थे।
10 जनवरी 2018 को गांव आए थे वैवेल रामकलावन
वैवेल रामकलावन दस जनवरी 2018 को अपने पूर्वजों के गांव को ढूंढते हुए परसौनी आए थे। यहां आते ही गांव की माटी को नमन कर माथे पर तिलक लगाया था। वे तब सेशेल्स की नेशनल असेंबली में नेता प्रतिपक्ष थे। अपने पुरखों के गांव परसौनी में कदम रहते ही इनकी आंखें छलक आईं थी। अब रामकलावन सेशेल्स के राष्ट्रपति निर्वाचित हो गए हैं। जिन्हें पीएम नरेंद्र मोदी ने भी बधाई दिया है।
चचेरे भाई से किए थे मुलाकात, तीन बेटों के साथ आने का किए थे वादा
गांव के लोग बताते हैं कि रामकलावन ने राष्ट्राध्यक्ष बनने के बाद आने का वादा किया था। अब उनके राष्ट्रपति के रूप में आने का इंतजार है। उन्होंने यह भी कहा था कि वे अपने तीनों बेटों को भी लेकर आएंगे, ताकि वे अपने पुरखों का गांव देख सकें, यहां की मिट्टी को चूम सकें। वे उस समय अपने पुरखों के परिवार रघुनाथ महतो से मिले थे, जो रामकलावन के चाचा के पुत्र हैं, रिश्ते में भाई लगते हैं।